शिवराज सरकार में बड़ा घोटाला, तरीका जानकर रह जाएंगे हैरान! CM के पास है मंत्रालय
मध्य प्रदेश के शिवराज सरकार में एक बड़ा घोटाला सामने आया है। एमपी में बच्चों को फ्री में दिए जाने वाले भोजन योजना में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पाई गई है।
मध्य प्रदेश के शिवराज सरकार में एक बड़ा घोटाला सामने आया है। एमपी में बच्चों को फ्री में दिए जाने वाले भोजन योजना में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पाई गई है। योजना के लाभार्थियों से लेकर उत्पादन, अनाज बांटने और क्वालिटी कंट्रोल तक में बड़े पैमाने पर हेराफेरी की गई है। एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, राज्य के अकाउंटेंट जनरल की रिपोर्ट से इस घोटाले का खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट में लाभार्थियों की पहचान में अनियमितता, स्कूली बच्चों के लिए महत्वाकांक्षी मुफ्त भोजन योजना के वितरण और गुणवत्ता नियंत्रण में गड़बड़ी जानकारी दी गई है।
कागजों में बांट दिए गए करोड़ों के आहार
शिवराज सरकार के इस योजना के तहत करीब साढ़े 49 लाख रजिस्टर्ड बच्चों और महिलाओं को पोषण आहार दिया जाना था। लेकिन इस योजना में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस योजना का लाभ लेने वाले ज्यादातर कागजों में ही मिले। वहीं करोड़ों का हज़ारों किलो वजनी पोषण आहार कागजों में ट्रक से आया लेकिन जांच में पाया गया कि जिन ट्रकों के नंबर बताए गए थे वो दरअसल मोटरसाइकिल, ऑटो, कार, टैंकर के थे। इतना ही नहीं लाखों ऐसे बच्चों के नाम पर करोड़ों का राशन बांटा गया जो स्कूल जाते ही नहीं। गौरतलब है कि जिस मंत्रालय में यह घोटाला हुआ है वह मंत्रालय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास ही है। भ्रष्टाचार के इस खेल में कागजों पर करोड़ों के अनाज बांट गए, वहीं जिन महिलाओं और बच्चों को इनकी जरूरत थी उन तक पहुंचा ही नहीं, वे कुपोषित ही रह गए।
इस तरह दिया गया घोटाले को अंजाम
यह योजना कोरोना काल में दो साल बंद रही लेकिन उसके बाद फिर से पूरी तरह से शुरू हो गई, लेकिन फिर से इसका लाभ स्कूली बच्चों को नहीं मिला। भर्जी नाम और लोगों को कागजों में ही आहार बांट कर अफसरों ने अपने वारे न्यारे कर लिए। जिस तरह से घोटाले का अंजाम दिया गया उसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। दरअसल 6 टेक होम राशन (THR) बनाने वाले संयंत्रों / फर्मों ने 6.94 करोड़ की लागत वाले 1125.64 एमटी टीएचआर का परिवहन करने का दावा किया। लेकिन जांच के बाद पता चला कि परिवन में इस्तेमाल किए गए वाहन वास्तव में मोटरसाइकिल, कार, ऑटो और टैंकर के रूप में पंजीकृत थे। डेटाबेस में ट्रक बिल्कुल भी मौजूद नहीं हैं।
यहां हुई गड़बड़ी
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018-19 में स्कूल शिक्षा विभाग ने स्कूल से बाहर किशोर लड़कियों की संख्या 9,000 होने का अनुमान लगाया था लेकिन महिला एवं बाल विकास विभाग ने बिना कोई आधारभूत सर्वेक्षण किए उनकी संख्या 36.08 लाख होने का अनुमान लगाया था। ऑडिट में 2018-21 के दौरान डेटा हेरफेर के स्पष्ट संकेत मिले, जिससे 110.83 करोड़ रुपये के टीएचआर का नकली वितरण हुआ है। इसके साथ एजी के ऑडिटरों को 821.8 मीट्रिक टन टीएचआर की नकली आपूर्ति का भी संदेह है, जिसकी कीमत 4.95 करोड़ रुपये है। इसके साथ ही 2.96 करोड़ रुपये मूल्य के 479.4 मीट्रिक टन टीएचआर को उन ट्रकों पर ले जाया गया जो मौजूद ही नहीं हैं।
ऑडिट सत्यापन रिपोर्ट से पता चला कि 8 जिलों के 49 आंगनवाड़ी केंद्रों में केवल 3 OOSAG वास्तव में पंजीकृत थीं। हालांकि इनमें एमआईएस पोर्टल में विभाग के 49 आंगनवाड़ी केंद्रों ने 63,748 ओओएसएजी पंजीकृत की थीं और 2018-21 के दौरान 29,104 ओओएसएजी को वितरण का दावा किया था। यह स्पष्ट रूप से डेटा हेरफेर की सीमा को इंगित करता है। यह 110.83 करोड़ के टीएचआर के फर्जी वितरण की ओर इशारा करता है।
उत्पादन प्लांट्स में फर्जी उत्पादन
इतना ही नहीं, टीएचआर उत्पादन प्लांट्स ने टीएचआर उत्पादन को उनकी रेटेड और परमिटेड क्षमता से परे बताया। टीएचआर उत्पादन की तुलना में फर्जी उत्पादन 58 करोड़ था। बड़ी, धार, मंडला, रीवा, सागर और शिवपुरी में छह संयंत्रों ने चालान जारी करने की तिथि पर टीएचआर स्टॉक की अनुपलब्धता के बावजूद 4.95 करोड़ की लागत से 821.558 मीट्रिक टन टीएचआर की आपूर्ति की। आठ जिलों में बाल विकास परियोजना अधिकारियों (CDPO) ने पेड़-पौधों से 97,656.3816 मीट्रिक टन टीएचआर प्राप्त किया, हालांकि उन्होंने आंगनवाड़ियों को केवल 86,377.5173 मीट्रिक टन टीएचआर का परिवहन किया। शेष टीएचआर 10,176.9733 टन, जिसकी लागत 62.72 करोड़ है, इसका न तो परिवहन किया गया, न ही गोदाम में उपलब्ध था। यह स्पष्ट रूप से स्टॉक के दुरुपयोग को दर्शाता है।
इतना ही नहीं इसमें मानकों के नाम पर भी फर्जीवाड़ा किया गया। इस परियोजना के अंतर्गत तैयार किए टीएचआर के नमूने को राज्य के बाहर गुठवत्ता की जांच के लिए स्वतंत्र प्रयोगशालाओं में भेजने का प्रवाधान है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। यहां तक की 2018-21 के दौरान आंगनबड़ी केंद्रों का निरीक्षण तक नहीं किया गया।
CM शिवराज सिंह चौहान पर विपक्ष का हमला
इस घोटाले को लेकर विपक्ष सीएम शिवराज सिंह चौहान पर हमलावर हो गया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करते हुए लिखा, मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने पहले व्यापम घोटाले से युवाओं का भविष्य बर्बाद किया था। अब गरीब बच्चों और गर्भवती महिलाओं के साथ अन्याय! क्या मामा ने ऐसे घोटाले करने के लिए ही महाराज के साथ तोड़फोड़ कर के सरकार बनाई थी?
वहीं कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने ट्वीट कर लिखा कि मध्यप्रदेश में बीजेपी सरकार भ्रष्टाचार के रोज़ नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। मामू को अब अपनी काली कमाई के धनबल पर इतना भरोसा हो गया है कि वे समझते हैं कि सभी बिकाऊ हैं।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में 97,135 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। इन केंद्रों पर पोषण आहार योजना के तहत भोजन उपलब्ध कराए जाते हैं। जिसकी निगरानी अतिरिक्त मुख्य सचिव महिला और बाल विकास प्रमुख और सरकारी स्तर पर करते हैं, एसीएस को राज्य स्तर पर निदेशक, 10 संयुक्त निदेशक, 52 जिला कार्यक्रम अधिकारी और 453 सीडीपीओ द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। यह योजना मध्य प्रदेश सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्रालय चलाती है। फिलहाल यह मंत्रालय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के अधीन है।
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