मोदी सरकार का सफाई अभियान हुआ ‘साफ’, उत्तर प्रदेश में लिख दी गई ‘टॉयलेट एक भ्रम कथा’ की स्क्रिप्ट
विज्ञापनों में तो उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने 75 जिलों को खुले में शौच से मुक्त करार दे दिया है, लेकिन कदम-कदम पर इन दावों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। जमीनी हकीकत से साफ है कि योगी सरकार के अधिकारियों ने ‘टायलेट एक भ्रम कथा’ की स्क्रिप्ट तैयार कर दी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को महात्मा गांधी की याद में देश को साफ-सुथरा बनाने का संकल्प लिया और पूरा सरकारी अमला इस काम में जुट गया। इसके लिए करोड़ों के विज्ञापन दिए गए। यहां तक तो ठीक था, लेकिन उसके बाद यह सरकार आदत के मुताबिक आंकड़ों और तथ्यों की बाजीगरी करते हुए योजना की सफलता के दावे करने लगी। श्रेय लेने की होड़ में राज्यों ने करोड़ों के विज्ञापन देकर कहना शुरू कर दिया कि वे खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। पीएम मोदी की फ्लैगशिप योजनाओं में से एक स्वच्छता अभियान की नवजीवन द्वारा पड़ताल की इस पहली कड़ी में पेश है उत्तर प्रदेश में इस योजना का जमीनी हाल।
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के पटहेरवा ब्लॉक का रजवटिया गांव प्रशासन के दस्तावेज में ओडीएफ है। यानी, खुले में शौच से मुक्त। यानी, हर घर में शौचालय। पिछले दिनों गांव की 55 वर्षीय दुर्गावती देवी अपनी बहू के साथ नेशनल हाई-वे के किनारे शौच करने जा रही थीं, इसी दौरान तेज रफ्तार वाहन की चपेट में आ गईं। दुर्गावती ने गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में दम तोड़ा तो प्रीति भी कई दिनों तक मौत से जूझती रहीं। इस मौत से गांव के ओडीएफ होने के दावे की हवा निकल गई। पता चला कि दुर्गावती के घर मे शौचालय नहीं था, जिस कारण सास-बहू नेशनल हाईवे के किनारे नित्य क्रिया के लिए जा रही थीं।
सिर्फ दुर्गावती की मौत के बाद ही नहीं बल्कि कदम-कदम पर ओडीएफ को लेकर सवाल हैं। कहीं शौचालय के सत्यापन के बाद धन नहीं मिला, कहीं मिला तो आधा-अधूरा। कहीं किस्त का इंतजार है तो कहीं प्रधान ने पैसे हड़प लिए। प्रदेश के 75 जिलों को ओडीएफ घोषित कर विज्ञापनों में ‘उत्तर प्रदेश नंबर वन’ की ताल ठोकी जा रही है। कई नगर निगमों ने खुद को ओडीएफ प्लस और डबल प्लस श्रेणी का बताते हुए अखबारों में विज्ञापन निकाला है।
होर्डिंगों पर दावा हो रहा है कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 1.77 करोड़ और शहरी क्षेत्र में 84.1 लाख व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण हुआ है। शहरी क्षेत्रों में 45 हजार सामुदायिक शौचालयों का निर्माण किया गया है। प्रदेश के 11,783 वार्ड और 635 नगर निकाय ओडीएफ घोषित हो चुके हैं। जमीनी हकीकत देखकर साफ लगता है कि अफसरों ने ओडीएफ के दबाव में ‘टायलेट एक भ्रम कथा’ की स्क्रिप्ट तैयार कर दी है।
स्वच्छता और ओडीएफ के नाम पर करोड़ों रुपये फूंकने के बाद भी अधूरे टॉयलेट, टूटे मोबाइल टॉयलेट, शौचालय के किस्त के लिए नगर निगम से लेकर विकास भवन तक बाबुओं के चक्कर काटना आम है। सूरजकुंड मोहल्ले की अबरून निशा के घर खुद शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव मनोज सिंह जांच को पहुंचे थे। डेढ़ साल का वक्त गुजरने के बाद भी अबरून 4 हजार की दूसरी किस्त के लिए दौड़ लगा रही हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में नगर निगम के अधिकारियों ने पार्षदों के फर्जी हस्ताक्षर कर महानगर को ओडीएफ घोषित कर दिया। 21, 29 अगस्त और 7 सितंबर को अखबारों में विज्ञापन के जरिये नगर निगम ने दावा किया कि सभी 70 वार्ड ओडीएफ हो चुके हैं।
पांच बार से लगातार जीत रहे एसपी पार्षद जियाउल इस्लाम का आरोप है कि व्यावसायिक क्षेत्रों में सार्वजनिक शौचालय, प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में टॉयलेट, वार्ड में एक भी व्यक्ति खुले में शौच नहीं करता और प्रत्येक 500 मीटर पर एक सामुदायिक शौचालय समेत 5 बिंदुओं पर पार्षदों को सहमति देनी थी। एक भी मानक पर निगम खरा नहीं है तो कैसे सहमति दे दें? बीजेपी के साथ ही एसपी पार्षदों की असहमति के बाद भी मुख्यमंत्री को खुश करने के लिए अफसरों ने ओडीएफ के प्रारूप पर पार्षदों का फर्जी हस्ताक्षर कर शहर को ओडीएफ घोषित कर दिया।
ओडीएफ के प्रारूप पर फर्जी हस्ताक्षर के आरोप-प्रत्यारोप में पार्षद जियाउल इस्लाम और कर्मचारी फरहान शानू ने एक-दूसरे पर मुकदमा तक दर्ज करा दिया। खैर, शौचालयों पर 25 करोड़ से अधिक खर्च के बाद भी गोरखपुर नगर निगम ओडीएफ के सत्यापन के लिए केंद्रीय टीम को न्योता नहीं दे पा रहा है।
पूरे प्रदेश में 2 हजार से अधिक बायो मोबाइल टॉयलेट की खरीदारी हुई है। इनमें से आधे कबाड़ हो चुके हैं। जहां हैं, वहां गंदगी के चलते इनका उपयोग नहीं होता है। गोरखपुर नगर निगम के पूर्व मेयर पवन बथवाल आरोप लगाते हैं कि मोबाइल टॉयलेट को लेकर दावा था कि टैंक में मौजूद बैक्टीरिया सॉलिड वेस्ट को पानी और मिथेन गैस में विघटित कर देंगे। लेकिन इनमें बायो डाइजेस्टर टैंक काम नहीं कर रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर और पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी में मोबाइल लोकेटर एप के बारे में भी किया जा रहा दावा हवाई दिखता है। महराजगंज में तो जिलाधिकारी के फरमान पर होमगार्ड के जवान डंडे के बल पर ओडीएफ का अनुपालन करा रहे हैं।
ओडीएफ की हकीकत बीजेपी के नगर पालिका चेयरमैन कृष्ण गोपाल जायसवाल के दावे से साफ हो जाती है। वह कहते हैं कि खुले में शौच के चलते 200 से अधिक लोगों पर 100-100 रुपये जुर्माना लगाया जा चुका है। सांसदों के गांव भी कागजों में ही ओडीएफ हुए हैं। महराजगंज में बीजेपी सांसद पंकज चौधरी के गोद लिए गांव बड़हरामीर में 135 शौचालय बनवाए जाने थे, लेकिन आंकड़ा 100 के पार भी नहीं पहुंचा है। वहीं, गोनहा गांव में भी महिलाएं खुले में शौच करती दिख जाती हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ के गोद लिए गांव जंगल औराही में फिलहाल 971 व्यक्तिगत शौचालय यानी इज्जत घर बन चुके हैं। इनमें से 20 फीसदी से अधिक शो-पीस ही हैं।
केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के गृहजनपद गाजीपुर का बुरा हाल है। शौचालय को लेकर लेकर पिछले एक साल में डीएम को 450 से अधिक शिकायती पत्र मिले हैं। जिले के भांवरकोल ब्लॉक के देवरिया गांव को ओडीएफ घोषित किया गया तो ग्रामीण डीएम के आवास पर पहुंच गए। गांव के सुरेश राय ने बताया कि गांव में कुल 499 शौचालय बनने का दावा अफसर कर रहे हैं। प्रशासन ने एक मृत व्यक्ति के नाम पर भी शौचालय बना दिखाया है।
जांच में खुल रही कलई
ओडीएफ के दावे के बाद हुए सत्यापन के मामले में गोंडा समेत 15 जिले सबसे फिसड्डी साबित हुए हैं। इन जिलों में 30,028 राजस्व गांवों के सापेक्ष सिर्फ 18,102 गांव ओडीएफ सत्यापित हो सके हैं। जबकि11,926 गांवों का सत्यापन तक अफसर नहीं कर सके। यहां कई गांव तो सत्यापन में ही अस्वीकृत हो गए। ऐसे गांवों की कमियों को दूर करने के साथ अतिरिक्त टीम लगाकर सत्यापन कराने के फरमान जारी किए गए हैं।
सीतापुर जिलों में करोड़ों खर्च हुए लेकिन केंद्रीय टीम प्रशासन के ओडीएफ के दावे को सत्यापन के बाद नकार रही है। केंद्रीय टीम ने दो स्तर की जांच के बाद 190 गांव को ओडीएफ मानने से इंकार कर दिया है। लखनऊ के बरौना ग्राम पंचायत में प्रधान और सचिव ने पहले से बने शौचालय की रंगाई-पोताई कराकर रकम हड़प ली। गांव में 43 शौचालयों के लिए धन आवंटन हुआ, इनमें से 32 तो पहले से बने हुए थे।
(नवजीवन के लिए पूर्णिमा श्रीवास्तव की रिपोर्ट)
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