आयुष्मान भारत: वे 7 बातें जो मोदी सरकार नहीं चाहती कि लोगों को पता चले
यहां इस नई स्वास्थ्य योजना को लेकर 7 ऐसे तथ्य दिए जा रहे हैं, जिनके बारे में देश को पता चले ऐसा पीएम मोदी, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और बीजेपी नहीं चाहती।
प्रधानमंत्री मोदी ने सितंबर में प्रधानमंत्री जन आरोग्य अभियान नाम की एक बहुत बड़ी स्वास्थ्य योजना की शुरुआत की। इसे चर्चित रूप से आयुष्मान भारत या नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन मिशन कहा जाता है। उन्होंने घोषणा की थी कि यह स्वास्थ्य को लेकर विश्व की सबसे बड़ी पहल है जो 27-28 यूरोपीय देशों की आबादी के बराबर भारत के लोगों के लिए फायदेमंद होगी।
प्रधानमंत्री ने घोषणा की, “कनाडा, मेक्सिको और अमेरिका की आबादी को मिलाकर जितने लोग होते हैं, इस योजना से लगभग उतने लोगों को फायदा पहुंचेगा।” उन्होंने दावा किया कि गरीबों और जरूरतमंदों को फायदा पहुंचाने के मामले में यह योजना ‘गेम-चेंजर’ होगी। इस योजना की औपचारिक घोषणा 25 सितंबर को हुई थी जो पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती भी है। लेकिन क्या सरकार की यह नई योजना सच में जरूरतमंदों को फायदा पहुंचा रही है जो पहले स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम थे?
प्रधानमंत्री के बड़े दावों के रोशनी में योजना का गंभीर विश्लेषण यह बताता है कि सरकार की यह पहल न तो विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना है और न ही उतनी प्रभावशाली है जितना सरकार द्वारा प्रदर्शित किया जा रहा है। विशेषज्ञों की राय है कि इस नीति का ‘डिजाइन दोषपूर्ण’ है जिसकी वजह से भ्रष्टाचार के रास्ते खुलते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह राज्यों की संवैधानिक अधिकारों को कमजोर करता है।
यहां इस नई स्वास्थ्य योजना को लेकर 7 ऐसे तथ्य दिए जा रहे हैं, जिनके बारे में देश को पता चले ऐसा पीएम मोदी, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और बीजेपी नहीं चाहती।
1. सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना?
पीएम मोदी देश से जो सबसे बड़ी गलत बात कहते आ रहे हैं, वह यह है कि आयुष्मान भारत सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना है और इसके तहत 10.74 करोड़ परिवारों को कवर किया जाएगा। उन्हें सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में 5 लाख तक की कैशलेस स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकेंगी।
जबकि नेशनल हेरल्ड को जो दस्तावेज मिले हैं, उनका विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि प्रधानमंत्री ने इस योजना के तहत फायदा पाने वाले लोगों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर पेश की है।
सच्चाई यह है कि कई राज्य पहले से अपनी स्वास्थ्य योजनाएं चला रहे थे जो सामूहिक रूप से उससे ज्यादा आबादी को कवर कर रही हैं जितना आयुष्मान भारत दावा कर रही है। सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि आयुष्मान भारत की घोषणा के दिन तक 12 करोड़ से ज्यादा परिवारों को पहले से ही कई राज्यों की मुफ्त स्वास्थ्य योजनाओं के तहत फायदा मिल रहा है।
उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र सरकार की महात्मा जोतिबा फूले जन आरोग्य योजना लगभग 2.2 करोड़ निम्न आय परिवारों को मुफ्त गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं देती है, जबकि आयुष्मान भारत के तहत राज्य के सिर्फ 83 लाख परिवारों को फायदा मिलने की बात कही गई है। उसी तरह, गोवा की स्वास्थ्य योजना सबके लिए है और इसके तहत 2.25 परिवारों को मुफ्त स्वास्थ्य कवर देती है। आयुष्मान भारत में राज्य के लगभग 37 हजार परिवारों को कवर देने की बात है।
2. गड़बड़ी का आरोप झेल रही जर्मनी की एक कंपनी को योजना में शामिल किया गया
रांची के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में इस योजना के बारे में बात करते हुए पीएम मोदी ने अपनी गरीब-हितैषी छवि पेश करने की कोशिश की और पूर्व की यूपीए सरकार को कई सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि गरीबों के नाम पर राज करने वाली पहले की सरकारों ने सरकारी खजाने को सबसे ज्यादा लूटा है।
अजीब बात यह है कि मोदी सरकार ने जर्मनी की एक तकनीकी सहायता पहुंचाने वाली कंपनी जीआईजेड को आयुष्मान भारत में परामर्शदाता के तौर पर शामिल किया है। ऐसा यह जानने के बावजूद किया गया कि इस कंपनी पर पूर्व में गड़बड़ी के आरोप थे।
जीआईजेड के भारत के मुखिया निशांत जैन को आयुष्मान भारत के डिप्टी सीईओ दिनेश अरोड़ा का करीबी माना जाता है। एक महत्वपूर्ण सूत्र ने यह बताया कि जैन ने कथित तौर पर लॉबी समूहों को फायदा पहुंचाने के लिए खास तरीके से योजना का खाका तैयार किया।
सूत्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “वास्तव में जैन निजी तौर पर योजना में काफी हिस्सेदारी रखते हैं। यह हिस्सेदारी उन्हें रिश्तेदारों के जरिये मिली है जो सॉफ्टवेयर, कार्ड आदि के वेंडर के तौर पर काम करते हैं।”
इस कंपनी को फिर से स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आयुष्मान भारत की नीति नियमावली बनाने का जिम्मा देना मोदी सरकार के दावे और इरादे पर कई सवाल खड़े करता है।
3. सात साल पुराने आंकड़े पर आधारित
पीएम मोदी ने यह दावा किया कि गरीबों और जरूरतमंदों को उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज यह योजना गेम-चेंजर है। 10 करोड़ परिवारों को इस योजना के तहत कवर करने का उनका इरादा है। विडंबना यह है कि सामाजिक-आर्थिक और जाति गणना के जिन आंकड़ों पर आयुष्मान भारत आधारित है, वह सात साल पुराना है।
इसके साथ ही जरूरतमंद के तौर पर योग्य होने के लिए कितने लोग घोषित शर्तों को पूरा करेंगे, यह देखने वाली बात होगी।
इसके अलावा योजना के पालन संबंधी प्रक्रियाओं से वाकिफ एक उच्च सूत्र ने बताया कि मोदी सरकार लाभार्थियों की संख्या कम करने की पुरजोर कोशिश कर रही है। इसके पीछे तर्क यह है कि फायदा उन्हीं परिवारों को मिलेगा जो अभी भी जरूरतमंदों की सूची में आते हैं, जबकि वह 7 साल पहले छपा था। बाकी बचे परिवारों को जो शर्तें नहीं पूरा करते, उन्हें योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा।
4. पारदर्शिता का संकट
मोदी सरकार का दावा है कि उसने योजना को लागू करने में आसानी पैदा करने के लिए तीसरी पार्टी प्रशासकों (टीपीए) की नियुक्ति की है। लेकिन कई लोगों को लगता है कि ऐसा जानबूझकर सत्ताधारी पार्टी के करीबी लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया है। स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के दावे को आगे बढ़ाने के लिए टीपीए को पैसे मिलते हैं, अगर वे धोखाधड़ी वाले हुए तो भी उन्हें पैसे मिलेंगे। सूत्रों के अनुसार, बीजेपी नेताओं और मंत्रियों के रिश्तेदारों को कथित तौर पर टीपीए बनाया गया है।
5. न्यूनतम जवाबदेही
पीएम मोदी ने रांची में इस बात को बहुत गर्व से कहा था कि देश के कम से कम 13 हजार अस्पतालों को आयुष्मान भारत योजना लागू करने के लिए साथ में लिया गया है। लेकिन विशेषज्ञों को लगता है कि स्वास्थ्य संरचनाएं महत्वपूर्ण हैं, संख्या नहीं।
आयुष्मान भारत के टेंडर दस्तावेजों के अध्ययन से यह बात पता चलती है कि किसी अस्पताल को पैनल से बाहर करना इतना कठिन है कि गंभीर भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद उन्हें पैनल से नहीं निकालना मुश्किल होगा। धोखाधड़ी को पांच श्रेणियों में बांटा गया है और किसी अस्पताल को बाहर नहीं किया जा सकता अगर किसी एक श्रेणी में तीन बार धोखाधड़ी न की गई हो। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि अस्पताल अलग-अलग श्रेणियों में गड़बड़ियां करते रह सकते हैं और उन्हें सुनवाई के लिए किसी कमिटी के सुपुर्द किए जाने से पहले कम से कम 10 मौके मिलेंगे।
इसके अलावा, इस योजना में अस्पतालों को स्वचालित ढंग से पैनल में डालने की भी व्यवस्था है जिन्हें पूर्व की स्वास्थ्य योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल किया गया था। यह बड़े पैमाने पर जानी हुआ बात है कि उस योजना के तहत पैनल में डाले गए कई अस्पतालों के पास बहुत खराब संरचनाएं थीं और वे पैनल में डाले जाने के योग्य भी नहीं थे। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे अस्पतालों को जाकर देखे-परखे बगैर स्वचालित रूप से शामिल किया जाना खतरनाक होगा और जमीन पर योजना को लागू करने में इससे समस्या आएगी।
6. नगद लाभ अच्छा विचार नहीं
आयुष्मान भारत के तहत सरकारी अस्पताल में की जाने वाली सर्जरी को बढ़ावा देने का विचार है। विशेषज्ञों की राय है कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों को सर्जरी के बदले नगद लाभ देने के विचार में समस्या है। अनैतिक मेडिकल गतिविधियों की चेतावनी देते हुए वे कहते हैं कि इसकी वजह से ऐसे मामलों में भी सर्जरी होने लगेगी जहां इसकी जरूरत नहीं है।
7. पार्टी के खजाने में जाता सार्वजनिक फंड
योजना के बारे में जानकारी बढ़ाने के लिए टोल फ्री नंबर (14555) को लांच करते हुए पीएम मोदी ने दावा किया था कि आयुष्मान भारत सभी भविष्य की स्वास्थ्य योजनाओं के लिए एक मॉडल होगा।
लेकिन, विश्लेषकों को कुछ और ही लगता है। उनका दावा है कि मोदी सरकार ने दशकों पुराने इंश्योरेंस मॉडल को दरकिनार करते हुए ट्रस्ट मॉडल को इसलिए स्वीकार किया क्योंकि उनका एक ही इरादा था कि पार्टी के खजाने में सार्वजनिक फंड को भेजा जाए। चूंकि ट्रस्ट मॉडल में किसी दावे को न तो खारिज किया जा सकेगा और न ही उसे सही ठहराया जा सकेगा, तो उससे भ्रष्टाचार के लिए रास्ते खुल जाएंगे।
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