मलयालम फिल्म ‘पाका’: परिवारों की शत्रुता की कहानी और खून की नदी
नितिन लुकोस ने विषय को सुनिश्चित करने से पहले ही यह निश्चय कर लिया था कि वह अपनी पहली फीचर फिल्म के क्लाइमेक्स की शूटिंग कहां करेंगे। वह कहते हैं, “मैं वायनाड, केरल, में अपने गांव कल्लोदी एक लंबे अर्से के बाद गया था।
नितिन लुकोस ने विषय को सुनिश्चित करने से पहले ही यह निश्चय कर लिया था कि वह अपनी पहली फीचर फिल्म के क्लाइमेक्स की शूटिंग कहां करेंगे। वह कहते हैं, “मैं वायनाड, केरल, में अपने गांव कल्लोदी एक लंबे अर्से के बाद गया था। मैंने वहां जाकर महसूस किया कि वहां चर्च का जो फेस्टिवल होता है, वह बहुत बढ़िया रहेगा।” यह महोत्सव सेंट जॉर्ज फोरेन चर्च में बहुत बड़े स्तर पर मनाया जाता है। इसमें हजारों की संख्या में आस्था रखने वाले लोग आते हैं और अंततः लुकोस की मलयालम फिल्म ‘पाका’ (खून की नदी) में यही सबसे महत्वपूर्ण बिंदु बन जाता है। फिर भी इस चमक-धमक वाले फेस्टिवल के अलावा यह फिल्म हमें बहुत सारी अन्य चीजों की ओर भी आकर्षित करती है, जैसे इसकी रचनात्मक प्ररेणा जो उन्होंने अपने समय और अपनी जिंदगी तथा लोगों और विभिन्न स्थानों से ली है। ‘पाका’ फिल्म अगले महीने सुप्रसिद्ध टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह (टीआईएफएफ) के डिस्कवरी वर्ग में दिखाई जाएगी।
पुणे स्थित फिल्म और टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) से स्नातक लुकोस अपनी जड़ों से बंधे रहने में दृढ़ विश्वास रखते हैं। एफटीआईआई में देश के विभिन्न क्त्षेरों से आने वाले विद्यार्थियों के साथ एक सर्वदेशीयता का भाव घुल-मिल जाता है। वह कहते हैं, “इसके बाद हमें अपनी-अपनी संस्कृतियों में वापस जाना होता है।” जाहिर है कि वह अपने घर कल्लोदी गए। चर्च के फेस्टिवल के अतिरिक्त फिल्म में ओरप्पू नदी महत्वपूर्णस्थान रखती है। फिल्म में यह एक रूपक भी है। लुकोस की कहानी और किरदारों में यह एक प्रमुख शक्ति है जो अंतर्निहित हिंसा और चचं लता की धारक है। “यह नदी खतरनाक मानी जाती थी और इसमें तैरने नहीं जा सकते थे”- लुकोस अपने बचपन की यादों में लौट जाते हैं। इस नदी का संबंध बस हत्याओं और उसमें फेंके गए शवों से है और स्क्रीन पर भी इसका ऐसे ही आह्वान होता है। एक आदमी होता है जिसका नाम जोस है। वह इस नदी के प्रवाह का सामना करने की हिम्मत करता है ताकि वह शव निकाल सके। उसके बहुत सारे प्रतिद्वंदी भी होते हैं जो उसके लिए एक मोमबत्ती की रोशनी तक नहीं कर सकते। यही 65 वर्षीय व्यक्ति जिन्होंने कभी भी कैमरे का सामना नहीं किया था, इस फिल्म में यही किरदार निभाते हैं। जबकि ‘पाका’ में बासिल पौलोसे, नितिन जॉर्ज और विनिता कोशी जैसे पेशेवर कलाकार भी हैं। इनमें से कुछ ने स्वयं गांववाला बनकर शूटिंग से दो माह पहले लंबी वर्कशॉप में सबको कैमरे के बारे में बताया और अभिनय के गुर भी सिखाए।
परिवारों की शत्रुता की कहानी स्वयं उन कहानियों तक पहुंचती है जो लुकोस को उनकी दादी ने सुनाई थीं। उनकी दादी के जीवन में घटित घटनाओं को एक साथ मिलाकर इस फिल्म में एक काल्पनिक ताना-बाना बुना गया है। संयोग से, इस फिल्म में एक 88 वर्ष की बुजुर्ग महिला हमारे सामने आती है। यह बुजुर्ग महिला इन परिवारों में से एक परिवार की दादी की महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
लुकोस फिल्म में मुख्य पात्र को किसी न किसी रूप से अपनी आत्मा का एक हिस्सा मानते हैं और युवा भाई का किरदार उनके अपने भाई को एक श्रृद्धांजलि है। फिल्म ‘पाका’ परिवारों की शत्ता से उभरे झगड़ों के बीच प्यार के अंकुरित होने के बारे में है। यह फिल्म अतीत की प्रतिद्वंद्विता की वर्तमान पर पड़ने वाली छाया और प्रतिशोध, अपराधबोध, सजा एवं प्रायश्चित के बारे में भी है। फिल्म के सारांश में कहा गया है : “पाका एक नदी की कहानी है जो शत्रुता में लिप्त दो परिवारों और एक युवा जोड़े के खून से भरी हुई है। यह युवा जोड़ा अपने प्रेम से इस नफरत को खत्म करने की कोशिश करता है।” क्या यह रोमियो और जूलियट की याद ताजा करती है? लुकोस ऐसा नहीं मानते हैं। उनके निर्देशन में यह जाना-पहचाना रूपक एक बिल्कुल ही अलग तरह से सामने आता है। वह दावा करते हैं कि वह महाभारत और धृतराष्ट्र के चरित्र से प्ररेित थे। अंधे धृतराष्ट्र राजवंशीय युद्ध के गवाह थे। लुकोस के अनुसार, यह फिल्म 1970 के दशक में इस क्षेत्र में नक्सलवाद के उभार को भी रेखांकित करती है। इन सभी बातों से भी अधिक, फिल्म में इस रक्तपात को उस पलायन में संदर्भित किया गया है जो 1940 से 1970 के दशक में मध्य केरल से वायनाड में हुआ था। उनका अपना परिवार भी 1950 के दशक में कोट्टायम से कल्लोदी आया था। लुकोस कहते हैं, “वहां कुछ नहीं था, बस जंगल ही जंगल थे। सारा मामला खुद को जीवित रखने से संबंधित था।” फिल्म में लगातार चलते रहनी वाली यह हिंसा अंततः डटे रहने और चलते रहने की भावना का भी प्रतीक है। निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने से पहले लुकोस बहुत सारी प्रसिद्ध फिल्मों में साउंड डिजाइन के लिए प्रशंसा अर्जित कर चुके हैं। इनमें समीक्षकों द्वारा सराही गई कन्नड़ फिल्म ‘इंडी तिथि’ से लेकर हाल में आई दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘संदीप और पिंकी फरार’ तक शामिल हैं। आखिर निर्देशन के क्षेत्र में क्यों कदम रखा? लेखन के प्रति लुकोस का प्रेम उनके दिल में हमेशा से रहा है। हालांकि उन्होंने एफटीआईआई से साउंड में प्रशिक्षण प्राप्त किया लेकिन वह वास्तव में पटकथा लेखन में प्रशिक्षण लेना चाहते थे। वह मस्कुरा कर कहते हैं, “लेकिन यह एक वर्ष का कोर्स था और मैं एफटीआईआई में और अधिक समय तक रहना चाहता था।” यह साउंड रिकॉर्डिंग और साउंड डिजाइन जैसे पाठ्यक्रमों की वजह से ही हो सकता था। जब वह ‘संदीप और पिंकी फरार’ में काम कर रहे थे तभी से उन्होंने ‘पाका’ के लिए लेखन शुरू कर दिया था। ‘पाका’ फिल्म के प्रोडक्शन से पहले का कार्य 2019 के अंत में शुरू हुआ था। और पिछले वर्ष के शुरू में कल्लोदी में फिल्म को शूट किया गया था। यह वह वक्त था जब कोविड महामारी ने जिंदगी का पहिया तब तक जाम नहीं किया था।
क्या उन्होंने फिल्म में साउंड डिजाइन भी किया? लुकोस ने इसे दूसरों के हवाले कर दिया और अपना पूरा ध्यान निर्देशन पर केंद्रित किया, हालांकि इससे पहले उन्होंने एक वर्ष से भी ज्यादा समय वायनाड की अनूठी ध्वनियों को संग्रहित करने में बिताया। फिल्म में जोबिन जयान, टोबी जोस, अरविंद सुंदर और प्रमोद सुंदर ने साउंड डिपार्मेंट, श्रीकांत काबोथू ने कैमरा, अरुणिमा शंकर ने संपादन और अखिल रवि पदमिनी ने प्रोडक्शन डिजाइन का काम संभाला। फिल्म में संगीत फैजल अहमद का है जिन्होंने तुरही का बहुत ही खूबसूरत इस्तेमाल किया है। इस फिल्म में लुकोस के बहुत से सहयोगी उनके फिल्म इंस्टीट्यूट से ही हैं। यह काम को और आसान बना देता है। लुकोस कहते हैं, “आपको लोगों को एक बिंदु के बाद ज्यादा नहीं बताना पड़ता; वे खुद ही समझ जाते हैं।”
इस फिल्म का रफ कट इस वर्ष जनवरी में एनएफडीसी फिल्म बाजार में वर्क-इन-प्रोग्रेस लैब का हिस्सा था। वहां इसे प्रसाद लैब डीआई अवार्ड और मूवीबफ एप्रिसिएशन अवार्ड मिला। यह उनके लिए कुछ रचनात्मक सहयोगियों से मिलने की जगह भी साबित हुई। महान फिल्मकार अडूर गोपालकृष्णन ने इसे स्वीकृति की चिट दी और अनुराग कश्यप इसके साथ सह-निर्माता के रूप में जुड़े। इसके अलावा टेलीविजन निर्माता फिलिपा कैंपबेल, फिल्म समीक्षक डेरेक मेल्कम और फेस्टिवल डायरेक्टर मार्को मूलर ने फिल्म को और बेहतर करने में मदद की।
दुनिया के सबसे बड़े फिल्म समारोहों में से एक टीआईएफएफ में प्रीमियर को लुकोस अपनी फिल्म ‘पाका’ के लिए एक बहुत अच्छा अवसर मानते हैं। टीआईएफएफ दुनिया के उन फिल्म समारोहों में शामिल है जिनमें बड़ी संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं। यदि महामारी से संबंधित दिशा-निर्देशों ने इजाजत दी तो लुकोस फेस्टिवल के लिए टोरंटो की यात्रा करने की उम्मीद बनाए हुए हैं।
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