अर्थव्यवस्था पूरी तरह धड़ाम, अगले साल से पहले नहीं सुधरेगी हालत
देश की आर्थिक नब्ज टटोलने के लिए स्टेट बैंक इकोरैप नाम का विश्लेषण कराता है, और नतीजे बताते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है और जीडीपी में ‘फ्री फॉल’ अनपेक्षित है
नोटबंदी और फिर जीएसटी ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी है। और इस साल तो कम से इसके पटरी पर लौटने के आसार बिल्कुल नहीं हैं। अगर जरूरी कदम उठाए गए तो भी अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही से पहले अर्थव्यवस्था की रफ्तार पटरी पर नहीं आएगी। देश की आर्थिक नब्ज टटोलने के लिए देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक इकोरैप नाम का विश्लेषण कराता है, और इस विश्लेषण के नतीजे बताते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी से अर्थव्यवस्था में सुस्ती की आशंका तो थी, लेकिन वृद्धि दर में ‘ फ्री फॉल ’ की अपेक्षा तो किसी ने नहीं की थी।
रिपोर्ट के मुताबिक जीडीपी ग्रोथ रेट यानी विकास की दर में जो गिरावट का रुख है, वह क्षणिक नहीं है बल्कि संरचनात्मक ज्यादा है। इसका यही अर्थ है कि विकास दर में कमजोरी को सिर्फ कुछ दिन की बात कहकर नहीं टाला जा सकता, क्योंकि ऐसा है नहीं और यह पूरे आर्थिक ढांचे में हुई उथल-पुथल का नतीजा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग कारणों और कारकों को मिलाकर देखा जाए तो विकास दर में तेजी या वृद्धि आने वाली तिमाहियों में तो पटरी पर नहीं लौटेगी। सबकुछ ठीक रहा तो अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल – जून 2018 में हालात शायद कुछ बेहतर हो जाएं।
ध्यान रहे कि अभी कुछ दिन पहले विकास दर के जो आंकड़े आए हैं उसके मुताबिक देश की तरक्की की रफ्तार महज 5.7 फीसदी पर पहुंच गयी है, जो कि तीन साल का सबसे निचला स्तर है। रिपोर्ट से ये निष्कर्ष भी निकला है कि नोटबंदी की मार पहले से ही झेल रहे मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर यानी उत्पादन क्षेत्र में सुस्ती और नरमी पहले ही आ गयी थी, और जब इसपर जीएसटी की दोहरी मार पड़ी तो पूरे सेक्टर में अनिश्चितता का माहौल बन गया।
एसबीआई की इस रिपोर्ट में कई पहलुओं पर चर्चा की गयी है। रिपोर्ट में जीएसटी के निगेटिव असर को खासतौर से रेखांकित किया गया है। यानी रिपोर्ट का बड़ा फोकस जीएसटी को लेकर पैदा हुई उलझन (कंफ्यूजन) पर है। रिपोर्ट के मुताबिक जीएसटी लागू होने से पहले ही मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में पहले से तैयार पड़े माल को बाहर निकालना था, क्योंकि नोटबंदी के चलते कामगारों, मजदूरों, कच्चे माल, ढुलाई आदि की समस्या ने मशीनों की आवाज को लगभग खामोश कर दिया था। हाल ही में आये जीडीपी के आंकड़ों में इसका जिक्र था और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की सुस्ती के जीडीपी पर असर की खूब चर्चा भी हो रही थी। लेकिन, उपभोक्ता और निवेश पर आधारित सेक्टर में नोटबंदी के चलते डिस्टाकिंग यानी पहले से तैयार पड़े माल को बाहर निकालने का चलन तो पिछले वित्त वर्ष यानी 2016-17 में ही शुरु हो गया था। सेक्टर का यह रुख खासतौर से पिछले वित्त वर्ष की आखिरी दो तिमाहियों में देखने को मिला था। यह वो दो तिमाहियां थीं, जिनमें 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया गया था और नकद के लिए पूरा देश बैंकों के बाहर कतारों में नजर आ रहा था।
एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट में 1695 ऐसी कंपनियों के आंकड़ों को आधार बनाया गया है जो शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हैं। रिपोर्ट में साफ कहा गया कि 2016-17 में पहले से ही अर्थव्यवस्था में सुस्ती थी, लेकिन नोटबंदी के ऐलान ने इस सुस्ती में भी ब्रेक लगाने का काम किया। रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 के अनिश्चित माहौल से निवेश आधारित सेक्टर पर विपरीत असर पड़ा और उपभोक्ता आधारित सेक्टर भी बुरी तरह प्रभावित हुआ।
इसी रिपोर्ट में 2306 सूचीबद्ध कंपनियों का एक और विश्लेषण है, जिसके नतीजे बताते हैं कि इस वित्त वर्ष के तिमाही दर तिमाही आधार पर 69 में से 40 क्षेत्रों में कमजोरी दिखी है। इन कंपनियों की बिक्री में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गयी है, जो कि पिछले वित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले बेहद कम है।
रिपोर्ट में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के कैपिटल गुड्स, कंज्यूमर गुड्स और इंजीनियरिंग गुड्स का प्रदर्शन बेहद खराब दर्ज किया गया है। रिपोर्ट में इन हालात को बेहद चिंताजनक कहा गया है।
इन सारे फैक्टर यानी कारकों और कारणों को मिलाकर रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि आने वाली तिमाहियों में भी अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने की उम्मीद नहीं है। अगले साल की पहली तिमाही में ही कुछ सुधार के आधार हैं, बशर्ते तब तक एसेट रिजोल्यूशन यानी सरकार यह मान ले कि हर उस क्षेत्र की हालत खराब है जिससे विकास दर में तेजी आती है और जिससे देश की तरक्की को रफ्तार मिलती है।
एसबीआई ने इससे पहले भी पहली सितंबर को जारी अपनी रिसर्च रिपोर्ट में कहा था कि इस साल की दूसरी तिमाही के आंकड़े भी उत्साहवर्धक नहीं होंगे। इस रिपोर्ट के मुताबिक कृषि क्षेत्र में नोटबंदी का जबरदस्त असर हुआ है और इसके चलते जीडीपी में 17 फीसदी का योगदान देने वाले इस क्षेत्र में सुधार के आसार नहीं हैं। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों ने खरीदारी बेहद कम कर दी है, जिसके चलते सामान और माल की मांग में भी गिरावट आयी है।
यहां दिलचस्प है कि एक तरफ वित्त मंत्री अरुण जेटली जीडीपी दर में गिरावट के रुख को चिंताजनक बताते हैं, वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इसे महज तकनीकी कारण ठहराते हैं। इतना ही नहीं अमित शाह तो जीडीपी आंकने के तरीके को ही बदलने की बात कर रहे हैं। शनिवार को फिक्की में उद्योगपतियों से बातचीत में उन्होंने कहा कि, “मोदी सरकार ने जीडीपी देखने के नजरिए को ही बदल दिया है। उनका कहना है कि जीडीपी को सिर्फ उत्पादन, सेवाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर के तौर पर ही नहीं देखना चाहिए, बल्कि ये देखना चाहिए कि जीवन स्तर कितना बेहतर हुआ है और सामाजिक पूंजी में कितना सुधार हुआ है।”
लेकिन पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम जीडीपी में गिरावट को खतरे की घंटी मानते हैं। उनका कहना है कि नोटबंदी एक “पूरी तरह से नाकाम” प्रयोग था। उन्होंने चेताया है कि आने वाले दिन और मुश्किल भरे हो सकते हैं। उन्होंन कहा कि आने वाली तिमाहियों में और गिरावट होती है तो उन्हें इस पर आश्चर्य नहीं होगा। मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि मोदी भले ही नोटबंदी को साहसिक फैसला बताते रहे हों, लेकिन असली साहस इस गलती से हुए नुकसान की जिम्मेदारी लेना है। उन्होंने हड़बड़ी में लागू किए गए जीएसटी को भी एक गलत फैसला ठहराया। चिदंबरम का कहना है कि यह वो जीएसटी नहीं है जिसे अर्थशास्त्री समझ पाएं, क्योंकि इसे बिना माकूल तैयारियों के ही लागू कर दिया गया।
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Published: 11 Sep 2017, 4:50 PM