नोटबंदी ने तबाह कर दी मुरादाबाद की अर्थव्यवस्था : सिसक-सिसक कर मर रहे हैं लोग
नोटबंदी का एक साल हो गया। इस फैसले ने मुरादाबाद की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया। जो कल तक दूसरों को रोजगार देते थे, आज बेरोजगार हैं और किसी तरह सिसक-सिसक कर जिंदगी गुजार रहे हैं।
आरिफ की हालत देखकर कोई नहीं कह सकता कि कभी इस शख्स के कारखाने में 6-7 लोग काम करते थे और आरिफ खुद 40-50 हजार रुपए महीना कमाता होगा। नोटबंदी के एक साल बाद हालत यह है कि आज उसके पास अपने हाथ पर प्लास्टर लगवाने के लिए 1500 रुपए की मामूली रकम भी नहीं है। मजबूरी में वह एक सस्ते से जर्राह (झोलाछाप डॉक्टर) से अपने हाथ की मरहम-पट्टी करवा रहा है।
नोटबंदी का फैसला आरिफ के लिए ऐसी परेशानियों और मुसीबतें लेकर आया कि वह देखते ही देखते लोगों को नौकरी और वेतन देने वाले से नौकरी मांगने और वेतन लेने वाला बन गया। हमने जब उससे बात की तो वह अपने हालात बताने में झिझक रहा था। आखिरकार उसका गम छलक उठा। उसने बताया:
“पहले मैं 40 से 50 रुपए महीना कमा लेता था। मेरे पास 6-7 लोग काम करते थे, जो मेरे कारखाने से 15 हजार रुपए महीने तक कमाते थे। आज हालत यह है कि मैं खुद एक कारखाने में 10 हजार रुपए महीने पर काम कर रहा हूं। एमबीए कर रही मेरी बेटी की शिक्षा बीच में ही छूट गई। बारहवीं में पढ़ने वाले बेटे की पढ़ाई भी प्रभावित हुई। इस सबके लिए सिर्फ और सिर्फ नोटबंदी जिम्मेदार है। उन दिनों मैं दिन में बैंकों की लाइन में लगता, नकद निकालकर अपने साथ काम करने वालों को वेतन देने का इंतजाम करता। कर्मचारियों के बैंक खाते थे नहीं, कोई चेक लेने को तैयार नहीं था। कच्चा माल भी सिर्फ और सिर्फ नकद में मिल रहा था। जिन लोगों से पैसे लेने थे, उनकी हालत नकद देने की थी नहीं, सब चेक दे रहे थे। इस सबका असर यह हुआ कि धीरे-धीरे काम बंद हो गया। कुछ महीनों तक तो जमा और बचत में से खाया, लेकिन जब वह भी खत्म हो गई तो फिर मजबूरी में कारखाना बंद करके बच्चों के पेट के लिए एक छोटी सी नौकरी करना पड़ी। ”
आरिफ के कारखाने में बिजली का कमर्शियल कनेक्शन लगा हुआ है। उसे उम्मीद है कि अच्छे दिन फिर आएंगे और वह फिर से अपना कारखाना शुरु कर पाएगा। इसलिए उसने अभी तक पॉवर कनेक्शन नहीं हटवाया है। बिजली का बिल चुकाने के लिए उसने अपने कारखाने की जगह किसी और को पांच हजार रुपए महीने पर किराए पर दे दी है।
आरिफ अकेला नहीं है जिसकी जिंदगी नोटबंदी से बेहाल हो गई है। मुरादाबाद में आरिफ जैसों की फौज है। ऐसे बेशुमार लोग हैं जो कल तक खुशहाल जिंदगी गुजार रहे थे, लेकिन आज वह किसी तरह जैसे-तैसे वक्त गुजार रहे हैं। कुछ तो ऐसे हैं जिन्होंने कारखाने बंद करके फलों के ठेले लगाना शुरु कर दिए हैं, कुछ छिप-छिपकर रिक्शा चला रहे हैं और कुछ छोटी-मोटी नौकरियां कर रहे हैं। ये सारे वे लोग हैं जो समाज में अपनी असली हालत भी संकोच और सम्मान की खातिर बता भी नहीं सकते। आर्थिक रूप से तो इन लोगों की हालत खराब हुई ही है, लेकिन हौसला टूटने से ये लोग पूरी तरह बिखर चुके हैं।
मोहम्मद अकबर का ‘अकबर हैंडीक्राफ्ट्स’ के नाम से अपना कारखाना था। लेकिन नोटबंदी के बाद हालात ने ऐसी करवट ली कि उन्हें अपना कारखाना बंद करना पड़ा और आज वे ‘जैनब ओवरसीज़’ नाम की कंपनी में 12 हजार रुपए महीने की नौकरी करते हैं। “कल तक मेरे कारखाने में 20 से ज्यादा लोग काम करते थे और कोई भी 12 हजार रुपए से कम वेतन वाला नहीं था, लेकिन अब मैं खुद नौकरी कर रहा हूं। अभी मेरे पास बैंक से मैसेज आया है कि मैंने जो ओवरड्राफ्ट लिया था, उसका ब्याज ही 42 हजार रुपए जमा कराना है। जब मेरा काम अच्छा चल रहा था, तो बैंक ने मुझे ओवरड्राफ्ट की सुविधा दी थी। लेकिन नोटबंदी के बाद मैं खुद सड़क पर आ गया हूं।” यह बताते हुए अकबर दुखी हो जाते हैं और कहते हैं कि उनके यहां काम करने वाले बहुत से लोग काम की तलाश में नेपाल की राजधानी काठमांडु चले गए हैं।
अकबर के मुताबिक नोटबंदी के बाद सारा काम चेक से होने लगा और नकदी का काम ही खत्म हो गया, जिसके चलते काम धंधे बंद हो गए, क्योंकि छोटा काम करने वालों को तो सिर्फ और सिर्फ नकद में ही लेनदेन करना होता है क्योंकि उनके पास तो बैंक अकाउंट होते ही नहीं है।
इसी तरह नोमान हैं, जिन्हें अपनी दो बहनों की शादी की शादी करनी है। वह भी एक साल पहले तक एक कारखाना चलाते थे, जो उनके पिता ने स्थापित किया था। लेकिन आज उन्हें हर चीज़ के लिए समझौता करना पड़ रहा है। वे कहते हैं कि, “घर चलाने के लिए जहां से दो पैसे की कमाई होती है, वह कर लेता हूं। सबसे ज्यादा फिक्र मुझे अपनी दो बहनों की है क्योंकि मां-बाप के इंतिकाल के बाद उनकी जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही है। हमें गुमान नहीं था कि ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे। हमारी खुशहाल जिंदगी को किसी की नजर लग गई।”
हाजी अकबर अपना कारखाना भी चलाते हैं और माल को एक्सपोर्ट भी करते हैं। उनका कहना है कि, “मुरादाबाद का मजदूर तबका, कारखानों के मालिक, एक्सपोर्टर्स और आम आदमी, सब के सब नोटबंदी के बाद से इतने परेशान हैं कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि उनका और उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा।” वे कहते हैं कि यह वही मुरादाबाद है जहां से देश को हर साल 700-800 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा मिलती थी, लेकिन आज यह सब ठप हो गया है।
मुरादाबाद में बनने वाले पीतल के सामान का 40 फीसदी देश में बिकता है और 60 फीसदी विदेशों को निर्यात किया जाता रहा है, लेकिन दोनों ही बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, क्योंकि छोटे कारखाने बंद हो गए हैं, कैश मार्केट में है नहीं, और जब माल ही समय पर तैयार नहीं होगा तो एक्सपोर्ट के ऑर्डर भी कैंसिल हो रहे हैं। कुल मिलाकर नोटबंदी ने मुरादाबाद की पूरी अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन को तहस-नहस कर दिया है।
नोटबंदी के समय तनाव भरे दिन याद करके हाजी अशरफ बताते हैं, “मैंने चार महीने तक एक लड़के को सिर्फ इसलिए वेतन दिया कि वह दिन भर बैंकों की लाइन में लगे और पैसे निकाल सके, जिससे मैं समय पर अपने कर्मचारियों को वेतन दे सकूं। यह काम इतना मुश्किल था कि उस लड़के की अकसर बैंक अफसरों और कर्मचारियों से झड़प तक होती थी।” हाजी अशरफ बताते हैं कि मुरादाबाद में करीब 20 हजार छोटे-बड़े कारखाने होंगे, जिनमें से 20 फीसदी से ज्यादा नोटबंदी के कारण बंद हो गए हैं।
नोटबंदी के फैसले से क्षुब्ध मुरादाबाद व्यापार मंडल के अध्यक्ष अजय अग्रवाल कहते हैं कि, “नोटबंदी से कालाधन तो नहीं सामने आया, हां यह जरूर हुआ कि आम आदमी और व्यापारी बिरादरी पूरी तरह बरबाद हो गई। नकद की कमी बाजारों में साफ नजर आती है। आज व्यापारी हाथ पर हाथ धरे बैठा है। नोटबंदी की वजह से 50 फीसदी कारोबार तबाह हो गया।”
मुरादाबाद में जो रौनक नजर आती थी वह अब कहीं नहीं दिखती। पूरे माहौल में एक मायूसी और निराशा है। जो लोग कल तक दूसरों को रोजगार दे रहे थे, आज खुद रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। जब छोटी इकाइयां बंद हो रही हैं तो कैसे कोई युवा, सरकार के स्टार्ट अप इंडिया कार्यक्रम से कोई उम्मीद कर सकता है।
नोटबंदी के दौरान कई लोगों ने अपने प्रियजनों को खोया है, लेकिन आरिफ, अकबर और बेशुमार दूसरे लोगों की आंखों में जो गम और मायूसी है वह साफ बताती है कि ये लोग रोज़ सिसक-सिसक कर मर रहे हैं। और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ नोटबंदी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला जिम्मेदार है।
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