जीएसटी लागू करने की प्रक्रिया पर सीएजी ने उठाए सवाल, कहा- दो साल बाद भी आसान व्यवस्था नहीं दे सकी मोदी सरकार

सीएजी ने संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा है कि जीएसटी लागू होने के दो साल बाद भी केंद्र सरकार एक सरल कर अनुपालन व्यवस्था नहीं दे पाई है। सीएजी ने कहा कि कुल मिलाकर जिस जीएसटी कर अनुपालन प्रणाली की कल्पना की गई थी, वह इस समय काम नहीं कर रही है।

फोटोः सोशल मीडिया
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आईएएनएस

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) के अनुसार, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के दो साल बाद भी केंद्र सरकार एक सरल कर अनुपालन व्यवस्था नहीं दे पाई है। सीएजी ने कहा है कि इससे देश में एक गैर-दखलकारी ई-कर प्रणाली अभी भी दूर की कौड़ी बना हुआ है। उल्लेखनीय है कि नई प्रत्यक्ष कर व्यवस्था, जीएसटी को जुलाई, 2017 में लागू किया गया था।

मंगलवार को सीएजी ने संसद में पेश की गई एक रपट में कहा, "रिटर्न मेकेनिज्म की जटिलता और तकनीकी अड़चनों के कारण इन्वॉयस-मैचिंग को वापस लेना पड़ा, जो आईटीसी फर्जीवाड़े की संभावना वाली प्रणाली को प्रतिपादित करती थी। कुल मिलाकर जिस जीएसटी कर अनुपालन प्रणाली की कल्पना की गई थी, वह इस समय काम नहीं कर रही है।"


सीएजी ने कहा कि जीएसटी के क्रियान्वयन की पूर्ण संभावना को जिस एक महत्वपूर्ण क्षेत्र में हासिल नहीं किया जा सका है, वह है सरलीकृत कर अनुपालन व्यवस्था का क्रियान्वयन। सीएजी ने कहा कि यह उम्मीद थी कि व्यवस्था में स्थिरता आने के बाद अनुपालन में सुधार होगा, लेकिन जो भी रिटर्न दाखिल किए गए हैं, उनमें अप्रैल 2018 से दिसंबर 2018 तक गिरावट का एक रुझान देखने को मिला है।

सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, जीएसटीआर-1 रिटर्न दाखिल करने का प्रतिशत (आउटवार्ड सप्लाई पर मासिक रिटर्न) जीएसटीआर-3बी के दाखिल करने की तुलना में कम था। जीएसटीआर-3बी को लाने से रिटर्न को आईटीसी दावों के साथ दाखिल करने की व्यवस्था शुरू हुई, जिसे सत्यापित नहीं किया जा सकता और लगता है कि इसने जीएसटीआर-1 के भी दाखिले को हतोत्साहित किया है।

सीएजी ने रिपोर्ट में कहा है कि चूंकि जीएसटीआर-1 दाखिल करना अनिवार्य है, लिहाजा शॉर्ट-फाइलिंग चिंता का एक विषय है और इसे जल्द सुलझाने की जरूरत है।

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