बीजेपी की एक और सरकार अडानी पर मेहरबान, झारखंड सरकार ने नियमों को ताक पर रख आदिवासियों की जमीन छीनकर सौंपी
झारखंड की बीजेपी सरकार ने नियमों की अनदेखी कर गोड्डा जिले के आदिवासियों की जमीन अडानी समूह को दे दी है। कंपनी के कर्मचारियों ने खड़ी फसलें तबाह कर जबरन जमीन पर कब्जा कर लिया है। आदिवासियों का आरोप है की उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है।
झारखंड के गोड्डा जिले के आदिवासी किसान खेती करने और अच्छी फसल होने के बावजूद दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं। इसका कारण है कि उनके फसल लगे खेतों को अडानी समूह की कंपनी ने जबरन कब्जा कर लिया है और उसपर लगी फसलों को भी पूरी तरह से तबाह कर दिया है। ये मामला गोड्डा जिले के माली (आदिवासी बहुल गांव) और उसके आसपास के कई गावों का है। गांव वालों का आरोप है कि अडानी के कर्मचारियों ने उनकी जमीन कब्जाने के लिए खड़ी फसलें तबाह कर दीं। अब फसल उजड़ जाने से वह दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं और जमीन तो गई वो अलग। आदीवासियों का कहना है कि सरकार के इस फैसले के खिलाफ उन्होंने सरकारी दफ्तरों से लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कहीं उनकी सुनवाई नहीं हो रही है।
इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार यह प्रशासनिक मिलीभगत के जरिये ग्रामीणों की जमीन हथियाने का मामला है। रिपोर्ट के अनुसार गोड्डा जिले के माली और उसके आसपास के कई गावों की खेती योग्य भूमि अडानी समूह की एक कंपनी को देने में झारखंड सरकार ने नियमों का खुला उल्लंघन किया है। इसके लिए संशोधित भूमि अधिग्रहण कानून का बड़े स्तर पर उल्लंघन भी किया गया। यही नहीं, इसको लेकर मई 2016 में प्रदेश की बीजेपी सरकार द्वारा आदिवासियों से संबंधित कानून में किया गया संशोधन भी सवालों के घेरे में है। सरकार की मदद से अडानी समूह ने यहां की जिन जमीनों का अधिग्रहण किया है, वे सभी आदिवासी बहुल गांवों की हैं।
इन गांव के आदिवासी आज भी अपनी जमीन वापस पाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इंडियास्पेंड की रिपोर्ट में गांव के आदिवासियों ने अपनी पूरी दास्तान बताई है। रिपोर्ट के अनुसार माली गांव के लोगों ने बताया कि इस साल 31 अगस्त को भारी पुलिस बल और बुलडोजर के साथ अडानी की कंपनी के लोग गांव पहुंचे और जबरन उनके खेतों पर कब्जा कर लिया। इस दौरान पुलिस के भारी बंदोबस्त के आगे उनके विरोध को दबा दिया गया। एक आदमी के मुकाबले 10-10 पुलिस जवानों के बल पर बिना उनकी सहमति के कंपनी के लोगों ने कंटीले तारों से जमीनों की घेराबंदी कर कब्जा कर लिया। इस दौरान अपनी जमीन बचाने के लिए ग्रामीण आदिवासी औरतों ने रोते हुए कंपनी के अधिकारी के पैर तक पकड़े, लेकिन, उनकी एक नहीं सुनी गई और उन्हें बलपूर्वक हटा दिया गया।
रिपोर्ट के अनुसार फर्जी तरीके से बलपूर्वक अपने खेतों पर किये जा रहे कब्जे को रोकने के लिए जब आदिवासियों ने जिले के एसपी और जिलाधिकारी से संपर्क किया, तो उन्हें वहां से भी न्याय नहीं मिला। आदिवासियों का कहना है कि एसपी ने तो उन्हें उल्टा स्थानीय थाने में शिकायत दर्ज कराने की सलाह दे दी, जबकि स्थानीय पुलिस ही जमीन पर जबरन कब्जा दिलाने आई थी। वहीं, जिलाधिकारी ने भी कोई कार्रवाई नहीं करते हुए कहा कि उनकी जमीन का मुआवजा सरकार के पास है।
दरअसल जमीन अधिग्रहण के इस पूरे मामले की शुरुआत 2016 से होती है। रांची से करीब 380 किलोमीटर दूर इस जगह पर अडानी समूह की ‘अडानी पावर (झारखंड) लिमिटेड’ ने ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया से आयात कोयले से 1,600 मेगावाट का एक ‘कोल पावर प्लांट’ लगाने का फैसला किया है। इसके लिए पीएम मोदी के बेहद करीबी माने जाने वाले अडानी की कंपनी ने झारखंड सरकार से करीब 2,000 एकड़ जमीन की मांग की। कंपनी का लक्ष्य 2022 तक इस प्लांट से बिजली का उत्पान शुरू करना है। यहां से पैदा हुई सारी बिजली बांग्लादेश को बेची जाएगी। इस प्लांट का मसौदा अगस्त, 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश दौरे के दौरान ही तैयार हुआ था। उस दौरे में पीएम मोदी के साथ बांग्लादेश गए उद्योगपतियों में गौतम अडानी भी शामिल थे।
रिपोर्ट के मुताबिक आदिवासी बहुल माली समेत इसके आसपास के मोतिया, नयाबाद और गंगटा गांव की जमीनों का अधिग्रहण में नियमों का खुला उल्लंघन हुआ है। इस अधिग्रहण में सितंबर, 2013 में संसद से पारित नये जमीन अधिग्रहण कानून ‘राइट टू फेयर कंपनसेशन एंड ट्रांसपरेंसी इन लैंड एक्यूजिशन रिहैबिलिटेशन एंड रिसेटलमेंट एक्ट’ (एलएएआर) का पूरा उल्लंघन किया गया। नये कानून में अधिग्रहण के लिए गांव की बहुसंख्यक आबादी की रजामंदी सुनिश्चित की गयी है। लेकिन, अडानी समूह के लिए किये गए अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया ही गलत है। यही नहीं इस अधिग्रहण को लेकर झारखंड सरकार द्वारा आदिवासी कानून में किये गए संशोधन पर भी सवाल उठ रहे हैं, जिसके अनुसार सार्वजनिक हित को देखते हुए व्यवसायिक उपयोग के लिए आदिवासियों की जमीन खरीदी जा सकती है। इंडियास्पेंड ने अपनी रिपोर्ट में अडानी समूह की इस परियोजना के उद्देश्यों पर भी सवाल खड़े किये हैं, क्योंकि इस प्लांट से पैदा होने वाली सारी बिजली बांग्लादेश को बेची जानी है।
इलाके के आदिवासियों समेत प्रभावित ग्राम सभाओं ने इस मामले को लेकर सभी सरकारी विभागों सहित राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को भी पत्र लिखकर गुहार लगाई। लेकिन, अब तक कहीं उनकी सुनवाई नहीं हुई है। जबकि, यहां के राज्यपाल को आदिवासी समुदाय से जुड़े मामलों में दखल देने का विशेषाधिकार प्राप्त है। आदिवासियों का आरोप है कि उनकी परेशानी को कोई महसूस नहीं कर रहा है। गरीब आदिवासियों का कहना है कि उन्होंने महीनों दिन-रात मेहनत कर खेती की थी, लेकिन कंपनी के लोगों ने उनकी तैयार फसलें तबाह कर दीं। फसल उजड़ जाने से वे दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए हैं। जमीन को लेकर इलाके में हिंसक विरोध प्रदर्शन भी हो चुके हैं। गांव वालों का साफ कहना है कि वे अपनी आवाज उठाते रहेंगे, क्योंकि उनकी जमीन ही उनके लिए सब कुछ है।
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