युद्ध और सिनेमाः रूस-यूक्रेन संघर्ष के खिलाफ मुखर हुए कई फिल्मकार, लोकतंत्र के लिए की एकजुट होने की अपील

पिछले हफ्ते जब रील और रियल एक होते दिखे तो समकालीन यूक्रेनी और पुतिन विरोधी सिनेमा के वे अनुभव याद आने लगे जिन्हें हाल ही में देखा था। भला हो कान फिल्म फेस्टिवल का जिसने यह अवसर उपलब्ध कराया।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया
user

नम्रता जोशी

युद्धकाल में सिनेमा भला पीछे कैसे रह सकता है? रूस-यूक्रेन संघर्ष की खबरें सामने आने और अखबार के पहले पन्ने या प्राइम टाइम पर इनका कब्जा हो जाने के बाद से ही इसे फिल्मों से जोड़कर देखने वाले लेख सामने आ रहे हैं। अभिनेता सीन पेन की उस वॉइस स्टूडियो डाक्यूमेंट्री रिपोर्ट की तरह जिसमें यूक्रेन पर रूसी हमले जैसे राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के कदम को ‘खतरनाक गलती’ कहा गया है जबकि यूक्रेन और उनके नेता वोलोदीमिर जेलेंस्की के नायकत्व की तारीफ की गई है।

युक्रेनी फिल्म निर्माताओं के एक समूह ने दुनिया से पुतिन की कारस्तानी के कारण लोकतंत्र के लिए उत्पन्न खतरे के प्रति एकजुट होकर खड़े होने की अपील की है। लिखा है कि किस तरह बीते आठ वर्षों से वे अपनी फिल्मों में ‘पूर्वी यूक्रेन में युद्ध’ को विषय के रूप में चित्रित करते रहे और अब इसे पूरे यूक्रेन की हकीकत के तौर पर देख रहे हैं। यह यूरोप ही नहीं, दुनिया को प्रभावित करने वाला है। पत्र पर ‘रिफलेक्सन एंड एटलांटिस’ फेम वैलेंटीन वास्यानोविक, ‘कलोंडाइक’ फेम मैरीना एर गोबार्च के साथ ही नातालिया वोरोजबिट सरीखे बड़े नाम हैं जिनकी ‘बैड रोड्स’ इस साल ऑस्कर में यूक्रेन की आधिकारिक प्रविष्टि थी। सभी ने रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध और तरह-तरह के दुष्प्रचारों से लड़ने की अपील की है।

वोरोजबीट ने तो इसे व्यक्तिगत पुट देते हुए अपने परिवार की पीड़ा साझा की है: ‘हम कुर्सियां, मोमबत्तियां और पानी तहखाने में ले गए। बेटी को इबादत के लिए कहा क्योंकि वह बेहद डरी हुई थी। मेरे पूर्व पति सेना में भर्ती हुए। 21वीं सदी में हम यूरोप के केन्द्र यूक्रेन में रहते हैं। पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया, द बाल्टिक्स, रोमानिया हमारे नजदीकी पड़ोसी हैं। जर्मनी, फ्रांस, इटली की दूरी भी कार से तय की जा सकती है। ये सिर्फ हमारा युद्ध नहीं। हर यूरोपीय इससे प्रभावित होने वाला है। यह हमारी पूरी दुनिया को तबाह कर सकता है। आपकी भगीदारी, समर्थन और मदद की अब बहुत ज्यादा जरूरत है। मैं दुनिया से पुतिन के रूस के खिलाफ एकजुट होने और विजय का आह्वान करती हूं।’

बाद में, रूसी फिल्म बिरादरी के सदस्य, फिल्म निर्माता विटाली मैन्सकी, ब्लादिमीर मिर्जोएव और इल्या ख्राजानोवस्की के साथ ही चुलपान खमातोवा और केसेनिजा रैप्पोपोर्ट सरीखी अभिनेत्रियां भी साथ आए। पिछले हफ्ते जब रील और रियल एक होते दिखे तो समकालीन यूक्रेनी और पुतिन विरोधी सिनेमा के वे अनुभव याद आने लगे जिन्हें हाल ही में देखा था। भला हो कान फिल्म फेस्टिवल का कि यह अवसर मिला। 2017 के पाल्मे डी’ओर प्रतियोगिता खंड में दो फिल्में कुछ अलग दिखीं। एक थी ज्यूरी पुरस्कार विजेता रूसी फिल्मकार आंद्रे जिवागिंत्सेव नेलुबोव की, रूस-फ़्रांस-जर्मनी-बेल्जियम के संयुक्त बैनर तले निर्मित ‘लवलेस’। दूसरी फिल्म थी फ्रांस-यूक्रेन-जर्मनी- लातविया-नीदरलैंड्स-रूस का संयुक्त प्रोडक्शन युक्रेन के सर्गेई लोजनित्सा की ‘क्रोटकाया’ (एक कोमल जीव)।


जिवागिंत्सेव की ‘लवलेस’ बारह साल के बच्चे की नजर से, टूटन की कगार पर खड़े विवाह की कहानी है। माता-पिता तो अपनी राह पर आगे बढ़ चुके हैं और हालात का मुकाबला करने के लिए उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया है। जिवागिंत्सेव की ही 2014 की फिल्म ‘लेविथान’ रूस की समकालीन भ्रष्ट राजनीति पर तल्ख और बेलाग टिप्पणी के तौर पर देखी जाती है। ‘लवलेस’ पुलिस की अकर्मण्यता पर तो फोकस करती है लेकिन वैवाहिक जीवन के आड़े-तिरछे पहलू और उनसे उपजी अंतर्कलह पर उसका ज्यादा ध्यान है। रिश्तों की जंग यहां पुतिन और मौजूदा रूस-यूक्रेन संकट के संदर्भ के साथ ज्यादा प्रमुखता से उभरती है जिसकी खबरें भी पूरी फिल्म में रेडियो पर चलती रहती हैं।

***

लोजनित्सा की ‘ए जेंटल क्रिएचर’ रूसी नौकरशाही, शासन और राजनीति पर तल्ख टिप्पणी है। एक ऐसी महिला की कहानी जिसका पति जेल में सजा काट रहा, लेकिन एक पार्सल उस तक न पहुंच कर लौट आता है जिसके बाद वह उसकी तलाश में निकली है। कारणों और जवाब की तलाश उसके लिए किसी दु:स्वप्न से कम नहीं। यह एक ऐसी विचित्र दुनिया है जहां लोग हल्की सी हवा में गायब हो जाते हैं, उन्हें उन गुनाहों की सजा मिल जाती है जो उन्होंने कभी किए ही नहीं। कानून और न्याय के शासन से दूर यह किसी के साथ कभी भी हो सकता है। पुतिन के रूस के अंधेरे का यह जीता जागता रूपक है।

इसके फिल्म निर्माता सर्गेयी लोजनित्सा को पुतिन के खतरनाक इरादों के मुखर आलोचक के तौर पर जाना जाता है। लोजनित्सा अगले वर्ष और ज्यादा आक्रामक लहजे में ‘कांस’ आते हैं, अपनी फिल्म ‘डोनबास’ के साथ जिसके लिए उन्हें 2018 के ‘अनसर्टेन रेगार्ड’ खंड का बेस्ट डायरेक्टर का पुरस्कार मिला। 2014-15 के पूर्वी यूक्रेन के डोनबास पर केन्द्रित यह रूस समर्थक अलगाववादियों और युक्रेन सरकार के बीच युद्ध पर सटीक व्यंग्य है। एक ऐसा सिनेमा जिसे देखते हुए जबड़े और मुट्ठियां तन जाते हैं।

एक वैज्ञानिक से फिल्ममेकर बने लोजनित्सा समकालीन यूक्रेन में सबसे ज्यादा लोकप्रिय और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित राजनीतिक फिल्म निर्माताओं में हैं। वह क्षेत्र के हालात से वाकिफ ही नहीं, इस अशांत इलाके के हर लमहे के गवाह भी हैं और अतीत के संदर्भ में इस सबका आकलन करते हुए इसके इतिहासकार भी।


फाइनेंसियल टाइम्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, लोजनित्सा इस वक्त लिथुआनिया के विलिनियस में अपनी डाक्यूमेंट्री ‘द नेचुरल हिस्ट्री ऑफ डिस्ट्रक्शन’ पर काम कर रहे हैं। उन्होंने अखबार से कहा कि वह हालिया हमले से हैरान नहीं हुए: ‘मैं ऐसे ही घटनाक्रम की उम्मीद कर रहा था। कई महीनों से मैं इस सब के बारे में कह रहा था। जिस चीज ने मुझे सबसे ज्यादा हैरान किया, वह था मेरे आसपास के लोगों का अंधापन- ‘उन राजनेताओं के प्रति उनका सोच, उनसे आंखे मूंद लेना, जैसे वे जानते ही नहीं थे कि वे क्या करने जा रहे हैं या कि जैसे कुछ हुआ ही न हो।’

‘द हॉलीवुड रिपोर्टर’ के अनुसार लोजनित्सा यूक्रेन के हालात से इतने दु:खी हैं कि रूसी हमले पर यूरोपीय फिल्म अकादमी की शर्मनाक खामोशी के विरोध में उन्होंने अकादमी से इस्तीफा दे दिया है। स्क्रीन में पहली बार प्रकाशित अपने खुले पत्र में वे लिखते हैं: ‘लगातार चार दिन से रूसी सेना युक्रेनी शहरों और गांवों को तबाह कर रही है। नागरिकों की हत्या कर रही है। क्या यह सब वाकई ऐसा ही है कि आप सब मानवता, मानवाधिकार और गरिमा के पैरोकार, आजादी और लोकतंत्र के समर्थक- युद्ध को युद्ध कहने, बर्बरता की निंदा करने और विरोध का अपना स्वर ऊंचा करने से डरते हैं।’

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia