यूपी चुनावः तीसरे चरण में बीजेपी के सामने जलवा बरकार रखने की चुनौती, सपा की लड़ाई खोया जनाधार पाने की
बीजेपी तीसरे चरण की लड़ाई में पूरी ताकत से मैदान में है। पार्टी ने पीएम मोदी से लेकर सारे बड़े नेताओं को माहौल बनाने के लिए उतार रखा है। वहीं अखिलेश यादव ने भी खास मोर्चाबंदी की है। वह खुद करहल से चुनावी मैदान में हैं यादव बेल्ट को बिखराव से रोकने का है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अब तीसरे चरण की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में अब बीजेपी के सामने अपना पुराना जलवा बरकार रखने की चुनौती है। वहीं सपा भी अपना खोया जनाधार पाने के लिए पिछड़ा और मुस्लिम की सोशल इंजीनियरिंग कर सत्ता पाने के फिराक में है।
तीसरे चरण के 16 जिलों हाथरस, फिरोजाबाद, एटा, कासगंज, मैनपुरी, फरुर्खाबाद, कन्नौज, इटावा, औरैया, कानपुर देहात, कानपुर नगर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा की 59 विधानसभा सीटों पर वोटिंग 20 फरवरी को होगी। 2017 में बीजेपी के पास 59 में से 49 सीटें थीं। सपा के पास 8 और बीएसपी और कांग्रेस को एक-एक सीट से संतोष करना पड़ा था।
बीजेपी तीसरे चरण की लड़ाई के लिए पूरी ताकत से मैदान में है। उसने कई दिग्गजों को यहां उतार रखा है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह की कर्मभूमि भी उरई है। वह कुर्मी समाज के बड़े नेताओं में शुमार हैं। आईपीएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में दांव अजमा रहे असीम अरूण भी कन्नौज से चुनाव मैदान में हैं। साध्वी निरंजन ज्योति के कंधों पर केवट, मल्लाह, कश्यप को साधने की जिम्मेदारी है। जबकि सुब्रत पाठक को मैनपुरी, कन्नौज, इटावा के ब्राम्हण को एकजुट रखना है।
वर्ष 2017 में सपा को यहां से मात्र आठ सीटें सिरसागंज, करहल, मैनपुरी, किषनी, कन्नौज, जसवंत नगर, सीसामऊ, आर्यनगर ही मिल पाई थी। जबकि 2012 में उनके पास यहां से 37 सीटें थीं। अखिलेश के सामने खिसके जनाधार को वापस लाने की सबसे बड़ी चुनौती है। बुंदेलखंड के जिन इलाकों में चुनाव है वहां तो सपा अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी। सपा ने 2017 का चुनाव कांग्रेस गठबंधन के साथ लड़ा था। कुनबे में कलह के कारण सपा को यादव वोटों का काफी नुकसान हुआ था।
वहीं बीएसपी की ओर से मुस्लिम उम्मीदवार उतारने से सपा का मुस्लिम वोट बैंक भी बंट गया था। बीजेपी को गैर यादव, शाक्य, लोधी वोटर एकमुश्त मिला था। लेकिन इस बार सपा ने मुस्लिम और यादव वोट बैंक के साथ अन्य पिछड़ा को अपने पाले में लाने का प्रयास किया है। अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल को भी सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ाकर यादव वोट को बिखराव करने से रोकने का बड़ा प्रयास किया है।
सपा को 2017 में भले सफलता न मिली हो लेकिन वह दो दर्जन से अधिक सीटों पर नंबर दो की लड़ाई में थे। कुछ सीटें मामूली अंतर से हार गए थे। इन सीटों पर अखिलेश यादव ने खास मोर्चाबंदी की है। जिन सीटों पर जिसका प्रभाव है उसे जिम्मेदारी दी है। वह खुद करहल से चुनावी मैदान में हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें तो उनका यहां से चुनाव लड़ने का मकसद यादव बेल्ट को बिखराव से रोकने का है।
तीसरे चरण में अखिलेश के चाचा शिवपाल और योगी सरकार के मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी लगी हुई है। अखिलेश के खिलाफ तो खुद केन्द्रीय मंत्री डा. एसपी बघेल मैदान में डटे हैं। वहीं फरूर्खाबाद से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस भी चुनावी मैदान में हैं। कानपुर की महराजपुर सीट से कई बार के विधायक मंत्री सतीश महाना चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। इसके अलावा कानपुर के पुलिस कमिश्नर रहे असीम अरूण भी वीआरएस लेकर कन्नौज से ताल ठोंक रहे हैं।
वरिष्ठ राजनीतिक विष्लेशक आमोदकांत मिश्रा कहते हैं कि तीसरे चरण का चुनाव बीजेपी और सपा के लिए काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस चरण में दोनों के सामने एक दूसरे से सीट बढ़ाने की चुनौती है। बीजेपी को अपना पुराना रिकार्ड कायम रखना है तो सपा को अपना खोया हुआ जनाधार पाना है। 2017 में यहां से बीजेपी ने 49 सीटें जीती थीं। सपा को परिवारिक लड़ाई में काफी नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन इस बार अखिलेश चाचा को अपने पाले में कर एकता का संदेश दिया है। अन्य कई जातियों को अपने पाले लाकर एकजुट रखने का प्रयास किया है। वहीं बीजेपी ने प्रधानमंत्री मोदी से लेकर सारे बड़े नेताओं को बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए उतार रखा है। यादव बेल्ट और बुंदेलखंड दोनों ही क्षेत्र अपने में महत्व रखते हैं। किसका पड़ला भारी होगा यह तो परिणाम ही बताएगा।
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