जामा मस्जिद के लजीज व्यंजनों पर लगा कोरोना का ग्रहण,गफ्फार मार्केट से भी गायब रहे लोग
दिल्ली सरकार द्वारा 50 से ज्यादा लोगों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगाने और स्कूलों और सिनेमाहाल को बंद करने के बाद डर और दशहत का असर यहां के बाजारों में भी दिख रहा है। गफ्फार मार्केट और पुरानी दिल्ली के ज्यादातर बाजारों से लोग गायब हैं।
दिल्ली सरकार द्वारा 50 से ज्यादा लोगों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगाने और स्कूलों और सिनेमाहाल को बंद करने के बाद डर और दशहत का असर गफ्फार मार्केट पर भी दिखता नजर आ रहा है। गफ्फार मार्केट, न सिर्फ दिल्ली, बल्कि देश के भी सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक सामानों के बाजार में से एक है। मन्नू की बाजार में बीते 32 सालों से मोबाइल फोन की एक दुकान है। बाजार में लोगों के आने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "मार्केट पूरा खाली है। दहशत का माहौल है।"
बाजार में ज्यादा भीड़ नहीं थी, लेकिन खाली भी नहीं था। लेकिन मन्नू ने तुरंत कहा, "खरीदार कहां है? आज जिन्हें यहां देख रहे हैं वे दुकान के मालिक है।" उसने यह भी बताया कि उसके साथी दुकानदार बाजार के कुछ दिनों के बंद होने के अनुमान के मद्देनजर अपने सामान पैक कर रहा है।
देवेंद्र सिंह का शो रूम 35 साल से है, उन्हें भी बाजार में असर दिखाई दे रहा है। सिंह कोरोना के फर्जी खबरों के बारे में भी बताते है। उन्होंने कहा, "हमारे ज्यादातर खरीददार राष्ट्रीय राजधानी के बाहर से आते हैं। हमें पता चला है कि व्हाट्सअप पर कोरोना वायरस के प्रकोण की वजह से गफ्फार मार्केट के बंद होने की खबर फैलाई जा रही है। इसने हमारी समस्या और बढ़ा दी है।"
पुरानी दिल्ली में जामा मस्जिद के आसपास का इलाका अपने लजीज व्यंजनों के लिए देशभर में विख्यात है। यहां मटन निहारी, बिरयानी और भेजा फ्राई की सुगंध से ही खाने के शौकीन खिंचे चले आते हैं। मगर इन दिनों यहां के हालात बदले हुए हैं। दुकानदार बताते हैं कि हाल के दिनों में यहां पहले जैसी चहल-पहल नहीं रही। दुकानदारों का कहना है कि धंधा मंदा पड़ गया है। इसके कारणों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि सीएए विरोधी प्रदर्शन के समय से ही यहां काम कम हो गया था और रही सही कसर कोरोना वायरस ने पूरी कर दी। दुकानदारों ने कहा कि कोरोना वायरस का प्रकोप जैसे-जैसे बढ़ा है, उससे यहां ग्राहकों का आना काफी कम हो गया है।
17वीं शताब्दी के मस्जिद क्षेत्र एक छोटी लेकिन लोकप्रिय मिठाई की दुकान चलाने वाले मोहम्मद शान को अब रबड़ी के अपने पूरे स्टॉक को बेचना मुश्किल हो रहा है। उनका कहना है कि रबड़ी का यही स्टॉक पहले कुछ ही घंटों में खत्म हो जाया करता था। शान ने दावा किया, "हमारी कन्फेक्शनरी 1939 में अस्तित्व में आई थी। मैंने अपने पूरे करियर में इतना कम कारोबार नहीं देखा है। यह अब तक की सबसे बेरंग होली गई है।"
यहां हालांकि सड़कों पर लोगों की संख्या अभी भी काफी दिख रही है। मगर इसके बावजूद व्यापार पर विपरीत असर पड़ा है। शान ने कोरोना के प्रकोप से पैदा हुई घबराहट को इसका जिम्मेदार जरूर बताया, मगर साथ ही दावा है कि सीएए विरोधी प्रदर्शन और दिल्ली के उत्तर-पूर्व में भड़की हिंसा के बाद काफी लोग इस अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र में आने से बच रहे हैं।
उन्होंने कहा, "सांप्रदायिक तनाव के कारण पहले से ही संघर्ष कर रहे व्यापार पर कोरोना ने काफी प्रतिकूल प्रभाव डाला है।" एक प्रसिद्ध मुगलई व्यंजन विक्रेता ने आईएएनएस को बताया, "कोरोना के डर से लोग मांसाहारी खाद्य पदार्थों को खाने में डर रहे हैं। मटन अभी भी बिक रहा है, मगर चिकन के व्यंजनों के ऑर्डर में भारी गिरावट आई है।"
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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