खत्म हो रहा मोदी का जादू, चमकने लगे हैं राहुल, क्या समय से पहले चुनाव कराएगी सरकार!
बीजेपी और उसके एकमात्र चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चमक फीकी पड़ रही है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि हालात और खराब हों, इससे पहले ही सरकार लोकसभा चुनावों का ऐलान कर सकती है।
पिछले तीन सालों से, यदि कोई टीवी पर सबसे अधिक दिखता है, तो वह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। और इसकी वजह है देश में लगातार कहीं न कहीं चुनाव होना, और प्रधानमंत्री न तो किसी पर विश्वास करते हैं और न चाहते हैं कि कोई और जननायक बनकर उभरे, इसलिए हर जगह वही नजर आते हैं, और बीजेपी के सारे नेता उनके सामने बौने नजर आते हैं।
लेकिन पिछले दस दिनों में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री, जो मीडिया से बात करने में विश्वास नहीं करते, उन्होंने दो टीवी चैनलों को इंटरव्यू दिया, और तब से अब तक तीन टीवी चैनलों ने सर्वे पेश किए, जिससे देश का मूड पता लगे। यह सब इतना अचानक हुआ है कि इस सबको लेकर लोग सवाल पूछने लगे हैं। बात यहां तक पहुंच गई है कि लोग कयास लगाने लगे हैं कि प्रधानमंत्री एक साल पहले ही लोकसभा चुनाव करा सकते हैं। शुरु में इन कयासों को सुनना अजीब लगा था, लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि कहीं ये कयास सही तो साबित नहीं होंगे?
जितने भी सर्वे सामने आए, उनसे एक बात एकदम स्पष्ट है कि बीजेपी के स्टार प्रचारक और चेहरे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चमक फीकी पड़ रही है, उनकी लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस मुक्त भारत का नारा भी एक जुमला साबित हो रहा है, और इसकी पुष्टि तो खुद प्रधानमंत्री ने अपने इंटरव्यू के दौरान इस बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में की थी और कहा था कि कांग्रेस देश की राजनीति की आधारशिला है ।
मोदी और बीजेपी के विपरीत कांग्रेस और इसके नए अध्यक्ष राहुल गांधी की लोकप्रियता न केवल तेज़ी से बढ़ रही है, बल्कि बहुत ही कम समय में उन्हें एक विकल्प के रूप में मान्यता मिलना शुरू हो गई है। ये वे संकेत हैं जिनके आधार पर नरेंद्र मोदी को लगता है कि आम चुनाव एक साल पहले करा लिए जाएं तो बेहतर है।
इसका अहम कारण भी है। अगर किसी सरकार या पार्टी के खिलाफ माहौल बनना शुरु होता है और उसकी लोकप्रियता का ग्राफ गिरने लगता है, तो वह बहुत तेजी से नीचे आता है, और उसे संभालना मुश्किल हो जाता है। इसीलिए नरेंद्र मोदी डरे हुए हैं कि अगर अगले साल भर में यह ग्राफ और नीचे चला गया तो दोबारा सत्ता में आने का उनका सपना चकनाचूर हो जाएगा।
सभी सर्वेक्षणों में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता 2014 के मुकाबले कम होती नजर आ रही है और इस कारण से उनकी अगुवाई वाले गठबंधन एनडीए की सीटें भी कम होने का अनुमान लगाया जा रहा है। दूसरी तरफ राहुल गांधी की लोकप्रियता में तेजी से वृद्धि हुई है। नोटबंदी, जीएसटी और गुजरात चुनाव के नतीजों ने तो बीजेपी को हिला कर रख दिया है। ऐसे में बीजेपी को यह अच्छी तरह समझ आ गया है कि लोगों में उनके खिलाफ गुस्सा हर रोज बढ़ रहा है और इसे रोकने के लिए उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है।
इन सर्वेक्षणों से एक और बात सामने निकलकर आई है कि अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपने दम पर बहुमत पाने में नाकाम रहेगी, और अगर उसे बहुमत मिलेगा भी तो सिर्फ एनडीए के सहयोगियों के दम पर, जिसमें सहयोगी दलों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी और उनका प्रभाव भी बढ़ेगा। सहयोगी दलों की बढ़ती भूमिका और प्रभाव मोदी जैसे आत्ममुग्ध व्यक्ति के लिए समस्या होगी, क्योंकि वे सत्ता पर एकाधिकार के न सिर्फ पक्षधर हैं, बल्कि उसे व्यवहार में लाते भी हैं और जो हर कोई मानता है।
यूं भी अगर मोदी सरकार ने एक साल पहले चुनाव कराने का फैसला कर भी लिया, तो भी उन्हें मुश्किलों का ही सामना करना पड़ेगा, क्योंकि जुलाई 2017 के बाद से बीजेपी और मोदी की लोकप्रियता में लगातार कमी आ रही है। और आने वाले दिनों में इसमें और कमी आने का अनुमान है। ऐसे में अगर उन्होंने सरकार बना भी ली, तो इसके लिए उन्हें बहुत से समझौते करना पड़ेंगे।
चलिए सर्वे में क्या कुछ निकलकर आया है, इसे देखते हैं।
एबीपी न्यूज के लिए सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे की मुख्य बातें यह हैं :
- नरेंद्र मोदी सरकार से असंतुष्ट लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी, अगर आज चुनाव हुए तो यूपीए की सीटें दोगुनी हो जाएंगी
- मई 2017 में हुए सर्वे को दौरान मोदी सरकार ने असंतुष्ट लोगों की संख्या 27 फीसदी थी, जो जनवरी 2018 में बढ़कर 40 फीसदी हो गई है
- सर्वेक्षण में 19 राज्यों की 175 सीटों के आंकड़े हैं, और इसे 7 से 20 जनवरी के बीच किया गया है
- पूर्वी भारत (बिहार, बंगाल, झारखंड, ओडिशा और असम) की कुल 142 सीटों पर अगर आज चुनाव हों तो बीजेपी और उसके सहयोगी दलों यानी एनडीए के हिस्से में कुल 72 सीटें आएंगी, जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों वाले यूपीए गठबंधन के हिस्से में 12 सीटें आएंगी। 52 सीटें अन्य यानी क्षेत्रीय पार्टियों के खाते में जा सकती है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी से गठबंधन की वजह से एनडीए की सीटों में इजाफा हो सकता है।
- दक्षिण भारत (कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल) में एनडीए की स्थिति कमजोर है, जबकि यूपीए को फायदा हो सकता है। 132 सीटों में से एनडीए को 34, यूपीए को 63 और अन्य को 35 सीटें मिल सकती हैं।
- इस साल, बीजेपी को कर्नाटक चुनाव में सत्ता में आने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा, तभी उसका कुछ हो सकता है।
- सर्वेक्षण के मुताबिक, उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा) में 151 लोकसभा सीटों पर चुनाव होते हैं, तो 2014 के मुकाबले एनडीए को कम से कम 20 सीटों का नुकसान होगा, उसे 111 सीटें मिल सकती हैं, जबकि 2014 में 131 सीटें मिली थीं। वहीं यूपीए को 13 सीटें और अन्य को 27 सीटों की संभावना की दिखायी दे रही है।
आजतक के लिए कार्वी के सर्वे की मुख्य बातें यह हैं :
- आजतक के सर्वे में 19 राज्यों की 97 लोकसभा सीटों और 194 विधानसभा क्षेत्रों में कुल 14148 लोगों से बात की गई।
- सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्रियों की सूची में बीजेपी शासित राज्य का कोई भी मुख्यमंत्री टॉप थ्री में नहीं है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी चौथे स्थान पर ही आए हैं। जबकि देश के 29 में 19 राज्यों में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकारें हैं।
- 12 प्रतिशत वोटों के साथ, तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी पहले नंबर पर हैं, जबकि 11 फीसदी के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दूसरे नंबर पर। वहीं 9 प्रतिशत के साथ अरविंद केजरीवाल तीसरे स्थान पर हैं।
- यदि सभी विपक्षी दल (कांग्रेस, तृणमूल, बीएसपी और समाजवादी पार्टी) एकजुट हो जाएं, तो उनके खाते में 38 वोट आ सकते हैं। इसके बाद, एनडी और यूपीए वोटों में केवल दो फीसदा का अंतर होगा।
- सभी विपक्षी दल एकजुट हो जाएं तो यूपीए के हिस्से में 202 सीटें आ सकती हैं, जबकि एनडीए के हिस्से में केवल 258 सीटें आएंगी। अन्य को 83 सीटें मिल सकती हैं।
- अगर आज चुनाव हुए तो एनडीए को 40 प्रतिशत, यूपीए को 27 प्रतिशत और अन्य को 33 फीसदी वोट मिल सकते हैं।
- इससे पहले हुए सर्वे में एनडीए को 42 फीसदी वोटों का अनुमान था, जिसमें अब 2 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है।
- अगर अभी चुनाव हुए तो एनडीए को 309 सीटें, यूपीए को 102 और अन्य को 132 सीटें मिल सकती हैं। पिछले सर्वेक्षण में एनडीए को 349 और यूपीए को 75 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था।
- बेरोजगारी देश का सबसे बड़ा मुद्दा है। 29 फीसदी लोगों का कहना है कि यह सबसे बड़ी चुनौती है, जबकि 23 फीसदी लोग महंगाई को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं। इसके अलावा, 17 फीसदी लोग भ्रष्टाचार के सबसे बड़ी समस्या के रूप में देख रहे हैं।
- गुजरात चुनाव के बाद राहुल गांधी की लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ी है। इस बीच, नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की लोकप्रियता में अंतर 24 प्रतिशत कम हो गया है।
- लोगों ने महंगाई, किसानों की आत्महत्या और सीमापार आतंकवाद पर अपनी चिंता जताई है। 23 फीसदी लोगों का कहना है कि महंगाई काबू करने में सरकार नाकाम रही है। 15 प्रतिशत का मानना है कि मोदी सरकार किसानों की आत्महत्या रोकने में असफल रही, जबकि 22 प्रतिशत ने कहा कि मोदी सरकार बेरोजगारी से निपटने में नाकाम रही है।
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