यूपी चुनाव में BJP की जीत के बाद भी मुसलमानों से खौफ गायब, उल्टा बढ़ा नजर आ रहा है कॉन्फिडेंस!
मुसलमान विधायकों की बढ़ी हुई संख्या से खुश है मगर वो यह भी जानता है कि बिना सरकार के ये कुछ कर नहीं पाएंगे। मुसलमानों ने भाजपा को हराने की जिद में अपने कई हितों को दरकिनार किया है, अब समय है कि उन्हें आगे बढ़ जाना चाहिए।
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत गई है। संभवतः योगी आदित्यनाथ एक बार फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे। बीजेपी भारत में हिंदुत्व के एजेंडे पर चलने वाली पार्टी है। भारत में बहुसंख्यक हिंदुओं के सबसे बड़े संगठन आरएसएस को बीजेपी का पैतृक संगठन समझा जाता है। आमतौर पर बीजेपी की मुस्लिम विरोधी छवि है। हालांकि बड़े नेता सबके साथ-सबके विकास की बात कहते हैं, मगर उस पर सवाल खड़े होते हैं। 8 सालों से केंद्रीय सत्ता पर आसीन बीजेपी को हाल के दिनों में 5 राज्यों में हुए चुनाव में 4 में जीत मिली है। उत्तर प्रदेश इन राज्यों में सबसे बड़ा राज्य है। यहां 19 फीसदी मुसलमान रहते हैं जिनकी आबादी लगभग 4 करोड़ से ज्यादा है।
23 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में योगी आदित्यनाथ बीजेपी के ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं जिन्हें खासकर मुसलमानों के विरुद्ध उनके नजरियों और उनकी सरकार के रुख को लेकर चर्चा मिली और वैश्विक स्तर पर उनकी आलोचना हुई है। भगवा वस्त्र धारण करने वाले योगी आदित्यनाथ का यह रूप बहुसंख्यक हिंदुओं को आकर्षित करता है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुसंख्यक समुदाय के सबसे बड़े प्रतीक के तौर पर उनकी पहचान है।
योगी आदित्यनाथ के पिछले 5 साल के कार्यकाल में मुसलमानों पर उत्पीड़न की कहानियां बिखरी हुई पड़ी हैं। इसमें फर्जी एनकाउंटर, कारोबारी विध्वंसीकरण और सियासी प्रतीकों के विरुद्ध कार्रवाई जैसे मसले हैं। सियासत के जानकार मानते हैं कि उनकी मुस्लिम विरोधी छवि के दम पर एक बार फिर विधानसभा चुनाव में उन्हें 271 सीट मिली है। बीजेपी के लोग इसे सुशासन से मिली कामयाबी बता रहे हैं। कारण जो भी हो सच यह है कि 37 साल बाद कोई पार्टी उत्तर प्रदेश में दूसरी बार सरकार बना रही है। 403 विधानसभा सीट वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में 202 सीटों पर बहुमत होता है। बीजेपी को 2017 में 325 सीटें मिली थी। इस बार वो कम हो गई है। मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को 125 सीटें मिली है। 2017 में समाजवादी पार्टी को 47 सीटें मिली थीं।
बीजेपी उत्तर प्रदेश में इस कामयाबी से बहुत उत्साहित है और राजनीति के जानकार यह मान रहे हैं कि बीजेपी अब अपराजित जैसी हो गई है। वो 2024 के लोकसभा चुनाव में आसानी से केंद्र की सत्ता पर काबिज हो जाएगी और अल्पसंख्यक मुसलमानों के लिए हालात और भी मुश्किल हो जाएंगे, उनको मुश्किलों में डालने वाले कानून आएंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि बीजेपी की राजनीति मुस्लिम विरोध पर केंद्रित है। हालांकि वो राष्ट्रवाद का नारा देते हैं, मगर उनके तमाम निर्णय बहुसंख्यक हिंदुओं को खुश करने के लिए होते हैं। हिन्दू संगठनों की उग्रता, अल्पसंख्यकों के विरुद्ध लगातार जहर उगलने वाले बयानबाजियों को छिपा हुआ संरक्षण, इसे सिद्ध करता है।
मगर इस सबके बावूजद और तमाम आशंकाओं के बीच भी उत्तर प्रदेश का मुसलमान इस बार कॉन्फिडेंट नजर आ रहा है। 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिस प्रकार का भय और आशंकाओं को महसूस किया गया था वो अब मुस्लिम समुदाय में नहीं दिखाई दे रहा है। यह तब है जब मुसलमानों ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पहली बार एकजुटता से बीजेपी सरकार को हराने के लिए पूरे मन से मतदान किया है और सत्ता में बीजेपी ही लौट आई है। मुसलमानों के चेहरों पर मायूसी नहीं है और वो भयाक्रांत भी नहीं लगते हैं।
'बाइज्जत बरी' जैसी चर्चित किताब लिखने वाले अलीमुल्लाह खान इसे समझाते हुए कहते हैं कि "मुसलमानों की समझ में आ गया है कि इससे ज्यादा अब और क्या होगा! उनके अंदर का डर निकल गया है! उन्होंने जितनी तकलीफ झेलनी थी वो झेल ली है। खासकर पुलिस के माध्यम से उनके खिलाफ जो दमनकारी नीति अपनाई गई, वो उससे भी आगे निकल चुके हैं। कुछ चीजें सकारात्मक भी हुई हैं। जैसे मुसलमानों का पढ़ाई की तरफ रुझान बढ गया है! पुलिस थाने और कोर्ट-कचहरी में जो उनके आपसी झगड़े होते थे वो कम हो रहे हैं। एक अदृश्य सा भय अब नहीं है।"
अलीमुल्लाह खान कहते हैं, "2017 का चुनाव बीजेपी ने लड़ा था और योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया था। इस बार यह पहले से तय था कि अगर बीजेपी जीती तो योगी ही मुख्यमंत्री बनेंगे। इसलिए भी मुसलमानों के लिए कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है। मुस्लिम नौजवानों में आवारागर्दी कम हुई है और वो रोजगार की तरफ उन्मुख हुए हैं। यही कारण है कि वो लोड नहीं ले रहे हैं। परेशानी सिर्फ उनके लिए है जो सत्ता केंद्रों के नजदीक रहते थे और जनप्रतिनिधियों के करीब और सत्ता के गलियारों में विचरण कर सकते थे। आम मुसलमान ने वोट दे दिया और उसका काम खत्म हुआ।"
एक यह भी बात है कि इस बार के चुनाव में मुसलमानों ने एकतरफा वोटिंग की है। सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक 83 फीसद मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी को वोट किया है। 2017 में सपा को 46 फीसद मुसलमानों ने वोट किया था। कांग्रेस को 19 फीसद मुसलमानों ने वोट किया था। वो समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ी थी। बसपा को भी तब 19 फीसद मुसलमानों ने वोट किया था। मुसलमानों के एकतरफा वोटिंग करने के नजरिए को ऐसे समझते हैं कि इस बार कांग्रेस को सिर्फ 3 फीसद मुसलमानों ने वोट किया है जबकि मुसलमानों की विभिन्न समस्याओं को लेकर प्रियंका गांधी आगे बढ़कर लड़ रही थीं। बसपा को इस बार मुसलमानों ने 6 फीसद वोट किया है।
अब इस गणित को ऐसे भी समझते हैं कि बीएसपी ने 86 मुसलमान प्रत्याशियों को टिकट दिया था और कांग्रेस ने 60 टिकट मुसलमानों को दिए थे। वोटिंग ट्रेंड का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक मौलाना जमील अहमद कासमी को सिर्फ 1253 वोट मिले और कांग्रेस के बड़े नेता और स्टार प्रचारक सलमान खुर्शीद की पत्नी लुइस खुर्शीद को फिरोजाबाद से सिर्फ 2 हजार वोट मिले। जाहिर है बसपा को मिलने वाला 6 फीसदी वोट उनके प्रत्यशियों को मिला।
उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की सबसे बड़ी तंजीम जमीयत उलेमा ए हिंद के प्रवक्ता मौलाना मूसा क़ासमी बताते हैं कि मुस्लिम वोटर्स में किसी भी प्रकार का कोई कन्फ्यूजन नहीं था। वो बीजेपी की सरकार को बदलना चाहते थे और इसके लिए मुसलमानों ने वोटों के बंटवारे की संभावना को खत्म कर दिया। राजनीति में समीकरण का बहुत रोल होता है। मुसलमान अपने वोटों के 19 फीसद हिस्सेदारी को एकजुट रखने में काफी हद तक कामयाब हुए मगर बीजेपी सरकार का विपक्ष वोट शेयर के गणित को 42 फीसद तक लेकर नहीं जा पाया। समाजवादी पार्टी सिर्फ 32 फीसद तक पहुंची जबकि बीजेपी को 41.3 मत मिले। उनको तसल्ली इस बात की है कि उनके इस बार 36 विधायक जीत गए। पिछली बार इनकी संख्या मात्र 23 थी। अब विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व ज्यादा है।
विधायकों की तादाद को लेकर भी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के बीच चर्चा हो रही है। 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के 17, बसपा के 4 और कांग्रेस के 2 विधायकों ने चुनाव जीता था। इस बार समाजवादी पार्टी के 30,रालोद के 2 और सुभासपा के 2 मुस्लिम विधायक बने हैं। बागपत के अहमद हमीद, सपा के मुरादाबाद के यूसुफ अंसारी, धामपुर से नईमुल हसन सहित आधा दर्जन प्रत्याशी बेहद नजदीकी अंतर से चुनाव हार गए। सपा गठबंधन ने 63 मुस्लिम उम्मीदवार लड़ाए थे, 3 सीटों पर गठबंधन के मुस्लिम प्रत्याशी की हार का अंतर एआईएमआईएम के प्रत्याशी को मिले मतों से कम था तो एक दर्जन सीटों पर बसपा, सपा गठबंधन प्रत्याशी की हार की वजह बनी। 2012 में 68 मुस्लिम विधायक बने थे। 1991 में यह संख्या सबसे कम 17 थी। सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक यह है कि 30 फ़ीसद से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली 38 सीटों में से 17 पर भाजपा जीत गई।
सहारनपुर के गूढ़ राजनीतिक शख्सियत फिरोज आफताब बताते हैं कि जहां मुसलमानों के पास प्लस वोट नहीं था। वहां बहुसंख्यक एकजुट हो गया और ये ऐसी ही सीट थी। पूरा चुनाव प्रचार ही जब 80-20 पर केंद्रित था तो जरूरी मुद्दों पर वोट क्यों पड़ते। मुसलमान एकजुट हो रहा था तो बहुसंख्यक भी एकजुट हो गया और विपक्ष बहुसंख्यक को समझा नहीं पाया। जाति की जगह वोटों का धार्मिक बंटवारा हो गया। फिरोज आफताब बताते हैं कि अगर राजनीतिक गणित से समझा जाए तो मुसलमानों के लिए यह चुनाव काफी सकारात्मकता लेकर आया है। अक्सर उनके वोटों में जो डिवीजन होता था वो नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुसलमान ने सबके साथ वाली थ्योरी को तोड़ दिया है। यह उनकी राजनीति के लिए सबसे प्यारी बात है। 19 फ़ीसद वोट बहुत बड़ी ताकत है इसका खेल अब आगे दिखाई देगा। यह निश्चित तौर पर जागरूकता है कि जहां जाना है एकमुश्त जाना है। पिछले कुछ सालों में कोरोना, बेरोजगारी और महंगाई ने सभी को तकलीफ दी है, अब मुसलमानों को लग रहा है कि हम अकेले ये मुश्किल नहीं झेल रहे हैं। हमें बहुत ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं देनी है। वो मेहनत मजदूरी में लगे हैं। फिरोज आफताब कहते हैं कि इसमें कामयाबी भी मिल रही है ,जैसे इस बार भाजपा सरकार के विरोध में 32 फ़ीसद वोट का मिलना ऐसी ही कामयाबी है। यह वोट शेयर बढ़ेगा तो भाजपा को हराया जा सकता है।
सवाल यह है कि भाजपा को हराना ही क्यों है। आखिर मुसलमान अपना वुजूद क्यों कायम नहीं करता है। इससे सेकुलर दलों को लगता है मुसलमान जाएगा कहाँ! तो वो मुसलमान के मुद्दों पर गंभीर भी नहीं होते! फिरोज बताते हैं कि वो जिस विधानसभा नकुड़ के रहने वाले हैं वहां सपा के प्रत्याशी धर्म सिंह सैनी 155 वोटों से चुनाव हार गए हैं। यहां एआईएमआईएम के प्रत्याशी को 4 हजार वोट मिले। स्थानीय मुसलमान एआईएमआईएम के प्रति नकारात्मक हो गए हैं। वो मान रहे हैं कि मजलिस ने यहां बीजेपी को जितवा दिया।
हालांकि इसकी जिम्मेदार बसपा ज्यादा है। जिसने यहां मुस्लिम प्रत्याशी लड़ाया। यूपी में 73 विधानसभा सीटों पर 30 फीसद से ज्यादा मुसलमान हैं, इनमें 39 पर धर्मनिरपेक्ष दल का प्रत्याशी चुनाव जीता है। समीकरण नहीं होंगे तो मुसलमान सिर्फ 50 फ़ीसद से ज्यादा वाली एक सीट पर जीतेगा। असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम ने उत्तर प्रदेश चुनाव में 97 सीटों पर चुनाव लड़ा है और उन्हें कुल साढ़े चार लाख मत मिले हैं।
मेरठ के एडवोकेट जफर अहमद बताते हैं कि इस बार वो महसूस कर रहे हैं कि मुसलमान चुनाव परिणाम का कोई असर नहीं ले रहा है। उसे चुनाव में बीजेपी की जीत से कोई मायूसी नहीं है। वो अपने काम में लगा है और कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। जफर बताते हैं कि उन्होंने अपने बहुसंख्यक दोस्तों को बाकायदा बधाई दी है। मुसलमानों की सियासत में रुचि कम हुई है और वो झंझट मुक्त जिंदगी, रोजगार और अच्छी पढ़ाई की और बढ़ रहे हैं। जफर बताते हैं कि यह मजबूरी भी लगती है, क्योंकि मुसलमानों को लगता है कि अल्पसंख्यक होने के नाते और बढ़ती सांप्रदायिकता के साथ अब वो सरकार बदल नहीं पाएंगे। मुसलमान विधायकों की बढ़ी हुई संख्या से खुश है मगर वो यह भी जानता है कि बिना सरकार के ये कुछ कर नहीं पाएंगे। मुसलमानों ने भाजपा को हराने की जिद में अपने कई हितों को दरकिनार किया है, अब समय है कि उन्हें आगे बढ़ जाना चाहिए।
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