आम आदमी की बचत पर मोदी सरकार का डाका, लघु बचत कोष से जर्जर कंपनियों को बांटा लोन
मोदी सरकार में राष्ट्रीय लघु बचत कोष ने साल 2016-17 में केवल 70 हजार करोड़ रुपये के लोन सरकारी एजेंसियों को दिए थे, लेकिन इसके बाद साल 2017-18 में 1.76 लाख करोड़ रुपये और 2018-19 में 3.6 लाख करोड़ रुपये का लोन सरकारी एजेंसियों को दे दिया।
आम जनता अपनी गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा बचा कर बीमा और बचत योजनाओं में जमा कराती है, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार इस पैसे को लगातार दांव पर लगाकर ऐसी जगह निवेश करवा रही है, जहां से पैसे लौटना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन- जैसा है।
मोदी सरकार ने जनता की बचत के पैसे से सबसे बड़ा दांव भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) पर खेला है। दरअसल, केंद्र सरकार हर साल एक से सवा लाख करोड़ की फूड सब्सिडी एफसीआई को देती है। इस पैसे से खाद्य निगम सावर्जनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत गरीबों को राशन बांटता है। इसे खाद्य सुरक्षा भी कहा जाता है। लेकिन पिछले तीन साल से मोदी सरकार फूड सब्सिडी नहीं दे रही है, बल्कि खाद्य निगम को कहा गया है कि वह लोन लेकर पीडीएस के तहत खाद्यान्न का वितरण करे। हालांकि खाद्य निगम के अधिकारी तर्क भी दे चुके हैं कि आमदनी का साधन न होने के कारण वे भला लोन कैसे लौटा पाएंगे, लेकिन सरकार ने इस तर्क की अनदेखी कर दी है।
इससे खाद्य निगम पर तो बोझ बढ़ ही रहा है, अब खाद्य निगम को राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएसएफ) से लोन लेने के लिए कहा गया है। राष्ट्रीय लघु बचत कोष में नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट, बच्चियों के लिए चलाई जा रही सुकन्या समृद्धि योजना, किसान विकास पत्र, सीनियर सिटीजन्स स्कीम, पंचवर्षीय डिपोजिट स्कीम, डाकघर की बचत स्कीम के पैसे जमा होते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट में भी इस पर चिंता तक जताई गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, एफसीआई पर एनएसएसएफ की देनदारी बढ़ती जा रही है। साल 2016-17 में खाद्य निगम पर एनएसएसएफ के 70 हजार करोड़ रुपये देनदारी थी, जो 2017-18 में बढ़कर 1 लाख 21 हजार करोड़ और 2018-19 में 1 लाख 91 हजार करोड़ रुपये हो गई। इतना ही नहीं, जुलाई, 2019 में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले बजट में बड़ा प्रचार किया गया कि केंद्र सरकार द्वारा खाद्य निगम को 1 लाख 51 हजार करोड़ रुपये की फूड सब्सिडी दी जाएगी लेकिन बजट भाषण में यह खुलासा नहीं किया गया है कि इसमें से एनएसएसएफ से कितना लोन लिया जाएगा।
जाहिर-सी बात है कि जब यह पैसा खाद्य निगम नहीं लौटाएगा तो केंद्र सरकार को ही इसका भुगतान करना होगा। लेकिन हाल के दिनों में मोदी सरकार के खजाने की हालत ऐसी है कि सरकार को रिजर्व बैंक के रिजर्व खाते में से 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये लेने पड़े हैं। ऐसे में, यदि सरकार अकेले खाद्य निगम का बोझ कम करने पर उतारू हो भी जाए, तब भी रिजर्व बैंक से मिले पैसे भी कम पड़ जाएंगे।
लोन देने की राशि 500 फीसदी बढ़ी
स्मॉल सेविंग्स के पैसे कई अन्य सरकारी कंपनियों (पीएसयू) में भी लगाए जा रहे हैं। ये पीएसयू ऐसे हैं जिनकी आर्थिक हालत ठीक नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी शासन काल में एनएसएसएफ ने सरकारी एजेंसियों को लोन देने में बड़ी तत्परता दिखाई है। साल 2016-17 में एनएसएसएफ ने केवल 70 हजार करोड़ रुपये के लोन सरकारी एजेंसियों को दिए थे लेकिन इसके बाद 2017-18 में 1.76 लाख करोड़ रुपये और 2018-19 में 3.6 लाख करोड़ रुपये का लोन सरकारी एजेंसियों को दिया। जबकि 2019-20 के बजट में स्मॉल सेविंग्स के नाम पर इकट्ठा किया गया 4.21 लाख करोड़ रुपये का लोन सरकारी एजेंसियों को दिया जाएगा। इस तरह एनएसएसएफ द्वारा पिछले तीन साल के दौरान सरकारी एजेंसियों को लोन देने की राशि में लगभग 500 फीसदी की वृद्धि हुई है।
यहं इन सरकारी एजेंसियों के नाम भी जानना जरूरी हैं। इनमें भारतीय खाद्य निगम के अलावा एयर इंडिया, बिल्डिंग मेटेरियल एंड टेक्नोलॉजी प्रमोशन काउंसिल, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, इंडिया रेल फाइनेंस कॉरपोरेशन, पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन और रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन शामिल हैं।
अनुमान लगाया गया है कि साल 2019-20 में नेशनल स्मॉल सेविंग्स फंड में 14.80 लाख करोड़ रुपये का ओपनिंग बैलेंस होगा और लगभग 6.78 लाख करोड़ रुपये इस साल जमा होंगे। इनमें से राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को 20 हजार करोड़ रुपये, इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉरपोरेशन को 7500 करोड़ रुपये, एयर इंडिया को 2636 करोड़ रुपये, रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन को 5000 करोड़ रुपये और पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन को 7500 करोड़ रुपये का लोन दिया जाएगा।
क्या है इनका हाल
एयर इंडिया की हालत से कौन वाकिफ नहीं है। स्मॉल सेविंग्स फंड से एयर इंडिया को 3000 करोड़ दिए जा चुके हैं। चूंकि सरकार ने एयर इंडिया को विनिवेश के नाम पर बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी है तो एक बड़ा सवाल यह उठता है कि एयर इंडिया पर हाल ही में हुआ यह कर्ज कौन उतारेगा और अपनी गाढ़ी कमाई को लघु बचत योजनाओं में जमा कराने वाले लोगों को उनका अपना पैसा वापस मिलेगा या नहीं?
कुछ इसी तरह की दिक्कतें राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के साथ भी हैं। मोदी सरकार की नीतियों के चलते पहली बार राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को खराब आर्थिक दशा का सामना करना पड़ रहा है। प्राधिकरण ने 2018-19 में भी 20 हजार करोड़ रुपये का लोन लिया था। मोदी सरकार ने प्राधिकरण पर रोड प्रोजेक्ट्स पूरे करने का दबाव तो बनाया है लेकिन ज्यादा प्रोजेक्ट्स इंजीनियरिंग-प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन (ईपीसी) और हाइब्रिड एनुयटी मॉडल (एचएएम) के तहत अवार्ड किए गए हैं।
साथ ही, भूमि अधिग्रहण नीति की वजह से जमीन के दाम बढ़ गए हैं। इस वजह से पिछले कुछ सालों से एनएचएआई को उधार के भरोसे चलना पड़ रहा है। इस बात का खुलासा क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इक्रा की रिपोर्ट में भी किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2013-14 तक एनएचएआई को अपने कुल खर्च का 33 फीसदी इंतजाम कर्ज लेकर करना पड़ता था लेकिन वित्त वर्ष 2018 में यह बढ़कर 66 फीसदी हो गया है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार की लुभावनी योजना- भारत माला प्रोजेक्ट के लिए तो एनएचएआई को भारी कर्ज की जरूरत पड़ने वाली है। इक्रा ने इस रिपोर्ट में एनएचएआई की आर्थिक दशा में सुधार के लिए केंद्र सरकार को आगे आने की सलाह दी है। हालांकि केंद्र सरकार की आर्थिक दशा क्या है, यह किसी से छिपी नहीं है।
अब बात रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन (आरईसी) लिमिटेड की। आरईसी का काम देश में चल रही बिजली परियोजनाओं का संचालन करना और सरकारी तथा निजी परियोजनाओं को फाइनेंस करना है। दिलचस्प बात यह है कि आरईसी द्वारा पिछले कुछ सालों से सरकारी बिजली कंपनियों की बजाय प्राइवेट कंपनियों को अधिक लोन दिया जा रहा है। यही नहीं, दूसरे पीएसयू की तरह आरईसी में भी विनिवेश की प्रक्रिया जारी है। साल 2018-19 की शुरुआत में आरईसी में सरकार की हिस्सेदारी 58.32 फीसदी थी। इसे घटाकर 52.63 फीसदी कर दिया गया है। आरईसी की देनदारी भी लगातार बढ़ रही है। उस पर तुर्रा यह कि सरकार के कहने पर आरईसी को नेशनल स्मॉल सेविंग्स फंड से लोन भी दिया जा रहा है। अब देखना यह है कि आरईसी में सरकार की हिस्सेदारी कितनी रहती है और लोगों द्वारा लघु बचत योजनाओं में जमा कराया गया पैसा कितने दिन सुरक्षित रहता है।
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