‘मोदी राज’ में कमजोर वर्गों के हक पर चोट, सामाजिक सहायता कार्यक्रम के बजट में लगातार हुई कटौती

मोदी सरकार के कार्यकाल में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम का आवंटन बढ़ने के स्थान पर लगातार कम होता रहा है। इससे भी अधिक दुख की बात यह है कि पांच साल तक लगातार इस योजना के लिए जो बजट पहले घोषित किया गया, बाद में उसमें कटौती कर दी गई।

फोटोः सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

निर्धन और कमजोर वर्ग के लिए केंद्र सरकार द्वारा पेंशन देने का सबसे बड़ा कार्यक्रम है राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम। इसके लिए आवंटन में वृद्धि की मांग बहुत समय से होती रही है। लेकिन हम मोदी सरकार के 5 साल को देखें तो स्पष्ट होता है कि आवंटन बढ़ने के स्थान पर कम होता रहा है। इससे भी अधिक दुख की बात यह है कि पांच साल तक लगातार जो बजट पहले घोषित किया गया, हर बार बाद में उसमें कटौती की गई। यह नीचे दी गई तालिका से स्पष्ट है।

‘मोदी राज’ में कमजोर वर्गों के हक पर चोट, सामाजिक सहायता कार्यक्रम के बजट में लगातार हुई कटौती

इसी व्यापक कार्यक्रम के अंतर्गत इंदिरा गांधी विकलांगता पेंशन योजना राष्ट्रीय स्तर पर विकलांगता प्रभावित नागरिकों के लिए पेंशन की प्रमुख योजना है। यह योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय के कार्यक्षेत्र में है। साल 2018-19 में इस योजना के लिए 277 करोड़ रुपए का बजट अनुमान प्रस्तुत किया गया था। बाद में संशोधित अनुमान में कटौती कर इसे 259 करोड़ रुपए कर दिया गया।

अब हाल ही में घोषित साल 2019-20 के केंद्रीय बजट में इसमें आगे और कटौती कर इस योजना की राशि को मात्र 247 करोड़ रुपए कर दिया गया है। यह कटौती समझ से बाहर है क्योंकि नए कानून बनने के बाद विकलांगता प्रभावित व्यक्तियों की पहचान और संख्या बढ़ रही है। ऐसे में पेंशन के लिए आवंटित कुल धनराशि में उल्टा बड़ी वृद्धि होनी चाहिए।

इसके अतिरिक्त प्रति व्यक्ति पेंशन राशि बढ़ाने की जरूरत भी बहुत समय से महसूस हो रही है। यह राशि बहुत कम है और इसमें महत्त्वपूर्ण वृद्धि करने की मांग बहुत न्यायसंगत है। इस स्थिति में कटौती करना तो बहुत अनुचित और अन्यायपूर्ण है। महंगाई के असर को देखा जाए तो कटौती और भी अधिक हुई है।

अब हम कुछ और पीछे की ओर जाएं तो साल 2014-15 में इस योजना के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय का आवंटन 493 करोड़ रुपए था (बजट अनुमान) और तब से यह आवंटन कम होता गया है। साल 2015-16 में 334 करोड़ रुपए हुआ और 2016-17 में 279 करोड़ रुपए हो गया।

इसके अतिरिक्त यह भी देखा गया है कि जो बजट अनुमान प्रस्तुत किया जाता है, उससे वास्तविक खर्च काफी कम होता है। साल 2015-16 में आवंटन 334 करोड़ रुपए हुआ और वास्तविक खर्च 288 करोड़ रुपए हुआ। अगले 2 साल भी वास्तविक खर्च आवंटन से कम ही रहा।

स्पष्ट है कि इस महत्त्वपूर्ण और सबसे जरूरतमंद नागरिकों को न्याय देने वाले इस कार्यक्रम से एनडीए सरकार ने पिछले 5 वर्षों के दौरान बहुत अन्याय किया है। इस अन्याय को दूर करना चाहिए और इस कार्यक्रम के आवंटन में महत्त्वपूर्ण वृद्धि करनी चाहिए।

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