बजट घोषणाएं जुमला जोखिमों के अधीन हैं, विश्वास करने से पहले बजट दस्तावेज ध्यान से पढ़ लें
अपने कार्यकाल के आखिरी साल में पेश अंतरिम बजट में मोदी सरकार ने आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए किसानों और मध्य वर्ग को जमकर लुभाने की कोशिश की। लेकिन इस दौरान जोश से भरे होने का दावा करने वाली बीजेपी के मंत्रियों और सांसदों की हवाईयां उड़ी नजर आ रही थीं।
केंद्र की मोदी सरकार ने अपने आखिरी बजट (पेश तो अंतरिम बजट करना था, लेकिन सरकार ने तमाम नियमों और परंपराओं को ताड़ते हुए पूर्ण बजट से भी बढ़-चढ़ कर घोषणाएं कर दीं) में जमकर घोषणाएं कीं और देशवासियों को रिझाने की भरपूर कोशिश की। इसी साल चुनाव होने की वजह से सरकार को पेश तो लेखानुदान (अंतरिम बजट) करना था, लेकिन पूरी योजना के साथ सरकार ने सारी परंपराओं को धता बताते हुए पूर्ण बजट पेश किया। जैसा कि उम्मीद की जा रही थी सरकार ने आम बजट की तरह तमाम लोकलुभावन घोषणाएं की और जमकर अपनी पीठ भी थपथपाई।
बजट में सरकार ने क्या दिया और क्या नहीं, इस पर चर्चा होगी, लेकिन सबसे पहले बात आज के दिन देश के लोकतंत्र के मंदिर यानि संसद की तमाम परंपराओं और संविधान की भावना पर सरकार द्वारा की गई चोट की करते हैं। आज के दिन सरकार ने एक तरह से जाते-जाते संसदीय परंपराओं पर अपना आखिरी वार कर दिया। संसद की तमाम परंपराओं और नियमों को ताक पर रखते हुए आज बीजेपी ने संसद को अपनी पार्टी की नुक्कड़ सभा में तब्दील कर दिया।
शुक्रवार को वित्त मंत्री पीयूष गोयल के बजट भाषण से पहले जब बीजेपी के सदस्य संसद के अंदर पहुंचे तो तमाम कायदों, रिवायतों और शालीनता की परंपरा को ताक पर रखते हुए काफी देर तक जय श्रीराम का उद्घोष करते रहे। इस दौरान बीजेपी और मोदी सरकार ये भूल गई कि संसद लोकतंत्र का मंदिर है, जहां उस संविधान के नियमों का पालन होता है, धर्मनिरपेक्षता और पंथ निरपेक्षता जिसकी आत्मा में है।
इतना ही नहीं बजट भाषण के दौरान मोदी सरकार के मंत्रियों और बीजेपी सासंदों ने भारतीय संसद की अब तक की तमाम परंपराओं की गला घोंट कर हत्या कर दी। पूरे बजट भाषण के दौरान बीच-बीच में बीजेपी के नेता वाह-वाह का उद्घोष करते रहे, मानो बजट भाषण नहीं कोई मुशायरा हो रहा हो और पीयूष गोयल शेर और गजलें सुना रहे हों। बजट के दौरान पीएम मोदी के नये जुमले ‘जोश’ को भी कई बार बीजेपी नेताओं ने जमकर उछाला और फिर खुद ही लपका।
बात यहीं तक रह जाती तो ठीक था, लेकिन हद तो तब हो गई जब बजट भाषण में गोयल ने आयकर सीमा में छूट का ऐलान किया तो करीब 3 मीनट से ज्यादा देर तक सदन में बीजेपी नेता मोदी-मोदी का उदघोष करते रहे। कई मिनट तक ऐसा लग रहा था कि मोदी जैसे कोई भगवान हों और सारे बीजेपी के नेता उस भगवान के भक्त। शायद संसद के इतिहास में आज पहला मौका था जब संसद का नजारा कुछ ऐसा लग रहा था मानो बजट भाषण नहीं हो रहा हो किसी नुक्कड़ या चौराहे पर बीजेपी द्वारा मोदी जी का विदाई कार्यक्रम रखा गया है।
अब बात बजट घोषणाओं की करें तो साफ पता चलता है कि सरकार ने जाते-जाते अपने तरकश के सारे तीर चलाने की आखिरी कोशिश भी कर ली है। एक ओर देश के 12 करोड़ किसानों को सालाना 6000 रुपये (यानि 500 रुपये महीना) देने का ऐलान कर सरकार ने किसानों को सम्मान देने का दावा किया, तो वहीं मध्यम वर्ग को टैक्स में छूट का ऐलान कर झुनझुना थमा दिया। लोकलुभावन बजट में एक भी काम की योजना की घोषणा तो नहीं की गई, लेकिन बड़े-बड़े दावों के साथ नये जुमले जमकर छोड़े गए।
इस बजट की खास बात ये रही कि पिछले कुछ दिनों से ‘हाउ इज़ द जोश’ का नया नारा उछालने वाली बीजेपी के ज्यादातर नेता पूरे बजट भाषण के दौरान पूरी तरह से मुरझाए नजर आए। यहां तक की बजट भाषण पढ़ रहे पीयूष गोयल के बगल और पीछे बैठे ज्यादातर बीजेपी नेताओं की भाव-भंगिमाओं से उनके अंदर की बेचैनी का साफ अंदाजा हो रहा था। बजट से बीजेपी के सांसद और सरकार के मंत्रियों को कितनी उम्मीदें हैं, उसका अंदाजा इसी बात से होता है कि पूरे भाषण के दौरान कई बीजेपी नेता अपना सिर पकड़े नजर आए। मानों उन्हें खुद भी समझ नहीं आ रहा था आखिर बजट के नाम पर यह हो क्या रहा है।
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