गुजरात चुनाव के लिए मोदी सरकार ने जीएसटी पर घुटने टेके, घटाई दरें, फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर
जीएसटी काउंसिल ने जीएसटी की दरों में बड़े बदलाव करते हुए कंज्यूमर और कारोबारी दोनों को राहत दी है। लेकिन चार महीने बाद इतने बड़े बदलावों से साफ है कि सरकार ने इसे जल्दबाजी में लागू किया था।
लोगों की बढ़ती नाराजगी और गुजरात विधानसभा चुनावों के मद्देनजर मोदी सरकार ने घुटने टेक दिए हैं और जीएसटी की दरों में बदलाव करते हुए तमाम वस्तुओं को 28 फीसदी के दायरे से बाहर कर दिया है। सरकार के इस फैसले व्यापारी समुदाय संभवत: खुश होगा, लेकिन सवाल यह है कि जब गुजरात में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है, ऐसे में लोगों को रिझाने वाले फैसले करना क्या आदर्श आचार संहिता उल्लंघन नहीं है?
इसी सवाल को उठाते हुए शुक्रवार की जीएसटी काउंसिल की बैठक ख़िलाफ़ गुजरात हाईकोर्ट में अर्जी दायर की गई है। अर्जी में कहा गया कि चूुंकि गुजरात में चुनाव प्रक्रिया जारी है, ऐसे में जीएसटी की बैठक नहीं होनी चाहिए। कहा गया है कि बैठक का कोई भी फैसला आचार संहिता का उल्लंघन है, क्योंकि यह फैसला मतदाताओं को प्रभावित करता है।मामलें की सुनवाई अगले हफ्ते होगी। याचिका अहमदाबाद के रहने वाले संदीप कुमार किशन कुमार शर्मा की तरफ से दायर की गई है और इसमें जीएसटी चेयरमैन, गुजरात राज्य चुनाव आयोग और वित्त मंत्रालय के सचिव को पक्षकार बनाया गया है।
गुवाहाटी में हुई जीएसटी काउंसिल की 23वीं बैठक के बाद ऐलान किया गया कि 28 फीसदी जीएसटी के दायरे में अब महज 50 वस्तुएं या सेवाएं ही रह गई हैं, पहले इस दर में 227 उत्पाद और वस्तुएं थीं। इस बैठक के बाद जीएसटी काउंसिल ने 178 वस्तुओं और सेवाओं को 18 फीसदी के दायरे में रखा है।
लेकिन फ़्रिज-वॉशिंग मशीन जैसे उत्पादों पर अब भी 28 फीसदी की दर से ही जीएसटी लगेगा। साथ ही घर बनाने के लिए जरूरी सीमेंट और सजाने के लिए जरूरी पेंट पर भी 28 फीसदी टैक्स लगेगा। इससे महिलाओँ और अपने घर की उम्मीद लगाए लोगों में नाराजगी बरकरार है।
शुक्रवार की बैठक के बाद जीएसटी काउंसिल ने होटल-रेस्टोरेंट क्षेत्र की दरों में बड़े बदलाव किए हैं और कंपोजिशन स्कीम का दायरा बढ़ा दिया है। मतलब कंज्यूमर और कारोबारी दोनों को राहत देने वाले फैसले किए गए हैं। यहां तक कि कंपोजिशन में बदलाव के लिए सरकार जीएसटी एक्ट में भी बदलाव करेगी। जीएसटी लागू होने के चार महीने बाद इतने बड़े बदलावों के कई मायने निकाले जा सकते हैं। मसलन, क्या सरकार ने जल्दबाजी में बारीकियों की अनदेखी की, जो अब समझ में आ रही हैं?
माना जा रहा था कि जीएसटी पर कंप्लायंस बढ़ेगी यानी ज्यादा से ज्यादा कारोबार इससे जुड़ेंगे तो राज्यों को कंपनसेशन यानी उन्हें हो रहे राजस्व नुकसान की केंद्र को भरपाई नहीं करना पड़ेगी, लेकिन 5 राज्यों को छोड़कर बाकी राज्य अब भी राजस्व नुकसान की भरपाई करने की मांग कर रहे हैं। और, चूंकि दलों में कटौती कर दी गई है तो राज्यों का राजस्व और घटेगा तो उनकी नुकसान की भरपाई का सवाल भी गहरा हो गया है।
चार महीनों में जीएसटी में कई तरह के फेरबदल किए गए जाने के बाद सवाल यह उठता है कि क्या मोदी सरकार गुजरात चुनाव को देखते हुए जीएसटी में बड़े बदलाव कर रही है? या असल में दिक्कतों को देखते हुए इन बड़े फेरबदल की जरूरत थी? साथ ही दरों में कटौती से राजस्व नुकसान की भरपाई कैसे होगी? और क्या सरकार जीएसटीएन इंफ्रास्ट्रक्टर के सबसे बड़े चैलेंज को दूर कर पाएगी?
जीएसटी के साथ वित्त मंत्री भी बदलें मोदी : यशवंत सिन्हा
इस बीच पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी के बड़े नेता यशवंत सिन्हा ने एक बार फिर वित्त मंत्री अरुण जेटली पर निशाना साधते हुए कहा कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी लागू करते समय दिमाग ही नहीं लगाया और जीएसटी का कबाड़ा कर दिया।
उन्होंने कहा कि, “मौजूदा वित्त मंत्री ने अपना दिमाग नहीं लगाया, यदि ऐसा हुआ होता तो टैक्स ढांचे में जल्दी-जल्दी बदलाव नहीं करना पड़ता। इसका मतलब है कि सिस्टम काम नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि इसमें बड़ा बदलाव करना होगा इसलिए वित मंत्री को बदलना चाहिए।” सिन्हा ने पीएम मोदी को यह सुझाव दिया कि पूर्व वित्त सचिव विजय केलकर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करें जो जीएसटी को प्रभावी बनाने के लिए अनुशंसा करे।
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Published: 11 Nov 2017, 12:36 AM