अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद अब आगे क्या होगा?

कोर्ट के फैसले से असंतुष्टि की स्थिति में कोई भी पक्षकार सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है। अगर इसके बाद भी पक्षकार कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं होता है तो उसके पास उपचार याचिका दाखिल करने का मौका होगा।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

कई दशकों से चले आरहे अयोध्या विवादित जमीन मामले में आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को अपना फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ द्वारा सुनाए गए कोर्ट के फैसले के मुताबिक मस्जिद निर्माण के लिए मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन दी जाएगी। आइये जानते हैं कि क्या ये कोर्ट का अंतिम फैसला है या इसके बाद भी इस केस में कोई गुंजाइश रह जाएगी।

कोर्ट के फैसले के बाद अगर किसी भी पक्ष को ये लगता है कि फैसला उनके पक्ष में नहीं आया है तो उस पक्ष के पास रिव्यू पीटिशन का मौका होगा। जिसके मुताबिक कोर्ट के फैसले से असंतुष्टि की स्थिति में कोई भी पक्षकार सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है। इस पर बेंच फिर से सुनवाई कर सकती है। हालांकि इस याचिका पर सुनवाई कोर्ट रूम में की जाएगी या जज के चैंबर में, इस निर्णय को लेने का पूरा अधिकार कोर्ट के पास होगा। कोर्ट चाहेगी तो याचिका खारिज कर सकती है या उसे इससे ऊपर के बेंच को ट्रांसफर कर सकती है।


पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के बाद भी कोई पक्षकार अगर असंतुष्ट रहता है तो, उसके पास एक और मौका होगा। जिसे क्यूरेटिव पिटीशन यानी उपचार याचिका कहा जाता है। क्यूरेटिव पिटीशन और पुनर्विचार याचिका में थोड़ा अंतर होता है। उपचार याचिका में फैसले की जगह मामले में उन मुद्दों या विषयों को चिन्हित करना होता है जिसमें उन्हें लगता है कि इन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। पुनर्विचार याचिका की तरह क्यूरेटिव पिटीशन पर भी बेंच या तो सुनवाई कर सकता है या फिर उसे खारिज कर सकता है।

बता दें कि इसी साल 6 अगस्त को इस मामले की सुनवाई शुरू हुई थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच द्वारा 40 दिन तक लगातार सुनवाई के बाद अयोध्या भूमि विवाद मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। रंजन गोगोई के अलावा बेंच में जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस एस अब्दुल नजीर भी शामिल रहे।

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