आज रिटायर होंगे दीपक मिश्रा, साथी जजों की बगावत झेलने वाले पहले चीफ जस्टिस

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा का आज देश की न्यायपालिका के इस सर्वोच्च पद पर अंतिम कार्य दिवस है। वह भारत के न्यायिक इतिहास में शायद एकलौते प्रधान न्यायाधीश हैं, जिन्हें अपने वरिष्ठतम साथी जजों की बगावत झेलनी पड़ी और महाभियोग प्रस्ताव का भी सामना करना पड़ा।

फोटोः सोशल मीडिया
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आईएएनएस

आज के दिन सेवानिवृत्त हो रहे प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को इस बात का श्रेय जरूर दिया जाएगा कि उन्होंने शीर्ष अदालत की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने की अनुमति दी, जिससे अदालत की कार्यवाही में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही आएगी। बतौर प्रधान न्यायाधीश 13 महीने 5 दिन का उनका कार्यकाल शायद अब तक का सबसे उथल-पुथल वाला रहा। दीपक मिश्रा के कार्यकाल का सबसे बड़ा धब्बा उस घटना को माना जाएगा, जिसमें उनके साथी न्यायाधीशों और कुछ वकीलों ने खास पीठों को कई अहम मामलों के वितरण में उनकी कार्यप्रणाली और संविधान पीठ के मामलों को शीर्ष अदालत के कनिष्ठ न्यायाधीशों की पीठ में सूचीबद्ध करने को लेकर उनपर खुलेआम सवाल उठाए। इसमें विशेष सीबीआई अदालत के जज बी एच लोया की संदिग्ध मौत की जांच की मांग वाली याचिका समते कई महत्वपूर्ण मामलों को सुनवाई के लिए खास बेंच को दिये जाने का भी मामला था।

उसके बाद जस्टिस मिश्रा से जुड़ा दूसरा अहम विवाद तब सामने आया, जब वरीयता क्रम में दूसरे स्थान पर रहे न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर ने लखनऊ के एक मेडिकल कॉलेज के भ्रष्टाचार के आरोपों की एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया। लेकिन इस आदेश के अगले ही दिन 5 न्यायाधीशों की पीठ ने उस आदेश को पलट दिया। इसको लेकर भी प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ आवाज उठी। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण समेत कई वकीलों ने कोर्ट नंबर वन की पीठ यानी जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के खिलाफ आवाज उठाई। प्रधान न्यायाधीश मिश्रा की कार्यप्रणाली पर उनकी अपनी ही बिरादरी के न्यायाधीशों द्वारा सवाल उठाए गए, जिसमें वकील समुदाय के कुछ प्रमुख लोग भी शामिल हुए, मगर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा अपने कौशल से उन सबसे निपटने में कामयाब रहे।

हालांकि, सीजेआई दीपक मिश्रा के कार्यकाल को अन्य कई बातों के लिए भी याद किया जाएगा। अदालत ने जब यह आदेश दिया था कि पद्मावत जैसी फिल्मों की स्क्रीनिंग में दखल नहीं दिया जा सकता है, उस समय उन्होंने कहा था कि स्वनियुक्त दक्षिणपंथी सांस्कृतिक पुलिस को सिनेमा में कलाकारों की रचनात्मक अभिव्यक्ति में दखल देने की अनुमति नहीं दी जाएगी। अपने पूरे कार्यकाल में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा अपने फैसलों में लोगों की स्वतंत्रता, खासतौर से महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों को बनाए रखने में स्पष्टवादी बने रहे।

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