मोदी सरकार के चुनावी बजट से पश्चिमी यूपी के किसानों में उबाल, बोले- हमने राहत मांगी थी,  खैरात नहीं

देश का ग्रीन बेल्ट कहे जाने वाले पश्चिमी यूपी के किसान मोदी सरकार द्वारा 6 हजार रुपये सालाना की मदद देने के ऐलान को खुद का मजाक उड़ाने वाला बता रहे हैं। उनका मानना है कि सरकार का ये ऐलान रिश्वत की तरह है ताकि चुनाव में किसान अपने मुद्दों पर बात न करें।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
फोटोः आस मोहम्मद कैफ
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आस मोहम्मद कैफ

चुनाव से ठीक पहले आए मोदी सरकार के चुनावी बजट में किसानों को 6 हजार रुपये सालाना की मदद देने की घोषणा की गई है। यह रकम एक किसान परिवार को दी जाएगी। इसके लिए कुछ शर्तें लागू की गई हैं। जिनमें से एक यह है कि लाभार्थी किसान 2 हेक्टेयर जमीन से ज्यादा का मालिक नहीं होना चाहिए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह जमीन लगभग 5 एकड़ या 27 बीघा बनती है। ग्रीन बेल्ट कहे जाने वाले पश्चिमी यूपी के किसान इस योजना को खुद का मजाक बनाने वाला फैसला बता रहे हैं। किसानों का मानना है कि सरकार की यह रकम रिश्वत की तरह है ताकि चुनाव में किसान अपने मुद्दों पर बात न करें।

कैराना के किसान सुधीर भारतीय कहते हैं कि किसान इतनी जमीन पर एक साल में खाद पानी और देखभाल पर लगभग सवा लाख रुपए खर्च कर रहा है। सूबे की सरकार सिर्फ बिजली के 18 हजार रुपये ले रही है। उसके एक बच्चे की स्कूल की फीस 10 हजार रुपये सलाना के आसपास है। भारतीय कहते हैं, “सरकार एक परिवार को 17 रुपये रोजाना देकर किसान की खिल्ली उड़ा रही है। हमें इसकी जरूरत नही है। हमें हमारी फसलों का उचित दाम मिले। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू हो। किसानों के गन्ने का लगभग 10 हजार करोड़ रुपया बकाया है। सरकार हमारा पैसा हमें लौटा दे, हमें भीख नही चाहिए।”

मंसूरपुर के गांव जीवना में 18 बीघा की खेती करने वाले इस्लाम अहमद के अनुसार मोदी ने वादा तो 15 लाख का किया था, लेकिन अब 6 हजार देने की बात कही है। इसमें भी 3 किश्त है। इस बार वो पक्का देंगे, लेकिन आगे की गारंटी नहीं है। इस्लाम की बीवी मुनाजरा के मुताबिक इस्लाम 500 रुपये की एक महीने में सिर्फ बीड़ी पी जाते हैं।

शामली में एक शुगर मिल पर किसान गन्ने के भुगतान को लेकर एक सप्ताह से भी ज्यादा समय से धरने पर बैठे रहे। कोई सुनवाई नहीं होने पर थक जाने की वजह से उन्हें खुद ही धरने से उठना पड़ा। भुगतान के नाम पर उन्हें सिर्फ सरकारी भरोसा दिया गया। इसी धरने के दौरान आत्महत्या के इरादे से एक किसान जयपाल सिंह पानी की टंकी पर चढ़ गया था। अब इस बजट के बाद जयपाल सिंह का कहना है, "यह ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है। सरकार गुड़ दिखाकर डले (कंकर) मार रही है। हमें बस हमारी मेहनत का फल दे दो।”

सिर्फ किसान ही नहीं बल्कि किसान नेता भी सरकार के इस फैसले पर नाराजगी जता रहे हैं। किसानों के संगठन भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सरकार के इस बजट की कड़ी आलोचना की है। टिकैत कहते हैं, “जनता इस बजट का जवाब चुनाव में देगी। किसान स्वाभिमानी समाज है, वह मेहनत करके अपना और देश के लोगों का पेट भरता है। उसे किसी खैरात की जरूरत नही है। उसे उसका अधिकार चाहिए।”

टिकैत ने कहा कि किसानों को उम्मीद थी कि सरकार स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करेगी। फसलों के समर्थन मूल्य पर सौ फीसद खरीद का प्रावधान होगा। किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए सम्पूर्ण कर्ज माफी होगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। किसान नेता ने कहा, “अब 500 रुपये महीना उनके जले पर नमक छिकड़ने जैसा है। किसान उम्मीद कर रहा था कि उसकी फसल बीमा योजना का प्रीमियम कम होगा। दूध के गिरते दामों को रोकने का प्रावधान होगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ है।”

शुक्रवार को पेश अंतरिम बजट में किसान सम्मान निधि को लागू करने की घोषणा की गई। जिसमें हर चार महीने बाद दो हेक्टेयर से कम जोत वाले किसानों को 2 हजार रुपये सीधे उनके बैंक खाते में मिलेंगे। शामली के किसान शुभम मलिक कहते हैं, "अभी सरकार के पास कंडीशन नाम का इक्का है। पहले कर्जमाफी का तगड़ा शोर मचाया गया, फिर इतनी शर्तें सामने आई कि किसान ठगा सा रह गया।”

केंद्र सरकार के मुताबिक इस योजना से 12 करोड़ किसान लाभांवित होंगे। सुधीर कहते हैं, "अगर आने वाले कल में सरकार यह शर्त लगा दे कि जिस किसान के पास ट्रैक्टर या बुग्गी भैंसा है, तो वो इस योजना से बाहर है या आधार कार्ड जैसी विशेष किसान कार्ड जैसा कुछ नया ले आए तो फिर क्या होगा! दरअसल बात 2 हजार की है ही नहीं। बात नीयत की है और यह सरकार पूंजीपतियों की है इसलिए हमें इनकी मंशा पर शक है। योजना को पीछे से यानि दिसंबर से लागू करने का मतलब साफ है इस काम मे चुनाव है, वोट है"।

बागपत के युवा किसान आरिफ राजपूत कहते हैं कि किसानों को हमेशा से हाथों की ताकत पर यकीन रहा है और वह अपना भविष्य खुद चुनता रहा है। उन्होंने कहा कि किसानों को 6 हजार रुपये की मदद किसान सम्मान नहीं बल्कि किसानों के अपमान की योजना है।

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