यूपी चुनावः आखिरी चरणों में ओबीसी नेताओं की अग्निपरीक्षा, सभी दलों ने प्रचार अभियान में समुदाय के नेताओं को झोंका
योगी सरकार के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य अंतिम चरणों के लिए बीजेपी के प्रचार में आक्रामक तरीके से लगे हैं। वह खुद कौशांबी की सिराथु सीट से लड़ रहे हैं, जहां उनके सामने सपा की पल्लवी पटेल हैं। मौर्य को यहां मतदाताओं के असंतोष का सामना करना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अंतिम तीन चरणों का चुनाव अभी बाकी है। इन चरणों में सभी राजनीतिक दलों के अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है। सभी दलों ने इन चुनाव प्रचार अभियानों में इन समुदायों के नेताओं को झोंक दिया है और अब उनकी अग्नि परीक्षा होनी बाकी है।
राज्य के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी के चुनाव प्रचार अभियान में काफी आक्रामक तरीके से लगे हुए हैं और वह एक विधानसभा क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में व्यस्त हैं। वह कौशांबी जिले की सिराथु सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी की पल्लवी पटेल से है। पल्लवी पहली बार चुनाव लड़ रही हैं लेकिन यहां के जातिगत समीकरण को लेकर वह काफी आश्वस्त हैं कि उनकी जीत तय है।
हालांकि केशव प्रसाद मौर्य का प्रचार पल्लवी की बहन अनुप्रिया पटेल कर रही हैं लेकिन मौर्य को अपने विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं के असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। एक स्थानीय निवासी अरविंद पटेल ने कहा जब से वह उपमुख्यमंत्री और विधान परिषद के सदस्य बने हैं, वह अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से नहीं मिले हैं और अब जब वह चुनाव लड़ रहे हैं, तो वह वोट मांग रहे हैं।
पिछड़ा वर्ग से एक अन्य प्रमुख नेता सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अध्यक्ष और विधायक ओम प्रकाश राजभर हैं जिनका भाग्य आने वाले चरणों पर निर्भर करता है। राजभर गाजीपुर की जहूराबाद सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी ने उनके खिलाफ कालीचरण राजभर को खड़ा किया है जो उनकी वोटों में सेंध लगाएंगे।
हालांकि राजभर को बीएसपी से सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है जिसने सपा की बागी उम्मीदवार शादाब फातिमा को मैदान में उतार दिया है। पूर्व विधायक शादाब फातिमा अपने निर्वाचन क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हैं और इस सीट से जीतने को लेकर आश्वस्त भी हैं।
ओम प्रकाश राजभर को खुद पर सपा नेतृत्व वाले गठबंधन के बुनियादकर्ता के तौर पर गर्व है क्योंकि वह उत्तर प्रदेश में बीजेपी से सबसे पहले नाता तोड़ने वालों में से थे। अगर वह अपनी सीट पर अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं तो राज्य में बीजेपी को हराने का उनका दावा विफल हो सकता है।
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल को भी अपनी पार्टी अपना दल के लिए चुनाव के अगले चरणों में एक अग्नि परीक्षा का सामना करना पड़ रहा है, जिसने अब तक चुनाव में जोरदार सफलता दर देखी है। अपना दल एक कुर्मी-केंद्रित पार्टी है जिसे अनुप्रिया के पिता डॉ सोनेलाल पटेल ने बनाया था।
हालांकि अनुप्रिया चुनाव नहीं लड़ रही हैं, लेकिन उनकी पार्टी के उम्मीदवार कथित तौर पर अपने निर्वाचन क्षेत्रों में सत्ता विरोधी लहर महसूस कर रहे हैं। अनुप्रिया खुद अपनी पार्टी के लिए जोरदार प्रचार कर रही हैं और उम्मीद करती हैं कि वह अपनी बाधाओं को दूर कर सफलता हासिल करेंगी और यह जीत उनका भविष्य भी तय करेगी।
निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के लिए ये चुनाव करो या मरो का मामला है। वह बीजेपी के साथ गठबंधन में अपनी पार्टी की तरफ से अच्छा प्रदर्शन कर यह दिखा सकते हैं कि उनमें कितना दम हैं और इससे उनका भविष्य में बीजेपी के साथ रिश्ता तय होगा। निषाद समुदाय अनुसूचित जाति वर्ग में आरक्षण की मांग कर रहा है और संजय निषाद वादों के बावजूद बीजेपी को इसकी घोषणा करने के लिए मनाने में विफल रहे हैं। अगर उनकी पार्टी चुनावों में खराब प्रदर्शन करती है तो आने वाले समय में बीजेपी और उनका संबंध तय हो सकता है।
बीजेपी के पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए इस बार उनका चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य के लिए अहम है। पिछले महीने बीजेपी छोड़कर सपा में शामिल हुए मौर्य कुशीनगर जिले के नए निर्वाचन क्षेत्र फाजिलनगर से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि बीजेपी ने उनके सामने सुरेंद्र कुशवाहा को मैदान में उतारा है। मौर्य को बीजेपी से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है जो मौर्य को हराने और अपने 'विश्वासघात' का बदला लेने के लिए उत्सुक है।
अंतिम चरणों में एक अन्य ओबीसी नेता कृष्णा पटेल हैं, जो अपना दल से अलग हुए धड़े की मुखिया हैं। वह प्रतापगढ़ से समाजवादी पार्टी और अपना दल (के) के गठबंधन उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही हैं। अनुप्रिया पटेल ने अपनी पार्टी को अपनी मां के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ने देने का फैसला किया है, जिससे कृष्णा पटेल के लिए राह आसान दिख रही है। बीजेपी ने अनुप्रिया पटेल को यह सीट दी थी। हालांकि, कृष्णा पटेल का आसपास की सीटों पर कितना असर है या नहीं, यह देखना बाकी है।
आने वाले चरणों में कांग्रेस में ओबीसी नेतृत्व की भी परीक्षा होगी और प्रदेश कांग्रेस समिति अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कुशीनगर की तामकुहीराज विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे।
लल्लू को सपा और बीजेपी के अलावा अपनी ही पार्टी के एक धड़े से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उनकी चुनावी जीत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनका भविष्य भी तय करेगी।
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