तेजस्वी पर होगी लालू यादव की राजनीतिक जमीन को संभालने की जिम्मेदारी
चारा घोटाला में लालू यादव के जेल जाने के बाद राजद को एकजुट रखना लालू परिवार के लिए बड़ी चुनौती है। माना जा रहा है कि इस मुश्किल वक्त में तेजस्वी पार्टी को संभाले रखने में कामयाब रहेंगे।
बहुचर्चित चारा घोटाला के एक मामले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद को साढ़े तीन साल जेल की सजा मिलने के बाद उनकी गैरमौजूदगी में राजद की बागडोर उनके पुत्र और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव संभालेंगे। हालांकि, आधिकारिक तौर पर पार्टी के अध्यक्ष पद पर लालू प्रसाद ही बने रहेंगे, लेकिन पार्टी की कमान अब तेजस्वी संभालेंगे।
रांची की विशेष सीबीआई अदालत द्वारा 6 जनवरी को लालू यादव को साढ़े तीन साल का सजा के ऐलान के बाद राजद की हुई अहम बैठक के बाद यह माना जा रहा है कि पार्टी के सिंहासन पर लालू की 'खड़ाऊं' रख, तेजस्वी ही राजद की नैया पार कराने का प्रयास करेंगे। वैसे, लालू की गैरमौजूदगी में तेजस्वी के सामने पार्टी को एकजुट रखना सबसे बड़ी चुनौती है।
यह कोई पहला मौका नहीं है जब लालू की अनुपस्थिति के बाद राजद के सामने ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई है। इससे पहले भी लालू जब जेल गए थे, तो पार्टी की कमान उनकी पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के हाथों में आ गई थी और उस संकट की घड़ी में उन्होंने पार्टी को बखूबी संभाले रखा था।
हालांकि इस बार परिस्थितियां बहुत अलग हैं। उस समय लालू के सामने केवल राबड़ी ही विकल्प थीं, जबकि अब उनके सामने दो पुत्र तेजस्वी और तेजप्रताप हैं। ऐसे में तेजस्वी के समक्ष न अपनी पार्टी के वोट बैंक को, बल्कि पार्टी को टूटने से बचाना मुख्य चुनौती होगा।
तेजस्वी के नेतृत्व में हुई बैठक में यह तय हुआ कि राजद अध्यक्ष के संदेश को गांव-गांव तक पहुंचाना है। तेजस्वी ने भी पार्टी को एकजुट बताते हुए कहा, "लालू जी एक व्यक्ति नहीं विचारधारा हैं। लालू प्रसाद यादव ने जनता के नाम एक खत लिखा है, उसे जन-जन तक पहुंचाना है। मकर संक्रांति के बाद राजद के नेता और कार्यकर्ता लालू जी के संदेश और चिट्ठी को लेकर जन-जन के बीच जाएंगे।"
राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर भी मानते हैं कि लालू के पास वोटबैंक है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। यह समझते हुए नीतीश कुमार ने उनसे दोस्ती की थी। उन्होंने कहा कि तेजस्वी अभी राजनीति में परिपक्व नहीं हैं, ऐसे में उनको लालू की 'खड़ाऊं' रखकर ही आगे बढ़ना होगा। वे कहते हैं कि राजद में भले ही कई बड़े नेता हों, लेकिन सबका आधार लालू का वोट बैंक ही है। किशोर कहते हैं कि लालू का खड़ाऊं रख पार्टी को चलाने में तेजस्वी को कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए।
बिहार की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि लालू के संदेश को पार्टी किस तरह लोगों तक पहुंचाएगी, यह देखने वाली बात होगी। वे कहते हैं कि यादव मतदाताओं को राजद से तोड़ लेना किसी अन्य पार्टी के लिए आसान नहीं होगा।
तेजस्वी का यह कहना, "लालू जी 'शेर' हैं और हम लोग भी किसी लालच और पद के लिए राजनीति में नहीं आए हैं। सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले लालू जी को बिहार के लोगों के लिए दिल से निकाल देना आसान नहीं है।"
लालू की बेटी और सांसद मीसा भारती भी कहती हैं, "लालू प्रसाद के एक अंश को ही जेल भेजा जा सकता है, बाकी का 99 प्रतिशत अंश नश्वर नहीं। वह हर दलित-पिछड़े के 90 के दशक में आए जागरण का रूप धर सदियों तक हर मनुवादी, संघवादी, सवर्णवादी को कचोटता रहेगा। जन जागरण एक क्रांति है, और क्रांतिकारी हर सजा, हर जहर पीने को तैयार है।"
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