बजट की चौसर पर सियासी चाल, मोदी-शाह के लिए ‘सीता’ नहीं रहीं निर्मला
बजट से पहले परंपरा के अनुसार हलवा बनाते-कड़ाही से निकालते निर्मला सीतारमण की तस्वीर भले ही शूट की गई हो, लेकिन अब अर्थव्यवस्था की कमान सीधे तौर पर मोदी ने खुद अपने हाथों में ले ली है। वैसे भी, अपने से ज्यादा जानकार वह किसी को नहीं समझते!
संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) से खड़े हुए देशव्यापी बवंडर से लगता यह भले ही हो कि बीजेपी सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को कैश करने की कोशिश कर रही है, लेकिन सच यह भी है कि उसके नेतृत्व को अंदाजा है कि इस चिंगारी में बेरोजगारी-महंगाई जैसे मुद्दे जुड़ गए, तो उसके लिए मुहाल हो जाएगा। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके लेफ्टिनेंट अमित शाह- दोनों ने ही बजट को सीधे-सीधे हैंडल करने की कोशिश की है।
दरअसल, पीएम मोदी को अगर कोई एक चीज सबसे ज्यादा प्यारी है, तो वह है अपनी छवि। और आजकल देश भर में चल रहे सीएए विरोधी आंदोलन के चलते उनकी छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल होती जा रही है। दूसरी ओर, पिछले दो वर्षों के दौरान हुए छह राज्यों के विधानसभा चुनावों में से बीजेपी पांच हार चुकी है। ऐसे में मोदी को अपनी छवि चमकाने के लिए एक ऐसे अच्छे बजट की दरकार है, जिसकी सभी वर्गों में प्रशंसा हो, सरकारी खजाना खाली न करना पड़े, आमदनी बढ़े, खर्च कम हो, और सबसे बड़ी बात कि विकास की गति तेज हो।
उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बीजेपी के शीर्षस्थ नेतृत्व की आंखों से उतर गई हैं। पिछले वर्ष सीतारमण ने केंद्रीय बजट को अंग्रेजी परंपरा के अनुसार सूटकेस में ले जाने के बजाय देसी तड़का लगाते हुए उसे लाल कपड़े में लपेटकर बही खाता बताते हुए पेश किया था। लेकिन इन टोटकों के बावजूद अर्थव्यवस्था का हाल सबके सामने है। किसी आम आदमी की तरह सरकार को भी यह दिख रहा है। अरुण जेटली की कमी शायद इससे पहले मोदी सरकार को कभी इतनी महसूस नहीं हुई होगी।
पिछली मोदी सरकार में वित्तीय प्रबंधन उन्हीं के हाथों में रहा। इसके साथ ही इस बार मोदी सरकार को अरविंद पनगढ़िया, अरविंद सुब्रह्मण्यम और रघुराम राजन के स्तर के किसी अर्थशास्त्री की सलाह भी नहीं मिल पा रही। इसीलिए, हलवा बनाते- कड़ाही से निकालते सीतारमण की तस्वीर भले ही शूट की गई हो, लेकिन अब अर्थव्यवस्था की कमान सीधे तौर पर मोदी ने खुद अपने हाथों में ले ली है। वैसे भी, अपने से ज्यादा जानकार वह किसी को नहीं समझते!
गत 9 जनवरी को केंद्रीय बजट के स्वरूप को लेकर आयोजित नीति आयोग की बैठक में मोदी, गृह मंत्री शाह, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के अलावा नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार, मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत- जैसे लोग तो शामिल हुए। लेकिन दिल्ली में होते हुए भी निर्मला सीतारमण को इस बैठक से दूर रखा गया। उस रोज वह बीजेपी कार्यालय में लोगों से मिलती-जुलती रहीं। इसी तरह आर्थिक विशेषज्ञों की बैठक की अध्यक्षता भी मोदी ने खुद की और जाने-माने उद्योगपतियों और कारोबारियों के साथ बैठक में भी वह खुद ही रहे।
ऐसी स्थिति की वजह से ही वरिष्ठ कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने दावा किया कि बजट को लेकर होने वाली बैठकों में सीतारमण को जानबूझकर शामिल नहीं किया जा रहा। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में बजट पूर्व बैठकें हो रही हैं लेकिन उनमें सीतारमण नहीं होतीं। उन्होंने दावा किया कि मोदी ने 13 बजट-पूर्व परामर्श बैठकें आयोजित कीं जिनमें शीर्ष उद्योगपतियों ने भाग लिया लेकिन किसी में भी, आश्चर्यजनक रूप से, सीतारमण नहीं रहीं।
इसी आधार पर, इस सरकार के सूत्रों का दावा है कि सीतारमण का विभाग अब जल्द ही बदल दिया जाएगा। वैसे भी, मंत्रिमंडल में फेरबदल बहुत समय से लंबित है। बीजेपी के सहयोगी दल नाराज हैं। जनता दल (यू) का मंत्रिमंडल में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। ऐसे दलों को मंत्रिमंडल में ज्यादा स्थान देकर खुश किया जाएगा। इसी फेरबदल के समय बीजेपी के जिन लोगों का मंत्रालय बदला जाएगा, उनमें सीतारमण का नाम सबसे ऊपर है।
वैसे भी, निर्मला सीतारमण को 2017 में हुए फेरबदल में मंत्रिमंडल से हटाया जाना था। राजीव प्रताप रूड़ी और कलराज मिश्र- जैसे कई मंत्रियों के साथ उन्होंने भी अपना त्यागपत्र प्रधानमंत्री को सौंप दिया था। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से अंतिम समय में उन्हें रक्षा मंत्रालय की अहम जिम्मेदारी दे दी गई। चुनाव के बाद राजनाथ सिंह को रक्षा और निर्मला को वित्त मंत्रालय सौंपा गया।
मोदी और अमित शाह को बिगड़ती अर्थव्यवस्था का अंदाजा लोकसभा चुनाव परिणाम आने के समय ही था। यही वजह है कि दोबारा चुने जाने पर मोदी ने वित्त विभाग का जिम्मा अमित शाह को देने का फैसला किया था। लेकिन मंत्रिमंडल गठन के लिए परामर्श करने मोदी जब अरुण जेटली से मिलने गए तो जेटली ने वित्त विभाग अपने लिए सुरक्षित रखने को कहा। उनका आग्रह था कि तबीयत थोड़ी भी बेहतर होने पर वह वित्त मंत्रालय संभाल लेंगे, इसलिए फिलहाल इसे निर्मला सीतारमण को सौंप दिया जाए। वित्त मंत्रालय के लिए मोदी की दूसरी पसंद पीयूष गोयल थे। पिछले कार्यकाल में अरुण जेटली जब इलाज के लिए अमेरिका गए हुए थे तो उनका मंत्रालय पीयूष गोयल ने ही संभाला था। लेकिन उनके कामकाज से जेटली खुश नहीं थे। यही वजह है कि अंतिम समय में निर्मला को वित्त और अमित शाह को गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई।
वैसे भी निर्मला जेटली खेमे की सदस्य मानी जाती रही हैं। मोदी को लगा जेटली के निर्देशन में निर्मला मंत्रालय ठीक से संभाल लेंगी और अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। लेकिन जेटली की तबीयत लगातार बिगड़ती गई और वह वित्त मंत्रालय का काम अपने घर से भी देखने में अक्षम रहे। वहीं, निर्मला का हर कदम उल्टा पड़ा और देश में महंगाई, बेरोजगारी तेजी से बढ़ी जबकि जीडीपी लगातार घटती चली गई। उन्होंने इसके लिए सबसे बड़ा जिम्मेदार मीडिया को माना और मीडिया के लोगों का वित्त मंत्रालय में प्रवेश ही बंद करा दिया। यह शुतुरमुर्ग- जैसा व्यवहार था जो मुसीबत देखकर रेत में सिर घुसा देता है और सोचता है कि मुसीबत टल गई। लेकिन अब निर्मला खुद मुसीबत में हैं।
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