भारत में टिड्डी हमले के पीछे कोरोना वायरस, पाकिस्तान की भूमिका भी सवालों में
भारत के कम से कम तीन राज्य इस वक्त टिड्डियों के हमले की मार झेल रहे हैं और इससे 8,000 करोड़ की मूंग दाल और बहुत सारी अन्य फसलों के नुकसान होने का खतरा है। टिड्डियों के इस हमले के पीछे कोरोना वायरस से पैदा संकट और पाकिस्तान की खतरनाक लापरवाही है।
भारत में अभी राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के साथ हरियाणा और पंजाब के कई इलाकों में टिड्डियों के झुंडों ने कहर मचा रखा है। इन सभी राज्यों की सरकारों ने टिड्डियों के हमले को लेकर अलर्ट घोषित किया हुआ है और परेशान किसान थाली बजाकर और शोर मचाकर टिड्डियों को भगाने की असफल कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, टिड्डियों का हमला वैसे तो नई बात नहीं है, लेकिन ताजा संकट के पीछे कोरोना वायरस का भी बड़ा हाथ है।
इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र खाद्य संगठन के अधिकारियों ने डीडब्ल्यू को बताया कि मॉनसून के बाद भारत को टिड्डियों के दूसरे बड़े हमले के लिए तैयार रहना चाहिए। इस हमले से खरीफ की फसल को क्षति हुई तो खाद्य सुरक्षा का संकट भी हो सकता है। साफ है कि अभी आने वाले दिनों में टिड्डियों के हमले से निजात नहीं मिलने वाली।
टिड्डियों के पीछे कोरोना वायरस
असल में डेजर्ट लोकस्ट के नाम से पहचानी जाने वाली टिड्डियों की यह प्रजाति हर साल ईरान और पाकिस्तान से भारत पहुंचती है। जहां भारत में ये टिड्डियां एक बार मॉनसून के वक्त ब्रीडिंग करती हैं, वहीं ईरान और पाकिस्तान में ये दो बार अक्टूबर और मार्च के महीनों में होता है। मार्च में इन दोनों ही देशों में प्रजनन रोकने के लिए दवा का छिड़काव किया जाता है, लेकिन इस बार कोरोना संकट से घिरे ईरान और पाकिस्तान में यह छिड़काव नहीं हो सका। भारत में हो रहे टिड्डियों के हमले के पीछे यह एक बड़ा कारण है।
अप्रैल के मध्य में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की क्षेत्रीय बैठक में टिड्डियों के खतरे को लेकर चर्चा हुई थी। स्काइप द्वारा हुई इस बैठक में भारत और पाकिस्तान समेत दक्षिण एशिया के कई देशों के प्रतिनिधि थे। सूत्रों के अनुसार एक पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने बैठक में माना कि कोरोना की वजह से इस बार टिड्डियों की ब्रीडिंग रोकने के लिए दवा का छिड़काव नहीं किया जा सका और पाकिस्तान में टिड्डियों का प्रकोप काफी बढ़ गया है। उस अधिकारी ने मीटिंग में कहा कि पाकिस्तान के सामान्य लोग चूंकि अपने घरों के भीतर हैं तो उन्हें इसका अधिक पता नहीं चल रहा, लेकिन इन इलाकों में किसान बहुत परेशान हैं।
असल में कोराना महामारी के कारण ईरान और पाकिस्तान इस बार टिड्डियों के प्रजनन को रोकने में इस्तेमाल होने वाली दवा नहीं मंगा पाए। एफएओ ने चेतावनी दी है कि इस हमले के बाद जून में बरसात के साथ भारत को टिड्डियों के नए हमले का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि उस वक्त भारत-पाकिस्तान सीमा पर प्रजनन तेज हो जाएगा।
पिछले साल से बढ़ा टिड्डियों का हमला
अमूमन मॉनसून के वक्त भारत में ब्रीडिंग के बाद टिड्डियां अक्टूबर तक गायब हो जाती हैं, लेकिन 2019 में देर तक चले मॉनसून के कारण टिड्डियों का आतंक राजस्थान, गुजरात और पंजाब के इलाकों में इस साल जनवरी तक देखा गया। अब फिर से टिड्डियों का लौट आना देश की खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा है।
यूपी और मध्यप्रदेश में तो टिड्डियों का यह प्रकोप 27 साल बाद दिख रहा है। इस साल फरवरी मार्च में लगातार हुई बारिश ने टिड्डियों के पनपने के लिए माहौल बनाए रखा। एफएओ ने पिछले हफ्ते कहा कि ईरान और पाकिस्तान में अनुकूल नमी वाले मौसम में टिड्डियों की ब्रीडिंग जारी है और जुलाई तक यह झुंड पाकिस्तान सीमा से भारत में आते रहेंगे।
बता दें कि टिड्डियां इंसानों और जानवरों पर हमला नहीं करतीं, लेकिन यह फसल की जानी दुश्मन हैं। इन्हें कोमल पत्तियां बेहद पसंद होती हैं। एक वर्ग किलोमीटर में 4 से 8 करोड़ तक वयस्क टिड्डियां हो सकती हैं जो एक दिन में इतना भोजन चट कर सकती हैं, जितना 35,000 लोग खाते हैं।
टिड्डियों का संकट केवल भारत या दक्षिण एशिया का नहीं है, बल्कि यह दुनिया के 60 देशों में फैली समस्या है जो मूल रूप से अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में हैं। अपने हमले के चरम पर हों तो यह 60 देशों में बिखरे दुनिया के 20% हिस्से पर कब्जा कर लेती हैं। इनसे दुनिया की 10% आबादी की रोजी रोटी बर्बाद हो सकती है।
बदलता जलवायु टिड्डियों के अनुकूल
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की नई रिपोर्ट बताती है कि मुफीद जलवायु का फायदा उठाकर टिड्डियां अब अपनी सामान्य क्षमता से 400 गुना तक प्रजनन करने लगी हैं। यह बेहद चिंताजनक है, क्योंकि भारत उन देशों में है, जहां जलवायु परिवर्तन का असर सबसे अधिक दिख रहा है। टिड्डियों का भारत में प्रवेश हवा के रुख पर भी निर्भर करता है। कहा जा रहा है कि पूर्वी तट पर आए विनाशकारी चक्रवाती तूफान अम्फान के कारण भी टिड्डियों के भारत में प्रवेश के लिए स्थितियां बनीं।
ग्लोबल वॉर्मिंग का असर पिछले कुछ सालों में तेज गर्मी के लंबे मौसम और फिर असामान्य बारिश और अचानक बाढ़ के रूप दिखा है। यह स्थितियां टिड्डियों के प्रजनन चक्र को बढ़ा रही हैं। पिछले साल पहले तो जुलाई तक बरसात नहीं हुई और उसके बाद मॉनसून का लंबा सीजन चला जिसकी वजह से टिड्डियों का प्रकोप बना रहा।
अब इस साल जून में बरसात के साथ भारत-पाकिस्तान सीमा पर टिड्डियों के प्रजनन का नया दौर शुरू होगा। उसके बाद के महीनों में होने वाला टिड्डियों का हमला खरीफ की फसल बर्बाद कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो पहले ही कोरोना संकट झेल रहे भारत के लिए यह दोहरी मार होगी क्योंकि इसका असर देश की खाद्य सुरक्षा पर पड़ सकता है।
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