हरियाणा: प्लान के मुताबिक तोड़ा गया है गठबंधन? दूर रहकर भी इस तरह से बीजेपी को फायदा देगी JJP
लेकिन इस गठबंधन के टूटने की टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं। अगर मतभेद वाले दृष्टिकोण से देखें तो यही लगता है कि सीटों को लेकर बात बिगड़ी और गठबंधन टूट गई।
बीजेपी जिस खेल के लिए जानी जाती है, उसने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हरियाणा में अपनी ही सहयोगी के साथ वही खेल कर दी है। इस खेल के शिकार हुए दुष्यंत चौटाला और उनकी पार्टी जेजेपी। यही नहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की भी कुर्सी चली गई। दरअसल पार्टी ने हरियाणा में ‘नायाब’ खेल खेला और दो धुरंधरों को जमीन पर ला दिया। खट्टर को बड़े ही प्यार से किनारे लगाया गया। 24 घंटे पहले जब पीएम मोदी तबके सीएम खट्टर की तारीफ कर रहे थे उस वक्त कौन सोच सकता था कि उन्हें किनारे लगाने की काहानी लिखी जा चुकी है। बीजेपी ने नायब सैनी को सीएम बनाके खट्टर के साथ चौटाला को भी चारों खाने चीत कर दिया।
क्या सिर्फ दो सीटों की वजह से टूटा गठबंधन
कहा जा रहा है कि दो लोकसभा सीटों की वजह से बीजेपी-जेजेपी गठबंधन में दरार आई और आज हालात यहां तक बन गई। माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला की पार्टी दो सीटें पर अड़ी हुई थी, चाहती थी कि बीजेपी उन सीटों पर किसी को ना उतारे। इसके लिए अमित शाह और जेपी नड्डा के साथ मंथन भी हुई, लेकिन कोई फैसला नहीं हो पाने के बाद हरियाणा में सत्ताधारी गठबंधन टूट गई। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या जेजेपी सिर्फ दो सीटों की वजह से गठबंधन से बाहर हो गई?
गठबंधन टूटने के बाद कई सवाल
लेकिन इस गठबंधन के टूटने की टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं। अगर मतभेद वाले दृष्टिकोण से देखें तो यही लगता है कि सीटों को लेकर बात बिगड़ी और गठबंधन टूट गई। लेकिन राजनीतिक जानकारों की मानें तो गठबंधन टूटने का फायदा दोनों ही दलों को हो रहा है। बीजेपी और जेजेपी ने राजनीतिक फायदे के लिए इस गठबंधन को तोड़ा है। अगर हरियाणा का अंक गणित और जातीय समीकरण समझा जाए तो आप भी कह सकते हैं कि दुष्यंत चौटाला ने एक फ्रेंडली एग्जिट लिया है जहां पर दोनों जेजेपी और बीजेपी को फायदा होने वाला है।
अगर ऐसा हुआ तो ढह जाएगा बीजेपी का किला
गौरतलब है कि बीजेपी ने हरियाणा में 2014 में बड़ा एक्सपेरिमेंट किया। पार्टी ने एक गैर जाट को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया। पार्टी यह फॉर्मूला यूपी और बिहार में भी अपनाया। यहां जिस तरह से यादव और गैर यादवों को बांटा गया, उसी तरह यहां भी जाट और गैर जाट को बांटने का काम किया गया। नतीजा ये रहा कि जाट वोट एक तरफ और गैर जाट वोट दूसरी तरफ। हालांकि बीजेपी तो अपनी गैर जाट वाली राजनीति पर ही आगे बढ़ने वाली है। लेकिन इसके सफल होने के लिए जाटों का बंटना भी उतना ही जरूरी है। अगर जाटों का वोट एकमुश्त तरीके से कांग्रेस को पड़ेगा तो सत्ता में परिवर्तन होने की संभावना बढ़ जाएगी, बीजेपी का किला ढह जाएगा। ऐसे में बीजेपी अगर एक तरफ गैर जाट वाली राजनीति पर फोकस कर रही है, दूसरी तरफ वो जाटों के वोट को बांटने की सियासत भी खेल रही है।
एक बात और गौर करने वाली है कि गठबंधन टूटने के बाद भी दोनों पार्टियों ने एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगाए हैं। दुष्यंत चौलाटा की तरफ से भी कोई बयानबाजी नहीं हुई है। जबकि गठबंधन टूटने के बाद पार्टियां एक दूसरे पर जमकर हमला बोलती हैं। इसके बाद यह कहा जाने लगा है कि, ये एक फ्रेंडली एग्जिट है जहां पर फिर साथ आने की गुंजाइश भी कायम है। इधर, मनोहर लाल खट्टर ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है। बीजेपी ने खट्टर को लोकसभा से टिकट दे दिया है।
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