बीजेपी की कोशिशों के बावजूद अलीगढ़ में सौहार्द कायम, एएमयू बन रहा एकता का केंद्र
एएमयू में चल रहे छात्रों के आंदोलन में बड़ी तादाद में गैर-मुस्लिम आंदोलनकारियों और बुद्धिजीवियों के शामिल होने से यह आंदोलन हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बनता जा रहा है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में चल रहे छात्रों के आंदोलन का फलक व्यापक होता जा रहा है और अब यह सिर्फ छात्र आंदोलन का ही केंद्र नहीं रह गया है, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता का भी प्रतीक बनता जा रहा है। एएमयू के आंदोलन में शिरकत करने के लिए बड़ी तादाद में देश भर से गैर-मुस्लिम आंदोलनकारी और बुद्धिजीवी शामिल हो रहे हैं। हालांकि, 7 मई को परीक्षा का कार्यक्रम आने से छात्रों में बेचैनी बढ़ गई है, क्योंकि आंदोलन में शामिल छात्र 12 मई से परीक्षा देने के लिए तैयार नहीं हैं।
विश्वविद्यालय की ओर से परीक्षा कार्यक्रम जारी करने और अलीगढ़ प्रशासन और राज्य सरकार की हठधर्मिता के वावजूद छात्रों ने आन्दोलन की आंच को धीमी नहीं होने दी है। 8 मई को एएमयू गेट पर धरना प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने मानव श्रंखला बनाकर अपना विरोध दर्ज कराया। इस मानव श्रंखला में लगभग 15000 से ज्यादा छात्र और प्रोफेसर शामिल हुए। छात्रों का कहना है कि जब तक उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के कार्यक्रम में उपद्रव करने वाले हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है, उनका आन्दोलन जारी रहेगा।
दूसरी ओर, बीजेपी-आरएसएस, हिंदू युवा वाहिनी समेत अन्य कई संगठनों ने हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है। इन संगठनों द्वारा राजा महेंद्र प्रताप सिंह के पोते गरुण ध्वज सिंह को आगे कर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का नाम बदलने की मांग उठाई जा रही है। ये लोग राजा महेंद्र प्रताप सिंह की फोटो को लेकर पहले ही जिलाधिकारी के यहां धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं।
लेकिन इस मामले में सच्चाई ये है कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह की फोटो पहले से ही विश्वविद्यालय के सेंट्रल हॉल में लगी हुई है। विडंबना है कि महाराजा महेंद्र प्रताप सिंह वामपंथी-प्रगतिशील रुझान के माने जाते थे और वह आजीवन एएमयू के खैरख्वाह माने जाते रहे।
इस बारे में एएमयू के छात्र कामरान ने नवजीवन को बताया कि महाराजा महेंद्र प्रताप सिंह और उनके पिता राजा घनश्याम सिंह बहादुर बराबर एएमयू की मदद करते रहे, छात्रों को वजीफा देते रहे और आज उनके वारिस अलीगढ़ की शान के खिलाफ बिना किसी वजह के अभियान चला रहे हैं। दरअसल, बीजेपी इसे किसी भी कीमत पर हिंदू प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाकर राजनीति करने की फिराक में है।
इस बीच प्रशासन ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वह रमजान से पहले ही इस मामले की जांच आदि पूरी करा लेना चाहता है। रमजान के समय आंदोलन के दूसरी दिशा में जाने का डर है। इस बारे में एएमयू के सेंटर फॉर वुमन स्टडीज में प्राध्यापक तरुशिखा ने बताया, “बीजेपी और संघ के लोग चुन-चुन कर छात्रों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। पहले जिन्ना की फोटो पर हंगामा कर रहे थे, अब सर सय्यद को भी घसीट रहे हैं। जिन्होंने इस विश्वविद्यालय को बनाया, उन्हीं के खिलाफ सोच-समझ कर अभियान चलाया जा रहा है। शहर में भी नफरत फैलाने और दंगा भड़काने की कोशिश चल रही है। वॉटस्एप पर ‘जयश्री राम’ का नारा लगाती बाइक रैली की वीडियो चलाई जा रही है। लेकिन अभी तक वे तनाव नहीं पैदा कर पाएं है।” आंदोलन में शामिल छात्रों के लिए अलीगढ़ शहर के कई मुसलमान और हिंदू परिवार के घरों से खाना आ रहा है।
तमाम अध्यापकों का यह मानना है कि छात्रसंघ द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन की सबसे बड़ी जीत यह है कि इसने अपने फोकस को जरा भी नहीं बदला है। न तो वे जिन्ना की फोटो पर कुछ बोल रहे हैं और न ही सर सय्यद पर। उनकी मांग है कि देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पर हमला करने वालों के खिलाफ और छात्रों पर बर्बर लाठीचार्ज करने वाले दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई हो और घटना की हाईकार्ट के जज से समयबद्ध न्यायिक जांच हो। इस मांग को लेकर ही ये आंदोलन चल रहा है और इसके समर्थन में देश-विदेश से लोग जुट रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ की अध्यक्ष गीता कुमारी और पूर्व अध्यक्ष मोहित कुमार, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन से जुड़े वकील सहित बड़ी संख्या में सिविल सोसायटी के नुमाइंदे पहुंच रहे हैं। 8 मई को बाब-ए-सय्यद गेट पर हुई बैठक में एम्स के रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हरजीत सिंह भाटी, जेएनयू के फारूख आलम शरीक हुए।
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