सूरत डायरी: गुजरात चुनाव के प्रथम चरण के मतदान से पहले बीजेपी के खिलाफ अंडरकरंट, लोगों को ईवीएम में गड़बड़ी का डर
गुजरात विधानसभा चुनाव का परिणाम जो भी हो, लेकिन गुजरात बदल गया है। गुजरात को जानने वाले यह आसानी से देख सकते हैं। लोग बीजेपी के खिलाफ हैं। लोग बोल रहे हैं, गुस्सा जाहिर कर रहे हैं।
गुजरात विधानसभा चुनाव का परिणाम जो भी हो, लेकिन गुजरात बदल गया है। गुजरात को जानने वाले आसानी से देख सकते हैं कि गुजरात में हवा बदल गई है। लोग बीजेपी के खिलाफ हैं। लोग बोल रहे हैं, गुस्सा जाहिर कर रहे हैं। सूरत शहर का माहौल पहले चरण के चुनाव की नब्ज बता रहा है। प्रधानमंत्री के सहानभूति हासिल करने वाले भाषण को नया चुनावी जुमला, पुराना स्टाइल कहने वालों की कमी नहीं है। पटेल समुदाय का नौजवान तबका इसे पीएम का इमोशनल अत्याचार तक कह रहा है।
सूरत में गुजरात के सभी इलाकों के लोग बसते हैं और इतना ही नहीं देश के कोने-कोने से भी लोग कई पीढ़ियों पहले रोजी-रोटी के जुगाड़ में आए और यहीं के होकर रह गए। जनगणना और आर्थिक सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक सूरत में 58 फीसदी आबादी बाहर से आए लोगों की है। सूरत का तकरीबन हर इलाका एक जाति या समुदाय के अड्डे के रूप में विकसित हुआ। यानी अगर आप सूरत के वारछा रोड, कामरेज, कंरज पर जाएं तो यहां पाटिदारों का वर्चस्व है, कतारगाम, ओलपाड और उत्तरी सूरत में भी इनका बोलबाला है। चौरासी में उत्तर भारतीयों का, लिम्बायत में मराठियों का, सूरत पूर्व में मुसलमान और उसमें भी मेमन मुसलमान बड़ी तादाद में रहते हैं। टेक्सटाइल मजदूर भी कई विधानसभा क्षेत्रों में बसे हुए हैं। इन सभी वर्गों और समुदायों की बीजेपी से नाराजगी के अपने-अपने कारण हैं।
सिविल सोसायटी मतदान का प्रतिशत बढ़ाने में जुटी
गुजरात में चले ‘’लोकशाही बचाओ अभियान’’ की गूंज सूरत में खूब रही। ऐसे तमाम इलाकों में सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी, देव देसाई और प्रसाद आदि की टीम सूरत के उन इलाकों में लोगों को वोट देने के प्रति जागरूक करने के लिए मीटिंग करते रहे, जहां सामान्य तौर पर मतदान प्रतिशत कम रहता है। ऐसी ही एक मीटिंग 7 दिसंबर को देर रात सूरत पूर्व में मोमिन मुसलमानों के बीच की गई। मोमिन जमात के फैसल राजवानी ने बताया, हमारे यहां लोग वोट नहीं डालते। फैसल राजवानी ने कह कि लोगों को लगता है कि वोट से तकदीर नहीं बदलेगी, पिछली बार सिर्फ 40 फीसदी लोगों ने ही मतदान किया था। फैसल राजवानी ने कहा कि इस बार हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि सभी लोग वोट डालें। वहीं इस बैठक में शबनम ने अपील की, कि लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई में एक-एक वोट कीमती है। यह सोचिए कि आपका वोट देश को बचाने जा रहा है और कम से कम 50 लोगों को फोन करके वोट देने के लिए प्रेरित करें। शबनम की अपील का असर हुआ और अगले दिन समाज ने अपनी महिलाओं के बीच वोट देने की जागरूकता के लिए बैठकें आयोजित की।
सूरत में सूचना के अधिकार को एक अभियान के तौर पर चलाने वाले एक्टिविस्ट अजय जांगिड़ ने बताया कि माहौल बीजेपी के खिलाफ बना हुआ है। हालांकि अभी भी सूरत में लोगों को भरोसा नहीं कि ये बीजेपी हार जाएगी। इस बार धर्म पर बंटवारे का कार्ड नहीं चल पाया, क्योंकि तमाम जातियां और वर्ग अपना हक मांग रहे हैं।
कई तरह की हैं आशंकाएं
मतदाताओं में अलग-अलग किस्म की आशंकाएं हैं। पटेल समुदाय के नौजवानों को खासतौर पर यह डर है कि मतदान में गड़बड़ी हो सकती है। सूरत के वराछा इलाके में रहने वाले 28 साल के दिनेश खाखोरिया ने बताया कि बीजेपी को कल जब लगेगा कि वह हार रही है तो वह कुछ भी कर सकती है। इसलिए वह अपने लोगों से कह रही है कि सुबह 10 से 10:30 बजे तक वोट डाल दें। ऐसा कहने की जरूरत क्या है। लेकिन हम भी तैयार हैं। हम बीजेपी से ही आए हैं, लिहाजा जानते हैं कि बीजेपी क्या-क्या तिकड़म कर सकती है।
सूरत में साड़ी का व्यापार करने वालीं और समाजिक कार्यों में सक्रिय रुपाल झावेरी ने कहा कि बीजेपी डराने के मूड में आ गई है। कल प्रधानमंत्री ने जिस तरह भाषण में कहा कि अगर बीजेपी को वोट नहीं दिया तो सूरत को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नहीं मिल पाएगा, ये शर्मनाक है। हमारी जिंदगियों में कहर की तरह आया जीएसटी और नोटबंदी। महंगाई की मार भी हिंदू-मुसलमान नहीं देखती, सबको मारती है। ये सब छोड़कर सारा इमोशनल ड्रामा चलता रहता है। अभी डर है कि ईवीएम कैसे काम करेगी।
अल्पसंख्यकों के सवाल
पढ़ाई छोड़कर छोटे-मोटे कारोबार कर रहे 26 साल के जुनैद अहमद का कहना है कि अल्पसंख्यकों में खौफ है कि हमें वोट देने को मिलेगा या नहीं। जैसे उत्तर प्रदेश में हुआ बहुत से लोगों के नाम वोटर लिस्ट से गायब थे।
लोकतंत्र का सवाल
2002 गुजरात दंगों में मारे गए एहसान जाफरी के बेटे तनवीर जाफरी सूरत में रहते हैं। उनका कहना है कि चुनाव में हाल यह हो गया है कि कोई अल्पसंख्यक के वोट भी नहीं मांगने आता। इतना खौफ है कि पार्टियों को लगता है कि अगर हमारे पास आए तो बाकी हिंदू उन्हें वोट नहीं देंगे। ऐसे जम्हूरियत कैसे चलेगी। यही वजह है कि मुसलमानों में भी वोट देने का आकर्षण खत्म होता जा रहा है।
टेक्सटाइल मजदूरों के बीच काम करने वाले जरीवाला अरशद का कहना है कि टेक्सटाइल मजदूरों और मालिकों में बहुत गुस्सा है और वोटिंग में इसे दिखाई देना चाहिए। साड़ियों में जरी-सितारे लगाने वाली रुखसाना बेगम ने भी खासे गुस्से में कहा, हम सब ने अपने खून-पसीने से सूरत को चमकाया है। पीस के हिसाब से हमें काम मिलता है और उस पर भी जीएसटी की मार है। टमाटर, प्याज, सब्जी सबमें आग लगी है, आप बताओ ये विकास किसके लिए है, मेरे लिए तो नहीं है। कुछ बोलो तो बोलते हैं कि हम तो मुसलमान हैं, हां हम मुसलमान हैं लेकिन इसके साथ ही हम गुजराती और इंडियन भी हैं।
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