बॉलीवुड में स्क्रिप्ट चोरी और क्रेडिट न देने का बढ़ा चलन, कई बड़े नामों पर लगे आरोप
फिल्म इंडस्ट्री के सभी बड़े नाम, चाहे वो संजय लीला भंसाली हों, महेश भट्ट हों या गुलशन कुमार के सुपुत्र भूषण कुमार हों, इन सब पर लगातार दूसरे लेखकों की कहानी, आइडिया और कॉन्सेप्ट चोरी के आरोप लगते रहे हैं और कई बार ये साबित भी हुए हैं।
चेहरे पर हल्की दाढ़ी और ऐनक लगाया हुआ एक दुबला-पतला युवक मुंबई के एक बड़े फिल्म प्रोडक्शन हाउस के दफ्तर में बैठा है। यह फिल्म लेखक है। थोड़ी देर बाद, प्रोड्यूसर महोदय उसे अपने कमरे में बुलाते हैं। फिल्म लेखक संक्षेप में अपनी कहानी सुनाता है। अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ प्रोड्यूसर अब अटेंशन की मुद्रा में आ जाता है। उसे कहानी जम गई है। लेकिन अपनी भावनाएं छुपा जाता है। वह फिल्म लेखक से कहता है कि उसके पास अगर फिल्म की स्क्रिप्ट पड़ी है तो वह छोड़ जाए। उसे अभी बहुत काम है। उसे यह कहानी एक बार पूरी पढ़नी होगी।
लेखक अपने झोले से स्क्रिप्ट की कॉपी निकालकर उसकी मेज पर रखता है। प्रोड्यूसर चेहरे पर अनिच्छा का भाव लिए लेखक को नमस्कार करता है और दस दिन बाद फोन करने कहता है। लेखक खुश होकर बाहर निकलता है। प्रोड्यूसर अपने पसंदीदा फिल्म लेखक को फोन लगाता है और उससे कहता है कि उसके दिमाग में एक जबरदस्त आइडिया आया है। वह उस पर तुरंत काम शुरू कर दे।
दस दिन बाद दाढ़ी-चश्मे वाला फिल्म लेखक प्रोड्यूसर को फोन करता है। थोड़ी देर में फिर करता है। अगले दिन भी करता है, लेकिन प्रोड्यूसर का फोन नहीं उठता। यह बॉलीवुड के कई फिल्म लेखकों की दास्तान है।
कुछ साल पहले तक बॉलीवुड में कहानी और आइडिया का कोई अकाल नहीं हुआ करता था। हॉलीवुड की फिल्मों की कहानियां और उन फिल्मों के सीन के सीन बड़े बेशर्मी से उड़ाए जाते थे और उन्हें मौलिक कहकर प्रचारित भी किया जाता था। कोई रोक टोक नहीं थी।
दो वजहों से इस पर रोक लग गई। पहली यह कि कई सारे चैनलों पर दिन-रात हॉलीवुड की फिल्में चलने लगीं। दर्शक इन फिल्मों से वाकिफ होते गए। चोरी पकड़े जाने का डर सामने आ गया। दूसरी वजह यह हुई कि हॉलीवुड की कई फिल्म निर्माण कंपनियां हिंदुस्तान में धंधा करने आ गईं। उन्होंने उनकी फिल्मों और आइडिया की चोरी पर सवाल उठाना शुरू किया। कुछ मामलों में तो फिल्म के प्रोड्यूसर को कोर्ट तक में घसीटा गया। कॉपीराइट का मामला ऐसा नहीं रहा जिसे आप वैसे ही दरकिनार कर दें।
नतीजा यह हुआ कि बॉलीवुड में नई कहानी और नए आयडिया कम हो गए। एक किस्म का संकट उत्पन्न हो गया। तो, इसका एक उलटा ही असर दिखने लग गया। बॉलीवुड में अब कई लोगों ने दूसरों की कहानी, कॉन्सेप्ट और आइडिया को ही चुराना शुरू कर दिया। ये दूसरे कोई और नहीं, अपने ही हैं। इनमें कई तो संघर्षशील लेखक हैं, तो कई ऐसे जिनके लिए फिल्म इंडस्ट्री नई नहीं है।
कई बार तो उनकी कहानी पर मिलने वाला क्रेडिट उन्हें नहीं दिया जाता, तो कई बार उनकी कहानी पर कोई और फिल्म बना लेता है। लेखक बेचारे में अगर लड़ने का माद्दा है, तो वह लड़ता है। अगर नहीं, तो इसे अपनी किस्मत और फिल्म इंडस्ट्री का चलन मानकर चुप बैठ जाता है।
हाल में, राकेश ओमप्रकाश मेहरा नाम के एक बड़े डायरेक्टर की अपेक्षाकृत छोटी फिल्म, ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ को लेकर भी विवाद उठा। फिल्म के लेखक मनोज मैरता ने आरोप लगाया कि फिल्म की कहानी उनकी है, लेकिन राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने फिल्म के क्रेडिट से उनका नाम ही हटा दिया है।
मनोज का कहना है कि उन्होंने इस फिल्म की कहानी 2014 में ही लिखी थी। कई फिल्म प्रोड्यूसरों को दिखाने के बाद जब वह मेहरा के पास पहुंचे, तो मेहरा ने उन्हें फिल्म की स्क्रिप्ट में कुछ बदलाव करने कहा, जो उन्होंने कर दिया। लेकिन जब मनोज ने फिल्म के पोस्टर देखे, तो उनका नाम कहीं नहीं था। जब मनोज ने मेहरा को फोन करना शुरू किया, तो पहले तो फोन नहीं उठा। लेकिन जब वह लगातार पीछे पड़ गए, तो फिल्म के लेखक के तौर पर उनका नाम दिया गया।
मनोज तब भी संतुष्ट नहीं हुए, क्योंकि उनका कहना था कि उन्होंने फिल्म की पटकथा और संवाद में भी अपना योगदान किया है। मनोज अपनी मांग को लेकर मुंबई स्थित स्क्रीन राइटर एसोसिएशन गए, जिसने माना कि मेहरा की पटकथा दरअसल मनोज की पटकथा की ही नकल है। मेहरा तब भी नहीं माने। फिलहाल, मामला कोर्ट में है।
अपूर्व असरानी ने ‘शाहिद’ और ‘अलीगढ़’ जैसी फिल्में लिखी हैं। पिछले सात-आठ साल से इंडस्ट्री में हैं। जब अपूर्व, कंगना रनौत की फिल्म ‘सिमरन’ लिख रहे थे, तो उन्होंने मीडिया में जाकर यह आरोप लगाया कि कंगना इस फिल्म से उन्हें हटाकर खुद ही फिल्म के लेखक, पटकथा लेखक का क्रेडिट उनसे छीन लेना चाहती हैं। ‘सिमरन’ के डायरेक्टर हंसल मेहता थे। अपूर्व ने यह भी आरोप लगाया किजब फिल्म में उनके क्रेडिट को लेकर उनकी कंगना से लड़ाई चल रही थी, तो भी हंसल मेहता ने उनका साथ नहीं दिया।
हाल में जब ‘मणिकर्णिका क्वीन ऑफ झांसी’ फिल्म में एक बार फिर कंगना फिल्म की क्रेडिट को लेकर फिल्म के मौलिक निर्देशक कृश के साथ उलझ गईं, तो अपूर्व ने सोशल मीडिया में जमकर कंगना के खिलाफ अपनी भड़ास निकाली।
कुछ दिनों पहले की बात है। शुजीत सरकार की एक फिल्म रिलीज हुई। नाम था ‘अक्टूबर’। फिल्म आलोचकों ने फिल्म की बड़ी तारीफ की। बॉक्स ऑफिस पर भी ठीक-ठाक बिजनेस हुआ फिल्म का। तभी एक मराठी फिल्मकार सारिका मेने ने आरोप लगाया कि यह फिल्म उनकी रिलीज हो चुकी मराठी फिल्म की नकल है।
उन्होंने प्रमाण के तौर पर मीडिया में न केवल अपनी मराठी फिल्म के दृश्य और संवाद उपलब्ध कराए, बल्कि यह भी कहा कि उनकी कहानी दरअसल उनके अपने बड़े भाई और उनकी प्रेमिका की कहानी थी, जो किसी दुर्घटना के बाद कोमा में चली गई थी और उनके भाई ने उसकी मृत्यु तक उसके साथ रहकर अस्पताल में उसकी सेवा की। मीडिया में इसकी खबरें छपीं, मामला स्क्रीन राइटर एसोसीएशन में पहुंचा लेकिन कुछ हुआ नहीं। सारिका अभी भी न्याय का इंतजार कर रही हैं।
बॉलीवुड में स्क्रिप्ट चोरी और क्रेडिट न देने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। फिल्म लेखकों की प्रतिनिधि संस्था स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन के पास हर महीनें दर्जनों लेखकों की शिकायतें आती हैं। कुछ जो लड़ना चाहते हैं, वे न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाते हैं और कई बार जीत भी जाते हैं।
हाल में, शाहिद कपूर की फिल्म ‘बत्तीगुल मीटर चालू’ के रिलीज होने के पहले विपुल के रावल नाम के एक लेखक ने फिल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर पर आरोप लगाया कि यह फिल्म उनकी कहानी रोशनी पर आधारित है, जिसे उन्होंने 2009 में बतौर कहानी और 2016 में बतौर स्क्रिप्ट रजिस्टर कराया था। वह कोर्ट गए और जीत भी गए। उन्हें न केवल फिल्म में क्रेडिट मिला, बल्कि पैसे भी मिले।
फिल्मकार कुणाल कोहली पर यह आरोप लगाते हुए कि उन्होंने फिर से नाम की कहानी चुरा ली है, फिल्म की लेखक ज्योति कपूर सुप्रीम कोर्ट तक गई। कोर्ट ने कुणाल कोहली से कहा कि वह ज्योति कपूर को पच्चीस लाख दें।
फिल्म इंडस्ट्री के सभी बड़े नाम, चाहे वो संजय लीला भंसाली हों, महेश भट्ट हों, या गुलशन कुमार के सुपुत्र भूषण कुमार हों, इन सब पर लगातार दूसरे लेखकों की कहानी, आइडिया और कॉन्सेप्ट चोरी के आरोप लगते रहे हैं और कई बार ये साबित भी हुए हैं। हां... यह जरूर है कि चोरी करने से पहले यह जरूर देखा जाता है कि किसकी कहानी उड़ाई जा रही है। कम उदाहरण हैं जहां बड़े लेखकों, या ऐसे लेखकों की कहानी, जिनकी फिल्में रिलीज हो चुकी हैं, उड़ाई जाती हैं।
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