बस, आने ही वाली है आधार, वोटर आईडी, पैन कार्ड, पासपोर्ट के बिना नागरिकता साबित करने की चुनौती

अमित शाह ने चुनाव प्रचार के दौरान कई दफा कहा कि एनआरसी प्रक्रिया पूरे देश में लागू की जाएगी। ऐसे में आपको ऐसे दस्तावेज अभी से जुटाने शुरू कर देने चाहिए जो आपकी पहचान साबित कर सकें। क्योंकि पता नहीं, नए गृह मंत्री शाह कब किस राज्य में इस बारे में फरमान सुना दें!

फोटो: सोशल मीडिया
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दिनकर कुमार

अमित शाह ने चुनाव प्रचार के दौरान कई दफा कहा है कि एनआरसी प्रक्रिया पूरे देश में लागू की जाएगी। इसका मतलब है कि हर व्यक्ति को बताना होगा कि वह वास्तव में इसी देश का नागरिक है। इसमें आपका आधार, वोटर आईडी, पैन कार्ड, पासपोर्ट- कुछ काम नहीं देगा। आपको अपने माता-पिता, सास-ससुर की नागरिकता भी साबित करनी होगी। ये दस्तावेज अभी से जुटाने शुरू कर देने चाहिए क्योंकि पता नहीं, नए गृह मंत्री शाह कब किस राज्य में इस बारे में फरमान सुना दें! असम से अपने अनुभव साझा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार। दिनकर कुमार गुवाहाटी से प्रकाशित हिंदी दैनिक सेंटिनल के 14 बरस तक संपादक रहे। वे कविता, उपन्यास लिखते रहे हैं। उन्होंने कई जवीनियां लिखी हैं और असमिया से हिंदी में 60 पुस्तकों को अनुदित किया है। वे पुश्किन पुरस्कार से सम्मानित हैं। उनके अनुभव के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि अब पूरे देश के हर व्यक्ति को अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।

मैं 13 साल की उम्र में बिहार के दरभंगा जिले के ब्रह्मपुरा गांव से गुवाहाटी आ गया था। चालीस सालों से मैं गुवाहाटी में रह रहा हूं। वर्ष 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में असम में एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) अद्यतन की प्रक्रिया शुरू हुई, तब मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए मुझे असम में बसे दूसरे प्रांतों के लाखों लोगों की तरह मशक्कत करनी पड़ेगी। उस समय यही चर्चा थी कि अवैध बांग्लादेशियों की शिनाख्त करने के लिए असम समझौते के प्रावधान के तहत यह प्रक्रिया शुरू की गई है और भारतीय लोगों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।


सबसे पहले अपने परिचितों से पूछकर मैं गणेशगुड़ी इलाके में स्थित एनआरसी सेवा केंद्र से आवेदन पत्र लेकर आया। यह अंग्रेजी में था और लगभग बैंक के ऋण दस्तावेज की तरह ही जटिल और भारी भरकम था। इसे देखकर समझा जा सकता है कि नौकरशाहों ने काफी मेहनत कर उसकी रूपरेखा तैयार की थी। एक निश्चित समय सीमा के भीतर आवेदन पत्र को जमा करना था। मैंने ऐसे परिचितों से संपर्क किया जो आवेदन पत्र की कूट भाषा को समझने में सफल हुए हैं। उनकी मदद से मेरी समझ में यह बात आई कि परिवार के सभी सदस्यों की पहचान को साबित करने वाले दस्तावेज तो चाहिए ही, लेकिन सबसे अहम दस्तावेज है लीगेसी दस्तावेज- 24 मार्च, 1971 से पहले का कोई ऐसा दस्तावेज जो साबित करे कि मेरे पिता और मेरे ससुर भारतीय नागरिक थे।

गुवाहाटी में रह रहे मेरे एक रिश्तेदार गांव गए और अपने साथ 1961 की एक मतदाता पर्ची लेकर आए जिस पर मेरे पिताजी का नाम लिखा था। ससुर के नाम की जमीन का दस्तावेज मैंने बिहार सरकार की वेबसाइट से डाउनलोड कर लिया और इन दोनों दस्तावेजों को लीगेसी दस्तावेज के तौर पर आवेदन पत्र के साथ जमा करवा दिया। सेवा केंद्र में करीब चार घंटे तक इंतजार करने पर आवेदन पत्र जमा करवाने के लिए मेरी बारी आई।

सारे ओरिजनल दस्तावेजों को केंद्र के कर्मचारी स्कैन कर रहे थे। मतदाता पर्ची पर हिंदी में तारीख लिखी हुई और पुरानी होने के कारण पर्ची की लिखावट धुंधली भी हो गई थी। कर्मचारी ने मुझसे पूछा कि हिंदी में यह कौन सी तारीख लिखी हुई है, तो मैंने उसे बता दिया। वह कुछ संतुष्ट नजर आया और मैं सेवा केंद्र से लौट आया। मुझे लगा कि अब कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।


31 दिसंबर, 2017 की आधी रात को ड्राफ्ट एनआरसी की पहली सूची जारी की गई। मैंने आवेदन नंबर डालकर एनआरसी वेबसाइट पर अपने नाम की खोज शुरू की लेकिन निराश हुआ। मेरा और मेरे परिवार के सदस्यों के नाम पहली सूची में दर्ज नहीं थे। मैंने फिर परिचितों से पता लगाया तो मुझे सभी आश्वस्त करने लगे कि यह तो पहली सूची ही है। दूसरी सूची भी बनने वाली है। पहली सूची कोर्ट के दबाव में आनन-फानन में तैयार की गई है और काफी लोगों के नाम छूट गए हैं। इसके अलावा घर-घर जांच की प्रक्रिया भी चल रही है।

मैं इंतजार करने लगा कि कोई कर्मचारी जांच के लिए मेरे घर भी आएगा। कर्मचारी घर तो नहीं आया मगर उसने फोन कर मुझे एक गली में खड़ी वैन में बुलाया और सिर्फ मेरे पासपोर्ट की जांच करने के बाद एक रसीद किस्म का कागज दे दिया। मैं फिर आश्वस्त हुआ कि इस बार काम हो जाएगा।

30 जून, 2018 को ड्राफ्ट एनआरसी की दूसरी और अंतिम सूची प्रकाशित हुई। इस बार भी हम लोगों के नाम नहीं आए। अब मेरी चिंता बढ़ी। गुवाहाटी में ही रह रहे मेरे चाचाजी के परिवार के सभी सदस्यों के नाम सूची में आ गए थे। चाचाजी ने मुझे कहा कि मुझे इस विषय को गंभीरता से लेना चाहिए और दावे की प्रक्रिया में भाग लेकर अपना नाम शामिल करवाने की कोशिश करनी चाहिए। फिर सेवा केंद्र की तरफ मैंने दौड़ना शुरू कर दिया।

दो-तीन बार जाने पर मुझे लिखित रूप से बताया गया कि लीगेसी दस्तावेज सही नहीं होने की वजह से हमारे नाम खारिज किए गए। नए सिरे से लीगेसी दस्तावेज के साथ दावा करने का विकल्प बताया गया। इसके लिए जो फॉर्म दिया गया, उसे समझना किसी पहेली को हल करने के बराबर था। मैंने एनआरसी हेल्प डेस्क चला रहे हिंदी भाषी वकीलों से राय ली तो उन्हेंने कहा कि आप बिहार से अपने पिता और ससुर से संबंधित 24 मार्च, 1971 से पहले की मतदाता सूची की प्रमाणित प्रति ले आइए। मैंने अपने एक रिश्तेदार को इस काम में लगाया तो उसने बताया दरभंगा और मधुबनी में असम से आए लोगों की भीड़ लगी हुई है जो लीगेसी दस्तावेज की खोज कर रहे हैं और दलालों को कमाई का सुनहरा अवसर मिल गया है।

मुझे चार हजार खर्च करने पर पिताजी और ससुर के नाम वाली मतदाता सूची की प्रमाणित प्रति मिल गई। दावे के फॉर्म के साथ मैंने नए दस्तावेजों को भी जमा कर दिया। फिर मुझे फोन कर बताया गया कि अमुक तारीख को सपरिवार हियरिंग की प्रक्रिया में भाग लेने के लिए आपको आना होगा। मैं अपनी पत्नी, दो बेटियों और एक बेटे के साथ उस प्रक्रिया में भाग लेने गया। दिन भर रुकने पर यह प्रक्रिया पूरी हुई।

अब 31 जुलाई, 2019 को एनआरसी का प्रकाशन होने वाला है। मेरे मन में संशय बना हुआ है। अगर इस बार भी नाम छूट गया तो फिर अदालत का दरवाजा खटखटाकर ही अपनी नागरिकता साबित करने का विकल्प बचा रहेगा। लेकिन वहां भी कौन-से नए डॉक्यूमेंट मांगे जाएंगे, यह कहना अभी मुश्किल है। इसी देश में जन्म लेने, पलने-बढ़ने, खाने- कमाने, विदेश जाकर सम्मान ग्रहण करने के बावजूद 53 साल की उम्र में मैं अब भी अपनी पहचान कायम नहीं कर पा रहा हूं।

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