जुमलों का यूरेका क्षण : बिगड़ती अर्थव्यवस्था पर मोदी की सफाई

मोदी ने नोटबंदी की नई वजह बताई है। उन्होंने कहा है कि इसका कारण था कैश टू जीडीपी रेश्यो, जो 12 फीसदी से घटकर 9 फीसदी पर आ गया है।

फोटो : Getty Images
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तसलीम खान

वह बहुत दिनों से चुप थे। कुछ बोल नहीं रहे थे। चौतरफा हमले के बाद भी अपने सिपहसालारों को ही मोर्चे पर भेज रहे थे, जो आधी-अधूरी तैयारियों के साथ या तो बयान दे रहे थे या लेख लिख रहे थे। हमले और तेज़ हो गए। सिपहसालारों ने भी शायद हाथ खड़े कर दिए थे, कि हमसे न हो पाएगा। लेकिन वे चुप थे। वे चुप थे क्योंकि वे नया जुमला तलाश रहे थे। जुमलागीरों की पूरी फौज सिर से सिर जोड़े, कंप्यूटर में आंखे गड़ाए, पौराणिक ग्रंथों के पन्ने पलटते कुछ चरित्रों की खोज में थी। और फिर यूरेका....मिल गया जुमला...नया जुमला लेकर उन्होंने खुद मोर्चा संभाला और एक ही वार में शत्रुओं को परास्त कर दिया।

यह किसी पौराणिक कथा पर आधारित सीरियल का प्लॉट नहीं है, ये हकीकत है देश की अर्थव्यवस्था पर छाए काले बादलों और उससे उपजी अर्थशास्त्रियों और बुद्धिजीवियों की चिंता और उस पर पहली बार अपने मन की बात को देश के सामने रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की। उन्होंने क्या क्या कहा, और किस किस संदर्भ में, ये बाद में बताएंगे, लेकिन पहले देश यह समझ ले कि देश में नोटबंदी की एक नई वजह आज सामने आ गयी और उससे होने वाला एक नया फायदा भी सामने आ गया।

नोटबंदी की वजह दरअसल कालाधन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद और नक्सलवाद और डिजिटाईजेशन था ही नहीं, नोटबंदी का असली कारण था, कैश टू जीडीपी रेश्यो...जी हां...प्रधानमंत्री ने यही कारण समझाया नोटबंदी और यही फायदा भी बताया कि नोटबंदी से पहले कैश टू जीडीपी रेश्यो 12 फीसदी था, लेकिन नोटबंदी के बाद यह 9 फीसदी हो गया।

कैश टू जीडीपी रेश्यो होता क्या है? दरअसल यह वह औसत है जो किसी अर्थव्यवस्था में नकद के इस्तेमाल का प्रतिशत बताता है। जब किसी भी अर्थव्यवस्था में नकद पैसा खूब सर्कुलेशन में होता है, तो उसका इस्तेमाल भी होता है। इसी को कैश टू जीडीपी रेश्यों कहते हैं। मोदी जी ने इस औसत में 3 फीसदी की कमी को नोटबंदी की उपलब्धि के तौर पर पेश कर दिया। अब प्रधानमंत्री को कौन समझाए कि जब पूरा देश कैश के लिए बैंकों के बाहर तीन महीने तक कतार लगाके खड़ा होगा तो लेनदेन के लिए कैश का इस्तेमाल कैसे होगा। कैश इस्तेमाल तो तब होगा, जब कैश होगा। वैसे यहां जानकारी के लिए यह बताना जरूरी है कि प्रधानमंत्री के मित्र जापान के प्रधानंत्री शिंजो आबे अभी भारत होकर गए हैं। उनके यहां कैश टू जीडीपी रेश्यो करीब 19 फीसदी है। उन्हें तो कोई दिक्कत नहीं हो रही। तकनीकी तौर पर जापान तो हमसे बहुत आगे है, सुनामी जैसी त्रासदी से दोचार हो चुका है। फिर भी कैश टू जीडीपी रेश्यो घटाने के लिए जापान ने तो कोई नोटबंदी नहीं की।

नोटबंदी पर कैश टू जीडीपी रेश्यो को लेकर पीएम के बयान पर सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया यहां नीचे दिए गए कुछ ट्वीट्स से समझ लीजिए।

अब आते हैं कि मोदी ने आलोचकों को क्या क्या जवाब दिए। योद्धा, निर्णायक, कठोर, कड़े फैसले लेने वाला, विकास का अग्रदूत आदि आदि उपमाओं के घोड़े पर सवार होकर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे मोदी ने बुधवार को कम से कम एक बात सार्वजनिक तौर पर मान ली। उन्होंने कहा कि, “मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूं।” प्रचार में इस्तेमाल ऊपर दी गयी सारी उपमाओं का इस्तेमाल इसलिए किया गया था कि विविध संस्कृतियों से भरे देश के युवा और मध्यमवर्गीय वोटरों के साथ ही पूरे विश्व की लोकतांत्रिक ताकतों को भी को गुमराह करते वक्त के लिए मोदी की हिंदू हृदय सम्राट यानी कट्टर हिंदुत्व की दक्षिणपंथी विचारधारा कहीं आड़े न आ जाए। इसलिए यह सारी उपमाएं गढ़ी गई थीं। लेकिन आर्थिक मोर्चे पर पिट रही सरकार के बचाव में मोदी ने मुखौटा उतार फेंका, और लगे पौराणिक कथाओं का जिक्र करने। कौरवों के मित्र कर्ण के सारथी का शल्य और शल्यवृति का हवाला देकर कहा कि, “कुछ लोगों को निराशा फैलाने में आनंद आता है। ऐसे लोगों के लिए आजकल एक क्वॉर्टर की ग्रोथ कम होना, जैसे सबसे बड़ा ख्वाब पूरा हो गया है।”

तालियां बजने से उत्साहित प्रधानमंत्री ने नया जुमाल फेंका कि पिछली सरकार में तो कम से कम आठ बार जीडीपी 5.7 से नीचे गई थी। लेकिन इसी रौ में वह यह भी कह गए कि पिछली सरकार ने अब से कोई पांच साल पहले जीडीपी आंकने का तरीका दूसरा अपनाया था जिसे उनकी सरकार ने बदल दिया है। यह बात कहते वक्त मोदी भूल गए कि अगर पुरानी सरकार के फार्मूले पर पुरानी सरकार के दौर की जीडीपी आंकी जाए तो वह 8 फीसदी होगी और आज की जीडीपी पर वही फार्मूला लगाया जाए तो वह 3.7 फीसदी के आसपास होगी।

जुमलों का यूरेका क्षण : बिगड़ती अर्थव्यवस्था पर मोदी की सफाई

भाषण देने की नाट्यकला में माहिर मोदी ने नया जुमला फेंका, और कहा कि, “8 नवंबर इतिहास में भ्रष्टाचार मुक्ति के अभियान का प्रारंभ दिवस माना जाएगा।” लेकिन हकीकत यह है कि इस तारीख को एक ऐसे दिवस के रूप में याद किया जाएगा जिससे छोटे और मझोले कारोबार बंद हो गए, बेशुमार लोग बेरोजगार हो गए, कैश के लिए कतार में लगे लोगों की जानें चली गई, खुदरा और छोटे दुकानदारों का धंधा बंद हो गया, हर सेक्टर का ग्रोथ रेट नीचे चला गया, अमीरों ने अपना कालाधन सफेद कर लिया और गरीब की गाढ़ी कमाई पर बैंकों ने कब्जा कर लिया।

इस जुमले से अभी लोग उबरे भी नहीं थे कि एक और जुमला हवा में लहराता हुआ आया। और यह जुमला तो ऐसा था कि अगर के आसिफ जिंदा होते तो मुगले आजम पार्ट 20 बनाते वक्त इसे आधुनिक सलीम से जरूर इस संवाद को कहलवाते। मोदी ने कहा, “मैं अपने वर्तमान की चिंता में, देश का भविष्य दांव पर नहीं लगा सकता।” लेकिन कोई यह पूछा कि किस भविष्य की बात कर रहे हैं मोदी। उन युवाओं के भविष्य की जिनके पास रोजगार नहीं है, उन मजदूरों के भविष्य की जिनके पास काम नहीं है, उन छोटे और मझोले कारोबारियों के भविष्य की जिनका वर्तमान 8 नवंबर के बाद से बरबाद हो गया। शायद यही सबस सोचते हुए सोशल मीडिया पर एक दिलचस्प ट्वीट किया गया। आप नीचे खुद देख लीजिए।

आजकल एक शब्द कई संदर्भों में खूब इस्तेमाल होता है, फेकू...पता नहीं किसके लिए इस्तेमाल होता है, लेकिन प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में जब कहा कि, आज भी रिजर्व बैंक ने कहा है कि नेक्स्ट क्वॉर्टर्स में 7.7 तक वृद्धि जाएगी।” तो कुछ-कुछ समझ आने लगा कि किसके लिए इस्तेमाल होता है यह शब्द। दरअसल रिजर्व बैंक ने जो नई मौद्रिक नीति पेश की, उसमें वृद्धि का अनुमान 7.3 से घटाकर 6.7 फीसदी कर दिया है। लेकिन पीएम ने इसमें सीधे एक फीसदी का इजाफा कर दिया। लेकिन यह आंकड़ा देते वक्त शायद उन्हें याद आ गया कि वृद्धि में गिरावट का कारण तो जीएसटी भी है, इसीलिए ‘कड़े फैसले लेने वाले और उन पर अडिग रहने वाले ’ पीएम ने कहा कि हम “जीएसटी की कमियां दूर करेंगे।”

अर्थव्यवस्था आंकड़ों का खेल है, और इन्हीं आंकड़ों के आधार पर जब आलोचकों ने सरकार पर सवाल उठाए तो प्रधानमंत्री ने भी आंकड़े गिनाने शुरु कर दिए। पीएम ने कहा कि, “इस सरकार ने प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के साथ पर्सनल सेक्टर पर भी जोर दिया है। 9 करोड़ खाता धारकों को पौने चार लाख करोड़ से ज्यादा मुद्रा योजना के तहत दिया गया है।” अब जरा इस आंकड़े का गुणा-भाग कीजिए को सामने आएगा कि प्रत्येक नौजवान को 37500 रुपए दिए गए। कोई पूछे इनसे की इतने रूपए से कौन सा कारोबार शुरु हो जाता है?

यूं भी आंकड़ों की बाजीगरी कितनी कर लें, लेकिन आपको मन में पता होता है कि कुछ तो गड़बड़ है, इसीलिए स्वीकारोक्ति के तौर पर मोदी ने खुद ही कहा, “आलोचकों की हर बात गलत होती है, ऐसा हम नहीं कहते, लेकिन देश में निराशा का माहौल पैदा करने से बचना चाहिए।” लेकिन प्रधानमंत्री जी, क्या करें, अच्छे दिनों की झलक तक देखने को नहीं मिली, तो निराशा का माहौल ही तो होगा।

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