शहीद के परिवार का फिर अपमान: मोदी की रैली में पहुंची शहीद की मां को लिया हिरासत में, बहन को खींचकर निकाला गया 

पीएम मोदी की रैली में पहुंची एक शहीद की मां को गुजरात के सुरेन्द्रनगर में स्थानीय क्राइम ब्रांच ने हिरासत में ले लिया। वे पीएम मोदी के सामने अपनी बात रखना चाहती थीं।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी का हमेशा यह दावा रहता है कि वे सबसे बड़े राष्ट्रवादी हैं और सेना के हितों के बहुत बड़े रक्षक हैं, लेकिन 3 दिसंबर को गुजरात के सुरेन्द्रनगर में उस दावे की पोल खुलती नजर आई। स्थानीय क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने एक शहीद की मां को हिरासत में ले लिया। उन पर आरोप लगाया गयाा कि वे प्रधानमंत्री मोदी के लिए बनाए गए एसपीजी द्वारा सुरक्षित घेरे में घुसने की कोशिश कर रही थीं। प्रधानमंत्री वहां एक रैली को संबोधित करने वाले थे और अभी पहुंचे भी नहीं थे। उनकी उम्र 60 साल से भी ज्यादा है। इतनी ही नहीं, उनके साथ आई उनकी बेटी को भी अधिकारी खींचकर वहां से बाहर ले गए।

सुरेन्द्रनगर की निवासी अमीना बानो के बेटे मुल्तानी बशीर अहमद 2007 में राष्ट्र की सुरक्षा का अपना कर्तव्य निभाते हुए शहीद हो गए थे। एसपीजी की सूचना के आधार पर कार्रवाई करते हुए स्थानीय क्राइम ब्रांच ने उन्हें तुरंत अपनी कस्टडी में ले लिया।

ऐसा ही एक वाकया 1 दिसंबर को भी हुआ था जब नर्मदा जिले में गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की चुनावी रैली से एक शहीद की बेटी को घसीटकर बाहर निकाल दिया गया। शहीद अशोक तडवी की 16 साल की बेटी रूपल कुछ कागज लिए सीएम से मिलने उनके मंच की ओर बढ़ने लगी। वह सीएम को बताना चाहती थी कि वो मुआवजा भी उसे अभी तक नहीं मिला है जो उसका हक था।

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वह मंच से कुछ ही दूरी पर थी कि सुरक्षाकर्मियों ने उसे रोक लिया। जब उसने कहा कि वह एक शहीद की बेटी है और उसे सीएम से मिलकर उन्हें ज्ञापन देना है तो पुलिस वालों ने उसकी एक भी नहीं सुनी। वहां मौजूद महिला पुलिसकर्मियों से उसकी खींचातानी भी हुई जिसके बाद पुलिसकर्मियों ने उसे चारों ओर से पकड़ कर गिरा दिया। फिर भी वह लड़की पुलिसकर्मियों से जूझती रही, जिसके बाद उन्होंने उसे पकड़कर उठा लिया और चारों तरफ से टांगकर सभा स्थल से बाहर कर दिया।

अमीना बानो का मामला भी ऐसा ही है। उनके रिश्तेदारों का कहना है कि उनका शहीद बेटा परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था। अमीना ने राज्य सरकार से मुआवजे के तौर पर छोटी सी जमीन देने की मांग की था जहां वह एक कैंटीन खोल सके और अपने परिवार का पेट पाल सके। वह पिछले 3 सालों में कई बार गांधीनगर स्थित सचिवालय गई, लेकिन कुछ हो न सका। कोई विकल्प नहीं बचने के बाद उन्होंने तय किया कि वे प्रधानमंत्री से मिलकर अपना हाल बताएंगी। लेकिन प्रधानमंत्री से मिलना तो दूर उन्हें सुरक्षाकर्मियों की सख्ती का सामना करना पड़ा।

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