जीएसटी से मिले ₹95 हजार करोड़ के दावे में पेंच, हाथ आएंगे महज ₹30 हजार करोड़

सरकारी खजाने में कुल जमा ₹ 30000 करोड़ का आंकड़ा और भी कम हो सकता है, क्योंकि सिर्फ 70 फीसदी रिटर्न ही फाइल हुई हैं और बड़ी कंपनियों ने जीएसटी से पहले चुकाए टैक्स क्रेडिट का दावा नहीं किया है।

फोटो : Getty Images
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तसलीम खान

जीएसटी के नाम पर खजाने में आए ₹ 95000 करोड़ का दावा जल्द ही गलत साबित हो सकता है। अगर सरकार इसमें जीएसटी लागू होने से पहले कंपनियों से वसूले गए अलग-अलग टैक्स को घटाए तो यह रकम महज ₹ 30000 करोड़ ही होगी। इस तरह जीएसटी की कामयाबी का दावा न सिर्फ खोखला साबित होता दिख रहा है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि आखिर सरकार ने इस रकम को तीन गुना क्यों बताया?

सरकारी खजाने में कुल जमा ₹ 30000 करोड़ का आंकड़ा और भी कम हो सकता है, क्योंकि जुलाई में अभी तक सिर्फ 70 फीसदी रिटर्न ही फाइल हुई हैं और ज्यादातर बड़ी कंपनियों ने जीएसटी से पहले चुकाए गए टैक्स के क्रेडिट का दावा अभी नहीं किया है।

दरअसल जीएसटी की पहली रिटर्न दाखिल करने के साथ ही तमाम कंपनियों ने जीएसटी व्यवस्था में जाने से पहले अदा किए गए टैक्स के दावे भी ठोके हैं। और इन दावों की कुल कीमत ₹ 65000 करोड़ है। जीएसटी से भरे खजाने में सेंध लगती देख सरकार के हाथ-पांव फूल गए हैं और उसने ऐसी सभी कंपनियों के रिटर्न की जांच करने के आदेश जारी किए हैं जिन्होंने एक करोड़ या उससे अधिक के क्रेडिट दावे किए हैं।

सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज़ एंड कस्टम्स (सीबीसीई) ने सभी टैक्स कमिश्नरों को सर्कुलर भेजकर एक करोड़ से ज्यादा टैक्स क्रेडिट का दावा करने वाली कंपनियों की जांच करने को कहा है। दरअसल पहली जुलाई से चलन में आए जीएसटी के तहत कंपनियों को पुरानी टैक्स व्यवस्था में किए गए स्टॉक की खरीद पर चुकाए गए टैक्स क्रेडिट का दावा करने की सुविधा दी गयी थी। यह सुविधा सिर्फ छह महीने तक के लिए ही है।

इस सुविधा के तहत कंपनियों और उद्यमियों को अपनी रिटर्न के साथ फार्म ट्रान-1 भी भरने की छूट दी गयी है जिसमें जीएसटी व्यवस्था से पहले की गयी खरीद पर चुकाए टैक्स के क्रेडिट का दावा किया जा सकता है। सीबीईसी ने जब अब तक मिले सभी ट्रान-1 फार्मों को देखा थो उसके होश उड़ गए। था। इस फार्म में कंपनियों ने एक्साइज़, सर्विस टैक्स और वैट के तहत ₹ 65000 करोड़ के दावे ठोके हैं। इसके बाद 11 सितंबर को सीबीईसी के बोर्ड सदस्य महेंद्र सिंह की तरफ से सभी मुख्य आयुक्तों को पत्र भेजकर दावा करने वाली कंपनियों की जांच करने को कहा गया है। पत्र में एक करोड़ या उससे ऊपर का दावा करने वाली कंपनियों की संख्या 162 बताई गई है। अब टैक्स कमिश्नर इन कंपनियों के दावों की जांच करने के बाद तय करेंगे कि ये दावे सही हैं या नहीं।

जीएसटी से
मिले ₹95 हजार
करोड़ के दावे में पेंच, हाथ आएंगे महज ₹30 हजार करोड़

पत्र में यह भी कहा गया है कि जीएसटी व्यवस्था लागू होने के बाद पुराने टैक्स का क्रेडिट तभी दिया जाए जब यह कानून के तहत मान्य हो। पत्र में यह भी कहा गया है कि हो सकता है कंपनियों ने गलती से या गलतफहमी में ऐसे दावे कर दिए हों। यानी सरकार मानती है कि न तो कंपनियां और न ही संभवत: टैक्स अधिकारी जीएसटी व्यवस्था को ठीक से समझ पाए हैं। पत्र में क्रेडिट के दावों की तय समय सीमा में जांच करने को कहा गया है और 20 सितंबर तक रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए हैं।

सीबीईसी ने कहा है कि जीएसटी के तहत सिर्फ योग्य दावों को ही आगे बढ़ाया जाए और इनकी सटीकता सुनिश्चित करने के लिए फील्ड ऑफिसर नये दाखिल रिटर्न को पुराने रिटर्न से मिलाएं और यह भी देखें कि ये दावे जीएसटी कानून के तहत योग्य हैं या नहीं।

सरकार की तरफ से पिछले सप्ताह कहा गया था कि जीएसटी व्यवस्था के तहत 70 फीसदी कंपनियों और उद्यमियों ने जुलाई का रिटर्न दाखिल कर दिया है। इससे सरकार को 95 हजार करोड़वैसे कुल करदाता करीब 60 लाख हैं।

उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह तक कुल 59.97 लाख करदाताओं में से 70 प्रतिशत ने जुलाई का रिटर्न दाखिल कर दिया था। इससे सरकार को जीएसटी के तहत ₹ 95000 करोड़ का राजस्व हासिल हुआ है।

सरकार ने अगस्त के आखिरी दिनों में फॉर्म ट्रान-1 (TRAN-1) जारी किया था जिसमें कंपनियों और उद्यमियों को पहले खरीदे गए स्टॉक पर टैक्स क्रेडिट का दावा करना था। ट्रेडर्स और रिटेलर्स को इसके तहत दावा करने के लिए 90 दिन का समय दिया गया था। साथ ही यह छूट भी थी कि 31 अक्टूबर तक इस दावे को एक बार संशोधित भी किया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ₹ 65000 करोड़ का दावा बहुत बड़ा है, खासकर तब जबकि बड़ी कंपनियों ने अभी तक दावे के लिए फार्म ट्रान-1 जमा ही नहीं कराया है।

सरकार की इस व्यवस्था के तहत ट्रेडर्स और रिटेलर्स को यह सुविधा दी गयी थी कि जीएसटी व्यवस्था से पहले चुकाए गए ऐसे टैक्स जिनकी दर 18 फीसदी से अधिक थी, उसका 60 फीसदी सीजीएसटी (केंद्रीय जीएसटी) या एसजीएसटी (राज्य जीएसटी) में क्रेडिट दावा किया जा सकता है। साथ ही यह सुविधा दी गयी थी कि ऐसे टैक्स जिनकी दर 18 फीसदी से कम थी, उसका 40 फीसदी तक क्रेडिट के दावे में शामिल किया जा सकता है। इतना ही नहीं यह व्यवस्था भी थी कि सरकार ऐसे सभी सामान पर शत प्रतिशत एक्साइज़ ड्यूटी वापस कर देगी जिसकी कीमत 25 हजार या अधिक है और वे किसी ब्रांड और सीरियल नंबर वाले सामान हैं। इनमें टीवी, फ्रिज और कार के चैसिस आदि आते हैं।

जीएसटी को लागू हुए ढाई महीने का वक्त गुजर चुका है, लेकिन लगता यही है कि 30 जून की आधी रात को शुरु हुआ सरकार का ट्रिस्ट विद जीएसटी डेस्टिनी की शगूफा फुस्स होता दिख रहा है। जटिल और अस्पष्ट नियमों के जाल में फंसा जीएसटी अभी तक कारोबारियों, कंपनियों और उद्यमियों के लिए मुसीबत ही साबित हुआ है। और अब तो सरकार भी खुद ही इसमें उलझी हुई नजर आने लगी है।

अगस्त आते आते सरकार ने जिस तरह जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की तारीख आगे बढ़ाई, उससे स्पष्ट हो गया कि सरकार का यह महत्वाकांक्षी कर सुधार कार्यक्रम दीवार से सिर टकरा रहा है। और इसकी झलक अभी पिछले सप्ताह हैदराबाद में हुई जीएसटी काउंसिल की 21वीं बैठक में नजर आया। खबरें तो यहां तक आईं कि राजस्व को लेकर चिंतित कई राज्य सरकारों ने जीएसटीएन की नाकामी पर जीएसटी लागू कराने वाली समिति की जमकर खिंचाई की और इस पर श्वेत पत्र तक लाने की बात कही।

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मिले ₹95 हजार
करोड़ के दावे में पेंच, हाथ आएंगे महज ₹30 हजार करोड़

यही कारण था कि बिना समय गंवाए जीएसटी काउंसिल ने तुरत-फुरत बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की अध्यक्षता में एक मंत्री स्तरीय समिति बना दी। ये समिति जीएसटीएन के कामकाज पर नजर रखेगी।

जीएसटी को लेकर सिर्फ यही दिक्कत नहीं है। दिक्कत यह भी है कि जीएसटी के तहत टैक्स की दरों में लगातार बदलाव हो रहा है। इस सबका नतीजा यह है कि जीएसटी की गाड़ी पटरी से उतरी नजर आ रही है और जो दावे किए जा रहे हैं कि इससे टैक्स चोरी बचेगी, वह भी भोथरा ही साबित होता दिख रहा है। एक तो रिटर्न फाइल करने और टैक्स दरों में बदलाव के चलते अब अधिकारियों को टैक्स क्रेडिट के दावों और रिटर्न की बारीकियों को समझना लगभग असंभव सा हो गया है। दूसरा यह कि दरों की जटिलता और बार-बार परेशान करने वाले जीएसटीएन (गुड्स एंड सर्विस टैक्स नेटवर्क) ने कारोबार सुगमता यानी ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस की धज्जियां उड़ा दी हैं। तीसरा यह कि पुरानी और जीएसटी व्यवस्था के संक्रमण काल का असर सीधे सीधे आर्थिक गतिविधियों पर पड़ेगा जिससे जीडीपी दर प्रभावित होगी। एक और मुसीबत यह कि किस भी करदाता के लिए जीएसटी के तहत इतनी अधिक खानापूर्तियां कर दी गयी है कि कारोबार करना ही मुसीबत बन गया है।

(एजेंसियों से इनपुट के साथ)

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Published: 15 Sep 2017, 11:19 PM