6 दिसंबर 1992 से आगे बढ़ना चाहते हैं अयोध्या के लोग
अयोध्या की पहचान बाहर ‘राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद’ से ही होती है। लेकिन अयोध्या के पास इन दोनों के अलावा और भी बहुत कुछ है कहने को। अयोध्या के लोग इस विवाद को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं।
उत्तर प्रदेश में लंबे अरसे के बाद बीजेपी की सरकार बनी है। इससे पहले, सपा और बसपा के शासनकाल में कोई मुख्यमंत्री अयोध्या नहीं गया। लेकिन मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 8 महीने में ही 5 बार अयोध्या का दौरा कर चुके हैं। इससे यह तो अंदाजा लग ही जाता है कि अयोध्या विवाद सरकार के राजनीतिक एजेंडे में शामिल है।
अयोध्या की पहचान बाहर 'राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद' से ही होती है। लेकिन अयोध्या के पास इन दोनों के अलावा और भी बहुत कुछ है कहने को। अयोध्या के लोग अब इस विवाद को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं।
यहां के मंदिर-मस्जिद को लेकर दूसरे शहरों में तनाव दिखता है, लेकिन अयोध्या में ऐसा तनाव नहीं है। राम जन्मभूमि के आसपास के चौराहे आबाद होकर अब बाजार में तब्दील हो गए हैं। हनुमानगढ़ी से राम जन्मभूमि दर्शन मार्ग पर नया बाजार और राम गुलेला बाजार प्रमुख हैं। हनुमान गढ़ी और उसके आसपास की सड़कों पर दोनों तरफ दुकानें हैं। इनमें चूड़ियों की दुकानें, सिंदूर और चंदन की दुकानें, मूर्तियों की दुकानें, धार्मिक साहित्य की दुकानें, पूजन सामग्री की दुकानें हैं। अयोध्या की ख्याति भले ही हिंदू तीर्थस्थल की है, लेकिन मंदिरों में हर जाति के महंत हैं और सड़कों पर हर जाति और धर्म के दुकानदार अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं।
बाबरी मस्जिद मुद्दे के मुख्य पैरवीकार इकबाल अंसारी ने कहा, "जब-जब 6 दिसंबर आता है तो नेता सक्रिय हो जाते हैं और फिर इसके बाद मुद्दे पर सभी चुप्पी साध लेते हैं। अब इस मामले में फैसला हो ही जाना चाहिए। लोग राजनीति करने के लिए इस मुद्दे को हल होने नहीं देना चाहते।" हकीकत यह है कि कोई नहीं चाहता कि यह मामला अब और आगे बढ़े। बहुत सारे दूसरे काम भी हैं। महज माहौल बनाने के लिए बीच-बीच में शिगूफा छोड़ दिया जाता है।
निर्मोही अखाड़े के महंत दीनेंद्र दास कहते हैं कि यहां की आम जनता चाहती है कि जल्द से जल्द इस मुद्दे का समाधान निकल जाए और अयोध्या में भी विकास हो।
हनुमान गढ़ी से जब राम जन्मभूमि की ओर चलते हैं तो खंडहरों और उजड़े मंदिरों की उदासी बढ़ जाती है। राम जन्मभूमि के आसपास कड़ी सैनिक सुरक्षा है। वहां रामलला विराजमान की सुरक्षा के लिए तीन अलग-अलग घेरे बनाए गए हैं। सीआरपीएफ की इस पर हर समय पैनी नजर रहती है। यहां एक समय में सीआरपीएफ जवानों की 5 कंपनी और एक महिला कंपनी तैनात रहती है। 8-8 घंटे की ड्यूटी के लिहाज से यहां अर्धसैनिक बलों की 12 कंपनियां तैनात हैं। खुफिया कर्मियों की नजरें हर दर्शनार्थी पर टिकी रहती हैं।
राम जन्मभूमि के दर्शन मार्ग पर चाय बेचने वाले अशोक सैनी कहते हैं कि रात में यदि कोई बीमार हो जाए, तो उसे अस्पताल ले जाने की कोई व्यवस्था ही नहीं है। सुरक्षा के कारणों से बाहर से गाड़ियां नहीं आ सकतीं। पूरे 70 एकड़ के अधिग्रहीत परिसर में 13 वाच टावर एवं 2 दर्जन के करीब मोर्चे हैं। दो बुलेटप्रूफ कारें भी मौजूद हैं। इन क्षेत्रों में 14 कंपनी पीएसी के अलावा करीब सिविल पुलिस के डेढ़ हजार जवान तैनात हैं। पूरे रेड जोन में 44 सीसीटीवी कैमरे हैं। येलो जोन में भी 64 सीसीटीवी एवं ऑटो डोम कैमरे लगाए जा रहे हैं। सुरक्षा बढ़ने के बाद बढ़ी बंदिशों के कारण स्थानीय लोगों के साथ-साथ बाहर से आने वालों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। राम जन्मभूमि आने वाले हर रास्ते पर बैरिकेडिंग की गई है।
राम जन्मभूमि के करीब जलपान की दुकान चलाने वाले हरिराम सिंह यादव कहते हैं, "बाजार तो गुलजार हुए हैं, लेकिन मूलभूत सुविधाओं का अब भी अभाव है। रोडवेज बस अड्डा समाप्त हो जाने के कारण दिक्कत है। दर्शनार्थियों के लिए और सुविधाएं जुटाई जानी चाहिए। मेलों के दौरान कतार में लगे दर्शनार्थियों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।"
हनुमान गढ़ी में चूड़ी बेचने वाले कमाल अंसारी कहते हैं, "अयोध्या हमारी जन्मभूमि है, हम यहीं पैदा हुए, यहीं बड़े हुए, यहीं पर रोजी-रोटी चलती है, हमें तो आज तक कोई परेशानी नहीं है। हमें नहीं पता कि यह हिंदू-मुसलमान झगड़ा किसने पैदा किया। यह करने वाले अयोध्या के लोग नहीं हैं।"
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