असहिष्णुता के दौर से गुजर रहा है देश, संस्थानों की विश्वसनीयता पर उठाए जा रहे हैं सवाल: प्रणब मुखर्जी
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका का जिक्र करते हुए कहा कि हाल के दिनों में इन संस्थानों को गंभीर तनाव से गुजरना पड़ा है और इनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश के मौजूदा हालात पर चिंता जाहिर की है। दिल्ली में आयोजित ‘शांति, सौहार्द्र एवं प्रसन्नता की ओर : संक्रमण से बदलाव’ विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने देश के मौजूजा हालात को लेकर कई बड़ी बातें कहीं। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, “देश एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है। जिस धरती ने 'वसुधैव कुटुंबकम' और सहिष्णुता का सभ्यतामूलक सिद्धांत, स्वीकार्यता और क्षमा की अवधारणा दी है वह अब बढ़ती असहिष्णुता, मानवाधिकारों के उल्लंघन और गुस्से की वजह से सुर्खियों में है।”
प्रणब मुखर्जी ने कहा, “जब राष्ट्र बहुलवाद और सहिष्णुता का स्वागत करता है तो वह अलग-अलग समुदायों में सद्भाव को प्रोत्साहन देता है। हम नफरत के जहर को हटाते हैं और अपने रोजमर्रा के जीवन में ईर्ष्या और आक्रमकता को दूर करते हैं तो वहां शांति और भाईचारे की भावना आती है।”
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, “सबसे ज्यादा खुशहाली उन देशों में होती है जो अपने नागरिकों के लिए मूलभूत सुविधाएं और संसाधनों को सुनिश्चित करते हैं। उन्हें सुरक्षा देते हैं, स्वायत्ता प्रदान करते हैं और सूचना तक लोगों की पहुंच होती है।”
संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका का जिक्र करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हाल के दिनों में इन संस्थानों को गंभीर तनाव से गुजरना पड़ा है और उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा, “देश को एक ऐसी संसद की जरूरत है जो बहस करे, चर्चा करे और फैसले करे, न कि व्यवधान डाले। एक ऐसी न्यायपालिका की जरूरत है जो बिना विलंब के न्याय प्रदान करे। एक ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो राष्ट्र के प्रति समर्पित हो और उन मूल्यों की जरूरत है जो हमें एक महान सभ्यता बनाएं।”
पूर्व रष्ट्रपति ने देश का ज्यादातर पैसा अमीरों की जेब में जाने से अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई को लेकर भी चिंता जाहिर की।
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