पंचायत 2 : तो अब डोले-शोले नहीं कहानी असली हीरो है...
'द वायरल फीवर' जिसे हम टीवीएफ के नाम से जानते हैं, इसकी खासियत यह है कि टीवीएफ के ज्यादातर सदस्य गांव से जुड़े हैं। गांव से जुड़े होने के साथ ही टीवीएफ कि टीम आईआईटी के पूर्व छात्रों से भरी पड़ी है।
'द वायरल फीवर' जिसे हम टीवीएफ के नाम से जानते हैं, इसकी खासियत यह है कि टीवीएफ के ज्यादातर सदस्य गांव से जुड़े हैं। गांव से जुड़े होने के साथ ही टीवीएफ कि टीम आईआईटी के पूर्व छात्रों से भरी पड़ी है। गांव की मिट्टी से निकले तकनीक और रचनात्मकता के इस घोल ने शहरों में रह रहे गांव से जुड़े लोगों को गांव की कहानी दिखा कर, उन्हें अपने गांव की याद दिलाते हुए बहुत जल्दी ही लोकप्रियता पा ली है।
पंचायत की कहानी भी एक ऐसे युवा की है जो शहर में आधुनिक जीवन जीने के सपने देखता है पर उसे मजबूरी वश एक गांव आना पड़ता है और उसे यह पता नही चलता कि वो कब गांव का हो गया। पंचायत की कहानी यह साबित करती है कि अब सुपरस्टारों का जमाना नहीं रहा, अब दर्शक की नजरों में कहानी ही असली सुपरस्टार है।
वेब सीरिज के मुख्य पात्र जितेन्द्र कुमार अभिनय की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं, उनका आम भारतीयों वाला चेहरा अब किसी भी बड़े सुपरस्टार को टक्कर दे सकता है। चंदन रॉय का अभिनय बिल्कुल नैसर्गिक है, नीना गुप्ता और रघुवीर यादव तो युवाओं को अभिनय का पाठ पढ़ाते महसूस होते हैं।
फैसल मलिक बिना किसी शोर के साथ अपने अभिनय की छाप छोड़ते हैं , सान्विका को आप फिर से स्क्रीन पर देखना चाहेंगे। चंदन रॉय और सान्विका के कपड़ों के रंग वेब सीरीज में दर्शकों का विशेष रूप से ध्यान खींचते हैं।
इस वेब सीरीज में पात्रों को बेहतरीन तरीके से बुना गया है। कई सारे पात्रों की कैमेस्ट्री कमाल की है, जैसे चंदन रॉय-फैसल मलिक, नीना गुप्ता-रघुवीर यादव, रघुवीर यादव-जितेन्द्र कुमार।
दर्शक वेब सीरीज के पात्रों से खुद को जुड़ा महसूस करते हैं, जैसे जितेन्द्र कुमार को गाली पड़ने पर दर्शकों को भी दुख होता है।
निर्देशक ने वेब सीरीज के हर एपिसोड की शुरुआत में उसके इंट्रोडक्शन का बड़ा ख्याल रखा है और यह गांव की सच्चाई बयान करता है। इसमें दिखता है कि आज के गांव में ट्रैक्टर है तो वहां बैलों से भी हल जोते जाते हैं। इंट्रोडक्शन में यह भी दिखता है कि आज के गांवों में कुछ महिलाएं पशुपालन के लिए घास ढो रही हैं तो कुछ महिलाएं सिलाई-कड़ाई करके भी अपना घर चलाने लगी हैं।
हर एपिसोड के इंट्रोडक्शन से पहले उसका थोड़ा सा परिचय देना अब हर वेब सीरीज में ट्रेंड बन गया है और यह एपिसोड की कहानी के प्रति दर्शकों की रोचकता भी बढ़ा देता है। निर्देशक ने वेब सीरीज में गांव के जीवन को हूबहू दिखाने की कोशिश की है, इसमें वहां का राजनीतिक और सामाजिक जीवन शामिल किया है।
निर्देशक ने अभिनेता जितेन्द्र कुमार के सहारे नौकरी करने वाले अकेले युवाओं की समस्याओं को भी दिखाया है। गांव में सीसीटीवी कैमरा आने पर जैसा कौतूहल मचता है ,उससे निर्देशक यह दिखाने में कामयाब हुए हैं कि गांव के लोग आधुनिकता से कैसे सामंजस्य स्थापित कर रहे हैं।
वेब सीरीज का सम्पादन कमाल का है, इसके एक दृश्य में बड़े होटल के अंदर पनीर के ऊंचे दाम पर बात चल रही थी तो अगले ही दृश्य में ऑफिस में पेट्रोमैक्स पर रखा कूकर सीटी बजाता है।
वेब सीरीज का संगीत इसकी सबसे अहम कड़ी है। यह दिल को छू जाता है। जितेन्द्र और सान्विका के रिश्तों की गर्माहट दिखाने में इसके संगीत का सबसे अहम योगदान है, वहीं कहानी में माहौल तनाव भरा होने पर बैकग्राउंड स्कोर दर्शकों को और भी मजा देता है।
पंचायत 2 का छायांकन पहली सीरीज की तरह ही गांव के रहन-सहन और खूबसूरती को करीब से दिखाने में सफल रहा है। खासतौर पर पूरे गांव को एक ही फ्रेम में दिखाने वाला दृश्य गांव की पूरी कहानी सी कह देता है।
वेब सीरीज के संवाद बड़े सुंदर रचे गए हैं। 'फौज में सिपाही रैंक में ज्यादातर लड़के तो यहीं गांव देहात के रहते होंगे' गांव के युवाओं की स्थिति वर्णित कर देता है, इस संवाद से हमें पता चलता है कि गांव के लड़के आज भी रोजगार के लिए भारतीय फौज पर निर्भर हैं।
'दुनिया में दो तरह का आदमी शराबी बनता है, पहला वो जो काम से ज्यादा कमाता है और दूसरा वो जो काम से कम कमाता है' संवाद शराबियों की मनोस्थिति बताता है।
वेब सीरीज की पटकथा को बड़े ही ध्यान से लिखा गया है। एक जगह जितेन्द्र की बाइक में हेलमेट सर पर न होकर बाइक के पीछे बंधा होता है, गांव और शहरों की यही सच्चाई है, हेलमेट का आज भी प्रयोग नहीं किया जाता। गांव में मच्छरदानी का प्रयोग और साथ ही मच्छर मारने वाला 'रैकेट' इलेक्ट्रिक स्विच बोर्ड में टँगा दिखा कर, गांव के घरों का वास्तविक दृश्य तैयार कर दिया गया है।
सान्विका और जितेन्द्र जब एक दूसरे का नम्बर सेव करते हैं, वह दृश्य दर्शकों के दिल के तार बजा जाता है। एक शराबी को देख उसे ही अपना भविष्य सोच जितेन्द्र द्वारा सिगरेट की कश लेने वाला दृश्य अद्भुत बन पड़ा है। पंचायत 2 देखने के बाद आपको इसके पात्रों से प्यार हो जाएगा और गांव की इस कहानी से आप हमेशा जुड़े रहना चाहेंगे।
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