‘मोदी राज’ में नवरत्न कंपनी ओएनजीसी का बुरा हाल, खतरनाक स्तर पर नकदी भंडार, 63 साल में पहली बार ऐसी दुर्गति
मोदी राज में नवरत्न कंपनी ओएनजीसी का हाल बुरा हो गया है। पिछले कुछ महीनों में ओएनजीसी का नकदी भंडार में भारी कई आई है। मार्च 2017 में ओएनजीसी की कैश रिजर्व 9,511 करोड़ था। जो सितंबर 2018 में 167 करोड़ रुपए रह गया।
नोटबंदी और जीएसटी के जरिए देश के छोटे और मझोले उद्योग धंधों को बर्बाद करने के बाद केंद्र सरकार अब देश की नवरत्न कंपनियों को तबाह करने पर आमादा है। देश की नवरत्न कंपनी भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रही है और हालत यह है कि कर्मचारियों के वेतन भत्ते तक देने के लिए उसे कर्ज लेना पड़ रहा है। वहीं कंपनी इन दिनों कम नकदी भंडार (कैश रिजर्व) के संकट से गुजर रही है। सितंबर 2018 में कंपनी के पास कुल 167 करोड़ रुपए का ही कैश रिजर्व था जबकि मार्च 2018 में यह रकम 1,013 करोड़ थी।
पिछले कुछ महीनों में ओएनजीसी का नकदी भंडार में भारी कई आई है। मार्च 2017 में ओएनजीसी की कैश रिजर्व 9,511 करोड़ था। जो सितंबर 2018 में 167 करोड़ रुपए रह गया। मतलब पिछले डेढ़ साल में ओएनजीसी के नकदी भंडार में 9,344 करोड़ रुपए की कमी आ गई। कंपनी अपने फंड का इस्तेमाल हाल के दिनों में ऋण का भुगतान करने में कर रही है।
केंद्र सरकार ने ओएनजीसी के कामकाज में हस्तक्षेप कर सिर्फ जीएसपीसी को ही नहीं बचाया है, बल्कि देश का वित्तीय घाटा कम करने के लिए हिंदुस्तान पेट्रोलियम में सरकार की सारी की सारी 51.11 फीसदी हिस्सेदारी 36,915 करोड़ में खरीदने पर भी मजबूर किया। यह कीमत एचपीसीएल के बाजार मूल्य (उस दिन के शेयर की कीमत के आधार पर) से 14 फीसदी ज्यादा है।
कंपनी ने पिछले साल मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल लिमिटेड (एमआरपीएल) का भी अधिग्रहण किया है। हालांकि, नकद लेन-देन की वजह से इसमें भी अभी गतिरोध बना हुआ है। जानकारों के मुताबिक तेल और प्राकृतिक गैस खनन का व्यवसाय में भारी जोखिम होता है। ऐसे में इस व्यवसाय में पर्याप्त मात्रा में कैश बैलेंस की जरूरत होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक ओएनजीसी के पास कम से कम 5000 करोड़ रुपए का कैश रिजर्व होना चाहिए।
ओएनजीसी के पूर्व निदेशक (वित्त) आलोक कुमार बनर्जी ने न्यूज पोर्टल ‘द प्रिंट’ से बातचीत में कहा कि 63 साल के ओएनजीसी के इतिहास में यह पहला मौका है जब कंपनी का कैश रिजर्व इस स्तर पर पहुंचा है। उन्होंने इस स्तिथि को खतरे वाला बताया है। उनके मुताबिक ये स्थिति खासकर एचपीसीएल और गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन के अधिग्रहण की वजह से आई है।
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Published: 03 May 2019, 7:30 PM