दूसरी तिमाही में भी आर्थिक बदहाली दिखाएगी विकास दर, कई अर्थशास्त्रियों की चेतावनी- 5% से नीचे रहेगी जीडीपी

अनुमान के मुताबिक बीते तिमाही में देश की आर्थिक विकास दर 4.2% से 4.7% के बीच रही है। साल 2012 के बाद से यह जीडीपी में सबसे बड़ी गिरावट है। फिलहाल सरकार ने आंकड़े जारी नहीं किए हैं, लेकिन उम्मीद है कि 29 नवंबर को आंकड़े पब्लिश हो सकते हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

भारत की आर्थिक विकास दर में लगातार गिरावट जारी है। एक बार फिर बीते तिमाही में देश की विकास दर में और ज्यादा गिरावट आई है। भारतीय स्टेट बैंक, नोम्यूरा होल्डिंग्स इंक और कैपिटल इकोनॉमिक्स लिमिटेड के अर्थशास्त्रियों के मुताबिक एक अनुमान के अनुसार सितंबर की आखिरी तिमाही में देश की विकास दर 4.2% से 4.7% रही, जो कि 2012 के बाद से जीडीपी की सबसे बड़ी गिरावट है। उम्मीद जताई जा रही है कि मोदी सरकार आगामी 29 नवंबर को यह डाटा जारी कर सकती है।

देश की अर्थव्यवस्था के ताजा हालात को देखते हुए तीनों शीर्ष संस्थाओं के अर्थशास्त्रियों ने अनुमान लगाया है कि वर्तमान वित्त वर्ष में देश की विकास दर 5% से भी नीचे जा सकती है। ब्लूमबर्ग के अनुसार सिंगापुर स्थित नोम्यूरा होल्डिंग्स इंक की मुख्य अर्थशास्त्री सोनल वर्मा का कहना है कि जीडीपी विकास दर का जो अनुमान लगाया गया था, वह सही साबित नहीं हुआ है। सोनल वर्मा ने वर्तमान वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में भारत की विकास दर 4.2% रहने का अनुमान लगाया है। इसके पीछे वर्मा ने कमजोर वैश्विक मांग, उच्च आवृत्ति संकेतकों में गिरावट और घरेलू ऋण की खराब स्थिति को कारण बताया है।


वहीं, एक और प्रतिष्ठित संस्था कैपिटल इकॉनोमिक्स इंक के अर्थशास्त्री शीलन शाह ने भी ऐसी ही आशंका जताते हुए सरकार द्वारा अब तक किए गए उपायों को नाकाफी बताते हुए कहा है कि इनसे विकास दर की कमजोरी को दूर करने में सहायता मिलने की उम्मीद नहीं है। अर्थशास्त्री शीलन शाह ने आखिरी तिमाही में भारत की विकास दर 4.7% रहने का अनुमान लगाया है। इधर देश के प्रमुख सरकारी बैंक एसबीआई, मुंबई के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्या कांति घोष ने वर्तमान हालात को लेकर संभावना जताई है कि आरबीआई दिसंबर में ब्याज दरों में और ज्यादा कटौती कर सकता है। यहां बता दें कि विकास दर को बढ़ाने के लिए आरबीआई इस साल ब्याज दर में 5 बार कमी कर चुका है।

इन सबके बीच चिंताजनक बात ये भी है कि देश के घरेलू खपत में भी लगातार चिंताजनक गिरावट दर्ज की जा रही है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति औऱ खराब है। वित्ती वर्ष 2019-20 की शुरुआत से ही ग्रामीण इलाकों में मांग में भारी कमी जारी है, जो अब और बदतर होती जा रही है। सरकार के लाख दावों के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू वस्तुओं, ट्रैक्टर, दोपहिया वाहनों आदि की मांग में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है।

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