‘इंसानियत का पैगाम है कांग्रेस प्रत्याशी अंजू अग्रवाल की मुजफ्फरनगर में जीत’
मुजफ्फरनगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद पर कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हर जगह चर्चा का विषय बना हुआ है। बीजेपी नेता यह कह रहे थे कि बीजेपी अयोध्या में हार सकती है, लेकिन मुजफ्फरनगर में नहीं।
उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में मुजफ्फरनगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद पर कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हर जगह चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां कांग्रेस प्रत्याशी अंजू अग्रवाल 'चाची' (पूरे शहर में उन्हें चाची उपनाम मिला है) ने बीजेपी की सुधाराज शर्मा को 11 हजार मतों से हरा दिया। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से यहां बीजेपी काफी ताकतवर हो गयी थी और इसी खुमारी में बीजेपी नेता यह कह रहे थे कि बीजेपी अयोध्या में हार सकती है, लेकिन मुजफ्फरनगर में नहीं। 2013 के दंगों के बाद से मुजफ्फरनगर की हर एक छोटी-बड़ी गतिविधि पर देशभर की नजर है।
इस चुनाव में कई सुखद आश्चर्य हुए हैं। चुनाव की कमान पूर्व चैयरमेन पंकज अग्रवाल के हाथ में थी। वे अपनी चाची अंजू अग्रवाल को चुनाव लड़ा रहे थे, इसलिए अंजू अग्रवाल को चाची के नाम से पुकारा जाने लगा। 2012 में पंकज अग्रवाल मुजफ्फरनगर के चैयरमेन चुने गए थे। उन्होंने बीजेपी के संजय अग्रवाल को हराया था। मुजफ्फरनगर वैश्य समाज का प्रभुत्व वाला शहर है। तब उन्हें लगभग 45 हजार वोट मिले थे, इस बार उनकी चाची को 61 हजार वोट मिले।
कांग्रेस के लिए लगातार दूसरी बार यहां चुनाव जीतना किसी चमत्कार से कम नही है। इस जीत के कई सबक हैं। टिकट देने की प्रक्रिया में बीजेपी के भीतर कई लोगों की नाराजगी, मूलचंद अग्रवाल परिवार का व्यवहार और मुसलमानों का बहुतायत में कांग्रेस को वोट करना इसकी वजहें हैं। खास बात यह है कि कांग्रेस प्रत्याशी को कुल मिले 61 हजार वोटो में 35 हजार से ज्यादा मुस्लिम वोट हैं।
मुसलमानों को कांग्रेस को वोट देने के लिए प्रेरित कर बीजेपी को मात देने की इस रणनीति में मुजफ्फरनगर के तीन चर्चित चेहरों की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रयत्न संस्था के असद फारूकी, सेक्यूलर फ्रंट के गौहर सिद्दीकी और पैगाम-ए-इंसानियत के आसिफ राही वे चेहरे हैं। मुसलमानों के बीच इनकी ड्राइंग रूम मीटिंग की काफी चर्चा रही है। यह तीनों धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वाले हैं और मुसलमानों के बीच काफी लोकप्रिय है। हाल के चुनावों में मुसलमानों ने अपने कथित नेताओं की हरकतें देखकर उन्हें नकारना शुरू कर दिया है और समाज में प्यार-मोहब्बत की बात करने वाले लोगों की अहमियत बढ़ गई है।
मुसलमानों के भीतर इन तीनों की रणनीति कारगर साबित हुई। असद फारूकी ने नवजीवन को बताया, “हम लोगों को यह समझाने में कामयाब हुए कि बीजेपी को कौन हरा सकता है। कुछ लोगों ने साम्प्रदायिक बातें भी की और ‘अपने’ लोगों के पक्ष में वोट देने को कहा। लेकिन हमारा तर्क था कि हम खुद एक ऐसा कर दूसरे से निष्पक्ष होने की उम्मीद कैसे लगा सकते है। हमने मूलचंद परिवार की धर्मनिरपेक्ष सोच और पंकज अग्रवाल की अच्छाई के बारे में लोगों को बताया। यह बात लोगों की समझ में आई। बीजेपी चुनाव को साम्प्रदायिक आधार पर बांटने की साजिश रच रही थी। उन्होंने अफवाह फैलाई कि अगर कांग्रेस जीती तो शिव चौक पर घंटा नही बजेगा। मगर कमाल यह हुआ कि कांग्रेस जीती तो शिव चौक पर घंटा भी बजा और खालापार में मिठाई भी बटी।
आसिफ राही पैगाम-ए-इंसानियत नाम की एक संस्था चलाते है जिसे मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बनाया गया था। उन्होंने नवजीवन से कहा, "हमारा नारा है इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा। हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश देने के लिए हमने कांग्रेस को चुना। इस तिकड़ी के तीसरे शख्स समाजसेवी गौहर सिद्दीकी कहते है, "पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने गौरव स्वरूप को अपना प्रत्याशी बनाया था। उन्हें 87 हजार वोट मिले थे। 90% से ज्यादा वोट मुसलमानो के थे। इतनी बड़ी तादाद में मुसलमानों ने कभी यहां किसी को वोट नही दिया था। लेकिन वे नहीं जीत पाए। गौरव को वैश्य समुदाय ने वोट नही दिया। यह समुदाय कांग्रेस को वोट करता है, समाजवादी पार्टी को नहीं।
कांग्रेस के पास हर बिरादरी के लोग है। इस बार भी अंजू अग्रवाल को वैश्य वोट मिल रहा था, अच्छा यह रहा कि मुसलमान इस बात को समझ गए। आसिफ राही कहते हैं, "हम लोगों ने मंच पर भाषण देना जरूरी नहीं समझा। हमें नेता नही बनना था। हम लोगों के घर-घर गए। दो सौ से ज्यादा ड्राइंगरूम मीटिंग की और लोगों के सामने अपना पक्ष रखा।” गौहर कहते हैं, "इंसानियत और भाईचारे के लिए यह जीत जरूरी थी। अब दुनिया में इसकी आवाज पहुंची है, वरना दंगों के बाद से तो बाहर के लोग यह समझने लगे थे कि यहां इंसान ही नहीं रहते।”
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