एनआरसी से सकते में बीजेपी, फाइनल लिस्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला
अब तक बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी मुसलमानों की एनआरसी के जरिये पहचान कर देश से बाहर करने की बात करने वाली बीजेपी को एनआरसी की फाइनल लिस्ट ने सकते में डाल दिया है।बीजेपी ने एनआरसी डाटा के फिर से सत्यापन के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है।
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची भले ही आ गई हो, लेकिन केंद्र और राज्य बीजेपी का मानना है कि इसमें गलती की काफी गुंजाइश है। इसलिए बीजेपी ने चयनित डाटा के फिर से सत्यापन के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है।
असम के वित्त मंत्री और पूर्वोत्तर में बीजेपी का चेहरा हिमंत बिस्वा सरमा के अनुसार, पार्टी बांग्लादेश सीमा से लगे जिलों में सैंपल डाटा के 20 फीसदी का फिर से सत्यापन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। इसके साथ ही बीजेपी मध्य असम के क्षेत्रों के नमूनों में से 10 फीसदी के फिर से सत्यापन की मांग करेगी। यह मांग मसौदा एनआरसी के खिलाफ होगी।
अब तक बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी मुसलमानों की एनआरसी के जरिये पहचान कर देश से बाहर करने की बात करे वाली बीजेपी को एनआरसी की फाइनल लिस्ट ने सकते में डाल दिया है। बीजेपी का आरोप है कि असम के सीमावर्ती जिलों से बहुत से लोगों ने सूची में अपनी जगह बना ली है। इन सीमावर्ती जिलों की आबादी ज्यादा है और इनमें बड़ी संख्या अवैध बांग्लादेशी हैं।
हिमंत बिस्वा सरमा को पूर्वोत्तर का अमित शाह माना जाता है। उन्होंने कहा, "मसौदे के ठीक बाद हम एनआरसी के वर्तमान स्वरूप से उम्मीद खो चुके हैं। जब बहुत से असली भारतीय बाहर हो गए हैं तो आप कैसे दावा कर सकते हैं कि यह दस्तावेज असमिया समाज के लिए महत्वपूर्ण है।" असम बीजेपी अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने भी अंतिम एनआरसी सूची को लेकर असंतोष जाहिर किया है।
ऐसे में इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि बीजेपी और एनआरसी के प्रमुख समन्वयक प्रतीक हजेला के बीच विवाद खुलकर सामने आया है। बीजेपी अब अंतिम लिस्ट के प्रकाशन के बाद प्रतीक हजेला पर आरोप लगा रही है। बीजेपी का आरोप है कि वास्तविक नागरिकों की कीमत पर फर्जी दस्तावेज लगाने वाले कई आवेदकों का नाम भी एनआरसी की आखिरी सूची में शामिल कर लिया गया है।
गौरतलब है कि 31 अगस्त को जारी एनआरसी की अंतिम सूची से 19 लाख से अधिक लोग बाहर हो गए हैं। इनमें ज्यादातर बंगाली हिंदू शरणार्थी हैं जो 1971 से पहले असम आए थे या पर्याप्त दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाने वाले लोग हैं। बताया जा रहा है कि इनकी संख्या करीब 11 लाख है। जबकि बाहर होने वालों में करीब 6 लाख लोग मुसलमान हैं। खास बात ये है कि इससे पहले जारी हुई लिस्ट से करीब 40 लाख लोग बाहर हो गए थे, जिन्हें 31 अगस्त तक अपनी नागरिकता को लेकर दावा करने का समय दिया गया था।
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