नए वित्त मंत्री के लिए आसान नहीं राह, विरासत में मिली हैं अर्थव्यवस्था की ये चुनौतियां
मोदी सरकार पर अर्थव्यवस्था और रोजगार के मोर्चे पर पूरी तरह नाकाम रहने के आरोप लगते रहे हैं। चुनाव से पहले से ही कहा जाने लगा था कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती है। रोजगार में पर्याप्त बढ़त नहीं हो पा रही।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल शुरू हो गया है। कल (गुरुवार) मोदी के मंत्रियों का शपथ ग्रहण भी हो गया। इस बार कई नए नेताओं को मंत्री बनने का मौका मिला है। वहीं कइयों को मंत्रालय बदल दिया गया है। पिछली मोदी सरकार में रक्षा मंत्रालय संभाल रहीं निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्री बनाया गया है। लेकिन यहां उन्हें अर्थव्यवस्था की कई चुनौतियां मिलने वाली हैं।
मोदी सरकार पर अर्थव्यवस्था और रोजगार के मोर्चे पर पूरी तरह नाकाम रहने के आरोप लगते रहे हैं। चुनाव से पहले से ही कहा जाने लगा था कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती है। रोजगार में पर्याप्त बढ़त नहीं हो पा रही। देश के औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आई है, महंगाई दर बढ़ी है और इस वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर अनुमान से कम रहने का अनुमान है। तो इन सब चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को खपत बढ़ानी होगी, निवेश और निर्यात को बढ़ाव देना होगा और वित्तीय सेक्टर में नकदी के संकट को दूर करना होगा।
अर्थव्यवस्था की हालत खराब
इस वित्त वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि दर में कमी का अनुमान है। पिछले वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 7.2 फीसदी दर्ज की गई थी। लेकिन वित्त वर्ष 2018-19 में यह सिर्फ 6.98 रहने का अनुमान है।इतना ही नहीं मार्च में खत्म चौथी तिमाही में तो जीडीपी बढ़त महज 6.5 फीसदी रहने का ही अनुमान जारी किया गया है। बता दें कि किसी भी देश की तरक्की को जीडीपी के आंकड़े से ही मापा जाता है।
वहीं औद्योगिक उत्पादन में भी कमी आई है। ऐसे में नए रोजगार सृजन की संभावना भी कम ही है। उद्योंगों को अर्थव्यवस्था का सबसे मजबूत पहिया माना जाता है। इनके जरिए ही रोजगार सृजन जैसा जरूरी कार्य संभव होता है। विनिर्माण क्षेत्र में सुस्ती बने रहने की वजह से भी देश का औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक औद्योगिक उत्पादन का यह 21 माह का सबसे कमजोर प्रदर्शन है।
रोजगार देने में मोदी सरकार रही फेल, रोजगार बढ़ाना है चुनौती
पिछली मोदी सरकार रोजगार के मामले में पूरी तरह फेल रही थी। रोजगार के मोर्चे पर मौजूदा सरकार को काफी आलोचना का शिकार होना पड़ा था। ईपीएफओ के मुताबिक, अक्टूबर 2018 से अप्रैल अंत तक औसत मासिक नौकरी सृजन में 26 फीसदी की गिरावट आई है। लोगों को नौकरी नहीं मिल रही। बेरोजगारों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। हाल में मीडिया में लीक एनएसएसओ की पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे रिपोर्ट में कहा गया था कि 2017-18 में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसदी तक पहुंच गई जो 45 साल में सबसे ज्यादा है। अब दोबारा सत्ता में आई इस सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती रोजगार में तेज बढ़त करने की होगी।
निर्यात की वृद्धि दर में गिरावट
लोगों के पास पैसे नहीं हैं, निजी खपत में कमी आई है। सरकारी खर्चों में भी कटौती हुई है। जानकारों का कहना है कि वित्त वर्ष के अंत यानी मार्च तक सरकारी खर्च बढ़ जाते हैं। लेकिन इस बार राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार ने अपने खर्चों में कटौती की। सरकारी के साथ साथ निजी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था भी मंदी के दौर से गुजर रही है।
राजकोषीय घाटा और कर्ज में बढ़ोत्तरी
कर संग्रह में कमी होने से वित्त वर्ष 2018-19 के शुरुआती 11 महीनों में ही भारत का राजकोषीय घाटा बजटीय लक्ष्य का 134.2 फीसदी हो गया। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीजीए) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष के शुरुआती 11 महीनों में राजकोषीय घाटा उस साल के लक्ष्य का 120.3 फीसदी था। वित्त वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा 7.04 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है जो सकल घरेलू उत्पाद का 3.4 फीसदी है। वहीं देश पर कर्ज भी लगातार बढ़ता जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार में देश पर कर्ज 49 फीसदी बढ़कर 82 लाख करोड़ पहुंच गया है। इस पर काबू पाना भी मोदी सरकरा के लिए बड़ी चुनौती होगी।
नकदी संकट से पाना होगा पार
नए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए एक चुनौती वित्तीय सेक्टर में बने नकदी संकट को दूर करने की भी होगी। पिछले साल सितंबर में आईएल एण्ड एफएस के कर्ज डिफाल्ट शुरू करने के बाद यह संकट बना है। उसके ऊपर करीब 90 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों ने इस हालात से पार पाने के लिए कंजूसी बरतनी शुरू कर दी है। ऐसे में सरकार के लिए नकदी संकट से पार पाना एक बड़ी चुनौती होगी।
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