कादर खानः जिन्हें अमिताभ को अमित कह कर बुलाना भारी पड़ गया

अमिताभ का जादू जब सारे देश में सिर चढ़ कर बोल रहा था तब महमूद, प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई के अलावा शायद कादर खान ही ऐसे शख्स थे जो अमिताभ को अमित कह कर बुलाते थे। यही बात अमिताभ को धीरे-धीरे इतनी नागवार गुजरने लगी कि उन्होंने कादर खान से दूरी बना ली।

फोटोः सोशल मीडिया
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इकबाल रिजवी

जब अमिताभ का सूरज चमक रहा था तब उनकी कामयाबी के पीछे मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा और सलीम जावेद की जोड़ी का हाथ माना जाता था। इन्होंने अमिताभ को लेकर सर्वाधिक हिट फिल्में बनाईं। लेकिन तब एक सच्चाई को किसी ने नहीं स्वीकारा कि अमिताभ बच्चन की बेमिसाल कामयाबी में संवाद लेखक के रूप में कादर खान का अहम रोल रहा। सिर्फ संवाद लिखने में ही नहीं बल्कि किस शब्द की अदायगी कैसे हो यह बताने में भी कादर खान ने बहुत मेहनत की। कादर खान जिस फिल्म के लिए अमिताभ के संवाद लिखते थे तो उन्हें अपनी आवाज में रिकार्ड कर अमिताभ को दे देते थे ताकी वे उन्हें बार-बार सुन सकें। अमिताभ और कादर खान की दोस्ती कई सालों तक चली।

यह जानकार हैरानी होती है कि जब कादर खान को काम मिलना बंद हो गया तो दबी जबान में उन्होंने इसका जिम्मेदार अमिताभ बच्चन को ठहराया। यू ट्यूब पर मौजूद एक इंटरव्यू में कादर खान ने इसकी वजह इस तरह बतायी कि अमिताभ का जादू जब सारे देश में सिर चढ़ कर बोल रहा था तब महमूद, प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई के अलावा शायद कादर खान ही ऐसे शख्स थे जो अमिताभ को अमित कह कर बुलाते थे। वरना सारे लोग अमिताभ को अमित जी कह कर ही बुलाते थे। यही बात अमिताभ को धीरे-धीरे इतनी नागवार गुजरने लगी कि उन्होंने कादर खान से दूरी बना ली।

जाहिर था कि अस्सी और नब्बे के मध्य दशक तक जिस इंसान से अमिताभ ने अपनी खामोश नाराजगी का इजहार कर दिया उसके बुरे दिन तो शुरू ही हो जाते थे। लेकिन बुरे दिन आने से पहले कादर खान ने अपनी प्रतिभा के दम पर फिल्मी दुनिया में जो हस्ती बना ली थी वो अपने में एक मिसाल बन गयी।

कादर खानः जिन्हें अमिताभ को अमित कह कर बुलाना भारी पड़ गया

1937 में काबुल में पैदा हुए कादर खान का शुरूआती जीवन बेहद गरीबी में बीता। गरीबी से लड़ने के लिए ही उनका परिवार काबुल से मुंबई आया था, लेकिन गरीबी दूर नहीं हो सकी। कादर खान ने हमेशा अपनी मां का एक कहना जरूर माना कि बेटा कुछ भी हो जाए पढ़ाई मत छोड़ना। जोर-जोर से फिल्मों के संवाद बोलने का कादर खान को बहुत शौक था। लोग उनका मजाक ना उड़ाएं इसलिए 10 साल के कादर खान कब्रिस्तान में जा कर जोर-जोर से संवाद बोला करते थे। उन्हें कब्रिस्तान में संवाद बोलते और अभिनय करते देखने वाले लोगों में से एक शख्स उन्हें मोहल्ले के एक नाटक ग्रुप में ले गया। यहीं से कादर खान की लेखन और अभिनय की विधिवित ट्रेनिंग शुरू हुई. वहां स्कूली किताबों से अलग उनका परिचय कहानी, उपन्यास और शायरी से हुआ। अपनी मां की बात को ध्यान में रखते हुए कादर खान ने बुरे से बुरे आर्थिक दौर में भी स्कूली पढ़ाई जारी रखी। पढ़ाई खत्म करने के बाद वे एक पॉलीटेक्निक में शिक्षक हो गए।

उसी दौर में उनके लिखे एक नाटक लोकल ट्रेन को एक प्रतियोगिता में पुरस्कृत किया गया। इस प्रतियोगिता की ज्यूरी में मशहूर लेखक और फिल्मकार राजेंद्र सिंह बेदी, उनके बेटे नरेंद्र बेदी और कामिनी कौशल शामिल थे। नरेंद्र बेदी ने कादर कान की प्रतिभा को पहचानते हुये उन्हें अपने साथ फिल्म “जवानी दीवानी” के संवाद लिखने का काम दिया। कादर के एक और नाटक से प्रभावित हो कर दिलीप कुमार ने उन्हें अपनी फिल्म बैराग और सगीना में अभिनय करने का मौका दिया। लेकिन राजेश खन्ना अभीनीत फिल्म “दाग” कादर खान के अभिनय की पहली प्रदर्शित फिल्म थी।

फिल्मी दुनिया में लेखक के रूप में कादर खान की पहचान मजबूत करने वाली पहली फिल्म मनमोहन देसाई की “रोटी” (1973) साबित हुई। इसके बाद वे मनमोहन देसाई की हर फिल्म का हिस्सा बनने लगे। संवाद लेखक को तौर पर कादर खान की लोकप्रियता का कारण बना उनकी आम बोलचाल की भाषा जो सबकी जबान पर चढ़ जाती थी। अस्सी के दशक में पर्दे पर अमिताभ का कद बुलंद बनाए रखने में कादर खान के संवादों का अहम हाथ रहा। मिस्टर नटवर लाल, शराबी, कुली, देश प्रेमी, लावारिस, सुहाग, गंगा जमना सरस्वती, सत्ते पे सत्ता, नसीब और मुकद्दर का सिकंदर सहित अनेक फिल्मों में अमिताभ बच्चन को कादर खान के संवादों का सहारा मिला।

अस्सी के दश्क के मध्य में कादर खान ने निर्माताओं की मांग पर गली मोहल्ले और नुक्कड़ों पर बोली जाने वाली बातों को आधार बना कर दो अर्थी संवाद लिखने की शुरूआत की उस समय फिल्म को हिट कराने के लिए निर्माताओं को शायद यह सबसे असरदार हथियार महसूस हुआ होगा। अपने सवादों के सहारे गोविंदा और शक्ति कपूर के साथ मिल कर कादर खान ने पर्दे पर धमाल मचा कर रख दिया।

लेकिन उनके द्वीअर्थी संवादों और भोंडी कॉमेडी की जम कर आलोचना भी हुई। तब तक कादर खान सर्वश्रेष्ठ संवाद, सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी और सर्वश्रेष्ठ सहायक भूमिकाओं के लिए कई बार फिल्म फेयर अवार्ड हासिल कर चुके थे। एक दिन हर सूरज को डूबना होता है और ऐसा कादर खान के साथ भी हुआ। काफी लंबे समय से बीमार चल रहे कादर खान इस बार अस्पताल पहुंचे तो वापस नहीं लौट सके।

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