दोषपूर्ण है ‘गुजरात मॉडल’, राज्य को गांधी मॉडल की जरूरत: सैम पित्रोदा
सैम पित्रोदा ने बीजेपी के ‘गुजरात मॉडल’ को दोषपूर्ण करार देते हुए कहा है कि राज्य को नीचे से ऊपर जाने वाला दृष्टिकोण अपनाने और ऊपर से नीचे जाने वाले तरीके त्यागने की जरूरत है।
1980 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार के दौरान देश में शुरू हुए दूरसंचार क्रांति के अगुआ रहे सैम पित्रोदा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 'गुजरात मॉडल' को दोषपूर्ण बताया है। उन्होंने भाजपा के बहुचर्चित मॉडल का भांडाफोड़ करते हुए कहा कि राज्य को नीचे से ऊपर जाने वाला दृष्टिकोण अपनाने और ऊपर से नीचे जाने वाले तरीके त्यागने की जरूरत है, क्योंकि यह तरीका गरीब और हाशिए के लोगों की कीमत पर केवल बड़े उद्योगों के पक्ष में काम करता है।
गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का घोषणापत्र तैयार करने में मुख्य भूमिका निभाने वाले सैम पित्रोदा ने कहा, "गुजरात को विकास के गांधी मॉडल की आवश्यकता है, जो नीचे से ऊपर की तरफ जाता है। विकास का मूल्यांकन वैश्विक निवेशक सम्मेलनों में आप कितने लाख या करोड़ रुपये का निवेश कर सकते हैं, इस आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप बड़ी कंपनियों को नापसंद करते हैं, लेकिन आप गरीबों के लिए कुछ कर के गुजरात को बदल सकते हैं।"
पित्रोदा इस समय अमेरिका के इलिनॉयस में रह रहे हैं। पित्रोदा को गांधी परिवार के करीबी के रूप में जाना जाता है और हाल ही में उन्होंने राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के रूप में विकास के आंकड़े दिखते तो अच्छे हैं, लेकिन साधारण गुजराती के लिए इसका कितना मतलब है?
दूरसंचार आयोग के पूर्व अध्यक्ष रहे पित्रोदा ने कहा कि राज्य को विकास की एक नई रूपरेखा की जरूरत है, क्योंकि अमीर और गरीब के बीच का अंतर बढ़ गया है। पित्रोदा ने पिछले महीने गुजरात का व्यापक दौरा किया था और विभिन्न समूहों से बात की थी। उन्होंने गुजरात में शासन के वैकल्पिक फेरबदल के बारे में कहा, "अगर कांग्रेस सत्ता में आती है, तो राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की तर्ज पर गुजरात में भी एक सलाहकार परिषद की स्थापना की जाएगी। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार (संप्रग-1) 2004 के समय किया गया था। जो संप्रग-2 (2009-14) के दौरान भी समतावादी विकास मॉडल के तहत सरकार को मार्गदर्शन देने के लिए बनी रही।"
75 वर्षीय पित्रोदा ने पिछले दिनों अहमदाबाद, गांधीनगर, राजकोट, सूरत और जामनगर में किसानों, दलितों, महिलाओं, मछुआरों, व्यापारियों और गैर-सरकारी संगठनों से मुलाकात की थी और उनकी समस्याओं पर विस्तृत बातचीत की थी। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (2005-09) के अध्यक्ष रह चुके पित्रोदा ने कहा कि गुजरात के लोगों के बीच बहुत असंतोष है। पित्रोदा ने कहा कि गुजरात दौरे के दौरान उन्हें राज्य में शिक्षा का व्यापक पैमाने पर निजीकरण देखने को मिला। खास तौर से इंजीनियरिंग और मेडिकल की शिक्षा गुजरात में बहुत महंगी हो गई है। उन्होंने आगे कहा कि चिकित्सा शिक्षा में 80 लाख रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में कोई भी सरकारी डॉक्टर उपलब्ध नहीं है। हर साल 4,500 डॉक्टर निकलते हैं, उनमें से केवल 500 ही ग्रामीण क्षेत्रों में जाते हैं। इस तरह के बंधनों से बचने के लिए शेष चिकित्सक 10 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान जुर्माने के रूप में करते हैं। महिलाओं की गंभीर स्थिति का जिक्र करते हुए पित्रोदा ने कहा कि वे अपने ऊपर हुए किसी भी अत्याचार के लिए कागज पर प्राथमिकी दर्ज नहीं करातीं। वे अपने अधिकारों से अवगत नहीं हैं। ग्रामीण इलाकों में, महिलाओं को पानी लाने के लिए चार-पांच किलोमीटर तक जाना होता है। राज्य में चार लाख कामकाजी महिलाएं हैं, जिनके पास रहने के लिए चमुचित जगह नहीं है।
उन्होंने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के प्रतिकूल प्रभाव के कारण व्यापारी और छोटे व मध्यम उद्यमियों का कारोबार बुरी हालत में पहुंच गया है। बैंक उन्हें ऋण नहीं दे रहे हैं। बैंक बड़ी कंपनियों को ऋण देने के लिए तैयार हैं, लेकिन छोटे उद्यमियों को नहीं। उनका ध्यान टाटा मोटर्स जैसी बड़ी परियोजनाओं पर है।" पित्रोदा ने कहा, "किसानों की शिकायतें हैं कि उनकी उपजाऊ जमीन चंद मुआवजा देकर ले ली जाती है। उसके बाद वहां कोई उद्योग नहीं लगाया जाता। स्थानीय समाज के लिए आर्थिक लाभ की कोई योजना नहीं है।"
पित्रोदा ने पाटीदार, अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित जाति के नेताओं का साथ देने के लिए कांग्रेस की आलोचना कर रही भाजपा के तर्क को भी खारिज कर दिया और कहा कि "इसमें कुछ गलत नहीं है। क्योंकि लोकतंत्र में प्रत्येक समूह का एक मतदाता वर्ग है, जिसे अधिकार है कि उसकी बातें सुनी जाएं और उनकी शिकायतें हल की जाएं। आखिर पाटीदारों या अन्य समूहों के साथ गठजोड़ करने में गलत क्या है?"
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