अशोक गहलोतः राजस्थान की राजनीति का ऐसा ‘जादूगर’ जिसकी विनम्रता के विरोधी भी हैं कायल

राजस्थान की राजनीति में जातीय वर्चस्व को तोड़ सत्ता के शिखर तक पहुंचने वाले और सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाले अशोक गहलोत को राजस्थान की राजनीति का जादूगर कहा जाता है, जिनकी विनम्रता के उनके विरोधी भी कायल हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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आसिफ एस खान

राजस्थान के विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर चल रही अटकलें खत्म हो गई हैं। राज्य के विधायकों और वरिष्ठ नेताओं से गहन चर्चा के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राज्य की सियासत के ‘जादूगर’ अशोक गहलोत को एक बार फिर राज्य की कमान सौंपने का फैसला लिया है। नतीजों के बाद राज्य में सीएम के नाम पर चली लंबी कश्मकश के बाद पार्टी ने राज्य के इसी जादूगर पर भरोसा जताया है जो सबको साथ लेकर आगे बढ़ने के लिए जाना जाता है।

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दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत माली समाज से आते हैं, जो पिछड़ा वर्ग में आता है। गहलोत के परिवार का खानदानी पेशा किसी जमाने में जादूगरी का करतब दिखाना था। गहलोत के पिता भी एक जादूगर थे। लिहाजा अशोक गहलोत ने भी जादूगरी में हाथ आजमाया, लेकिन राजनीति के मंच पर और राज्य के ऐसे सबसे बड़े नेता बनकर उभरे, जिसका जादू समाज के हर वर्ग पर चलता है।

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शुरुआती जीवन की बात करें तो अशोक गहलोत का जन्‍म 3 मई 1951 को राजस्थान के जोधपुर में हुआ। गहलोत ने विज्ञान और कानून में स्‍नातक और अर्थशास्‍त्र में एमए की डिग्री हासिल की। छात्र जीवन से ही समाजसेवा और राजनीति में सक्रिय रहे गहलोत का विवाह 27 नवंबर, 1977 को सुनीता गहलोत से हुआ। एक पुत्र वैभव गहलोत और एक पुत्री सोनिया गहलोत के पिता गहलोत को घूमना-फिरना काफी भाता है और कहीं भी सड़क पर कड़क चाय पीने के शौकीन हैं।

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सामाजिक जीवन की की बात करें तो गहलोत ने बांग्‍लादेश युद्ध के दौरान 1971 में पश्चिम बंगाल के बनगांव और 24 परगना जिलों में शरणार्थी शिविरों में पीड़ितों की सेवा से शुरुआत की। इसके बाद राजनीतिक जीवन कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से शुरू हुआ। कहा जाता है कि 70 के दशक में गहलोत पर खुद इंदिरा गांधी की नजर पड़ी थी। कुछ लोगों के अनुसार उस समय 20 साल के रहे गहलोत को इंदिरा गांधी ने राजनीति में आने की सलाह दी। जिसके बाद गहलोत ने कांग्रेस के इंदौर में हुए सम्मेलन में हिस्सा लिया और वहीं उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई। संजय गांधी, गहलोत की क्षमता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें राजस्थान एनएसयूआई का अध्यक्ष बना दिया। गहलोत 1973 से 1979 तक राजस्‍थान एनएसयूआई के अध्‍यक्ष रहे और इस दौरान उन्‍होंने संगठन को काफी मजबूत कर दिया। इसके बाद गहलोत कांग्रेस के जोधपुर जिला अध्यक्ष बने और फिर प्रदेश कांग्रेस के महासचिव भी बनाए गए।

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कांग्रेस में वह दौर युवा नेतृत्व के उभार का दौर था। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, वायलार रवि, एके एंटनी, गुलाम नबी आजाद के साथ अशोक गहलोत भी इसी दौर में पार्टी में उभर रहे थे। अपने स्वभाव के अनुरूप गहलोत राजस्थान में लो प्रोफाइल रहते हुए काम करते रहे। लेकिन संजय गांधी की विमान हादसे में मौत के बाद जब राजीव गांधी पार्टी में सक्रिय हुए, तब उन्होंने गहलोत पर भरोसा जताते हुए उन्हें केंद्र की इंदिरा गांधी की सरकार में राज्यमंत्री बनाने की सिफारिश कर दी। इसके बाद गहलोत इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पी वी नरसिम्‍हा राव की सरकारों में तीन बार केन्‍द्रीय मंत्री बने।

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गहलोत ने अपना पहला चुनाव 1980 में जोधपुर लोकसभा क्षेत्र से लड़ा और जीत दर्ज किया। जोधपुर से वह पांच बार 1980-1984, 1984-1989, 1991-96, 1996-98 और 1998-1999 लोकसभा पहुंचे। इस दौरान गहलोत राज्य और केंद्र की सरकारों में मंत्री रहने के साथ ही पार्टी संगठन में सक्रिय रहे। गहलोत को 3 बार राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्‍यक्ष रहने का गौरव प्राप्‍त है। पहली बार गहलोत महज 34 साल की उम्र में ही राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्‍यक्ष बनाए गए थे। गहलोत ने 1985 से 1989, 1994 से 1997 और 1997 से 1999 के बीच राजस्‍थान कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाला।

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संगठन से लेकर सरकार में अनुभव के कारण ही पार्टी ने 1998 में गहलोत को राज्य के मुख्यमंत्री की कमान पहली बार सौंपी। उनका यह कार्यकाल अन्‍य महत्‍वपूर्ण उपलब्धियों के अलावा अभूतपूर्व अकाल प्रबंधन के लिए जाना जाता है। इसी कार्यकाल के दौरान राजस्‍थान में सदी का सबसे भयंकार अकाल पड़ा था। कहा जाता है कि गहलोत के प्रभावी और कुशल प्रबंधन से अकाल पीड़ितों तक इतना अनाज पहुंचाया गया, जितना अनाज वे लोग शायद अपने खेतों से भी नहीं हासिल कर पाते। गहलोत को गरीब-असहाय लोगों की पीड़ा को समझने वाले राजनेता के रूप में जाना जाता है। यही वजह थी कि अशोक गहलोत 13 दिसंबर 2008 को दूसरी बार राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री बने।

अशोक गहलोतः राजस्थान की राजनीति का ऐसा ‘जादूगर’ जिसकी विनम्रता के विरोधी भी हैं कायल

राजधानी दिल्ली में आईएनए मार्केट के ठीक सामने दिल्ली हाट के निर्माण का श्रेय गहलोत को ही जाता है। इस हाट के निर्माण से देश भर के शिल्पकारों, हस्तशिल्पकारों के बनाए उत्पाद बिना किसी बिचौलिए के सीधे ग्राहकों तक पहुंचते हैं, जिससे इन हस्तकलाओं को फलने-फुलने का एक बड़ा जरिया मिला।

अशोक गहलोतः राजस्थान की राजनीति का ऐसा ‘जादूगर’ जिसकी विनम्रता के विरोधी भी हैं कायल

राजस्थान की राजनीति के सबसे अहम जातीय वर्चस्व को तोड़ एक कमजोर माने जाने वाले समाज से आए अशोक गहलोत वर्तमान में राजस्थान की राजनीति में सबसे बड़े जननेता हैं। गहलोत की विनम्रता के उनके विरोधी भी कायल हैं। ये उनकी विनम्रता का ही जादू है कि राजस्थान जैसे प्रदेश में जहां की राजनीति में क्षत्रिय, जाट, गुर्जर और ब्राह्मण हमेशा से प्रभावी रहे हैं, वहां पिछड़ा माने जाने वाले समाज के गहलोत ने अपने आपको सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित किया। सदा मुस्कुराते रहने वाले गहलोत राज्य की सभी जातियों खासकर पिछड़ी जातियों में सर्वमान्य नेता हैं। यही वजह रही कि सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अशोक गहलोत को तीसरी बार राज्य की बागडोर सौंपी है।

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Published: 14 Dec 2018, 11:08 PM