बड़े परदे से भी बड़ा हुआ OTT प्लेटफॉर्म का कद, विदेशी ही नहीं देसी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म की भी हुई चांदी!
कोरोना काल ने जहां ज्यादातर काम-धंधों में मंदी ला दी है, वहीं स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के धंधे में जोरदार चमक दिखी है। सिर्फ नेटफ्लिक्स और एमजॉन प्राइम जैसे विदेशी ही नहीं बल्कि देसी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म भी नए-नए सीरीज और नई-नई फिल्मों के लिए करोड़ों खर्च कर रहे हैं।
अमेरिकी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स अगले साल सिर्फ नई सीरीज और नई फिल्मों के प्रोडक्शन पर ही दस से पंद्रह अरब डॉलर खर्च कर सकता है। इसी तरह, एक और विदेशी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म एमजॉन प्राइम के बारे में भी खबरें हैं कि वह भी आने वाले समय में नए कंटेंट पर काफी मोटी रकम खर्च करने वाला है। कोरोना काल ने जहां ज्यादातर धंधे में मंदी ला दी है, वहीं स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के धंधे में जोरदार चमक दिखी है। लोगों के पास उपलब्ध ज्यादा वक्त और मनोरंजन की जरूरत ने इनके व्यापार को कई गुना बढ़ा दिया है। हाल में ही नामी फिल्मकार प्रकाश झा के एक नए चर्चित सीरीज ‘आश्रम’ को तीस करोड़ से अधिक लोगों ने देखा।
ऐसा दावा स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म मैक्स प्लेयर कर रहा है जिसपर यह वेब सीरीज नौ हिस्सों में स्ट्रीम हुई। अब चर्चा है कि मैक्स प्लेयर अगले महीने के अंत तक इस वेब सीरीज के अगले हिस्से को लाने वाला है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ नेटफ्लिक्स और एमजॉन प्राइम-जैसी विदेशी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म नए कंटेंट पर बेतहाशा पैसा लगा रहे हैं बल्कि देसी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म का भी वही हाल है। वे भी नए-नए सीरीज और नई फिल्मों के लिए करोड़ों खर्च कर रहे हैं। आज हिंदुस्तान में अलग-अलग भाषाओं में देसी- विदेशी करीब तीस ऐसे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म हैं। इन सबमें अपनी ग्राहक संख्या बढ़ाने के लिए होड़ लगी है।
मैक्स प्लेयर-जैसे कुछ प्लेटफॉर्म अभी भी फ्री हैं। आगे इसकी योजना दर्शकों से फीस बटोरने की है या नहीं, कह नहीं सकते। लगभग रोज घोषणाएं हो रही हैं कि बॉलीवुड की नई-नई फिल्में अब सीधेइन ओटीटी(ओवर द टॉप) प्लेटफॉर्म पर रिलीज होंगी। इनमें अक्षय कुमार, अजय देवगन जैसे बड़े सितारों की फिल्में तो हैं ही, कई छोटी फिल्में भी शामिल हैं जिन्हें सामान्य परिस्थितियों में भी सिनेमाघरों में रिलीज करना मुश्किल काम है। बीते हफ्ते एमजॉन प्राइम ने बाकायदा विज्ञापन देकर घोषणा की कि वह वरुण धवन और सारा अली खान की‘कुली नंबर वन’, भूमि पेडणेकर की‘दुर्गावती’ जैसी आठ-दस नई फिल्में सीधे अपने प्लेटफॉर्म पर रिलीज करने वाला है।
दरअसल, फिल्म प्रोड्यूसरों के लिए भी यह अच्छा सौदा साबित हो रहा है। आज कल की बात न करें, जब सिनेमाघर वैसे ही बंद हैं। सामान्य परिस्थिति में भीकिसी भी फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज करना प्रोड्यूसर के लिए अतिरिक्त खर्चे का बोझ लाता है। फिल्म के प्रचार और सिनेमाघरों तथा डिस्ट्रीब्यूटरों के खर्च, कमीशन आदि पर लाखों- करोड़ों खर्च होते हैं। फिल्म चलगई तो ठीक, वरना यह खर्च प्रोड्यूसर को अपनी जेब से भरना पड़ता है। स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर अगर आपने सीधे अपनी फिल्म बेच दी तो बाकी झंझट से आप मुक्त हो गए और सीधे पैसे आपके अकाउंट में ट्रासंफर हो गए- हींग लगेना फिटकरी रंग चोखा।
हां, पैसा जरूर फिल्म की हैसियत और फिल्म के स्टार की हैसियत के मुताबिक मिलता है। खबर है कि अक्षय कुमार की‘लक्ष्मीबम’ के लिए हॉटस्टार ने सौ करोड़ के आस पास खर्च किए हैं। उसी तरह, अजय देवगन की नई फिल्म के लिए भी काफी मोटी रकम दी गई है। आपको मालूम ही होगा कि अक्षय कुमार ने एमजॉन प्राइम की एक वेब सीरीज में एक्टिंग करने के लिए भी हामी भरी है। अक्षय की फीस ही सौ करोड़ रुपये से ऊपर की बताई जा रही है। इसलिए, अचानक तो नहीं कहेंगे लेकिन पिछले कुछ समय सेस्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म या ओटीटी(ओवर द टॉप) प्लेटफॉर्म अब सिनेमाघरों के कद से बड़े दिखने-लगने लगे हैं, यानी इनका कद बड़े परदे से भी बड़ा हो गया है। नतीजा यह हुआ है कि अब छोटा-बड़ा कोई भी फिल्मकार इन्हें अछूत नहीं मान रहा। सब इनके लिए काम कर रहे हैं। जो नहीं कर रहे, वे करने की कोशिश में लगे हैं। इनके पास बजट है। इनके पास पैसा है। आप इसका अंदाजा सिर्फ इससे लगाएं कि जहां टीवी सीरियल का बजट अधिकतम पंद्रह से बीस लाख प्रति एपिसोड होता है, वेब सीरीज के एक एपिसोड का बजट पचास लाख से दो करोड़ रुपये प्रति एपिसोड तक होता है।
इन सब का नतीजा यह हुआ है कि सिनेमाघर वाले या मल्टी प्लेक्स वाले चिंता में हैं। उन्हें लगता है कि उनका धंधा कोरोना की वजह से पहले से ही मंदा था। स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म नेऔर कबाड़ा कर दिया है। जब बड़ी-बड़ी फिल्में सीधे इन्हीं पर आ जाएंगी तो सिनेमा हॉल जाकर कौन फिल्में देखेगा? बात सही भी है। अभी तो यह हाल है कि सिर्फ वही बनी हुई तैयार बड़ी फिल्में स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म या ओटीटीपर रिलीज होने से परहेज कर रही हैं जिन्हें लगता है कि ओटीटी वाले जो पैसा इन्हें देंगे, उनसे इनका खर्चा नहीं निकल पाएगा। इनमें रोहित शेट्टी, सलमान खान और रणबीर सिंह (फिल्म83) की कुछ फिल्में हैं।
ये सब सिनेमाघरों के खुलने और सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि सिनेमाघरों के खुलने के बाद भी वहां इतनी बंदिशें होंगी कि कितने लोग उन बंदिशों और मौजूदा डर के माहौल में वहां जाकर फिल्में देखेंगेऔर उनसे कितना बिजनेस होगा, यह देखने वाली बात है।
विदेशों में स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म, खासकर नेटफ्लिक्स, बड़े फिल्मकारों को उनकी फिल्मों के प्रोडक्शन के लिए पैसे भी दे रहा है। उसने मार्टिन स्कोरसेसे-जैसे बड़े फिल्मकार को‘द आइरिशमैन’ जैसी फिल्म के लिए करोड़ों का बजट दिया। ऐसीफिल्मों के सभी अधिकार फिर नेटफ्लिक्स के पास होते हैं। फिर वही इन्हें जहां चाहेरिलीज करे। फिल्मकार का फिर अपनी फिल्म पर कोई व्यवसायिक नियंत्रण नहीं रह जाता। अमेरिका में स्टीवन स्पिलबर्ग-जैसे बहुत बड़े नामों नेनेटफ्लिकस के इस एकाधिकार पूर्ण रवैये की कई मौकों पर कड़ी आलोचना की है और इसके बनाई फिल्मों को ऑस्कर अवार्ड की रेस से दूर रखने की इस आधार पर दूर रखने की वकालत की है कि जिस तरह टीवी फिल्मों को ऑस्कर नहीं दिया जाता, उसी तरह स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म की फिल्मों को भी ऑस्कर नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन उनके विरोध का कोई खास असर नहीं हुआ है। हर साल अब नेटफ्लिक्स के प्रोडक्शन वाली फिल्मों को ऑस्कर मिलने की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।
नेटफ्लिक्स ने अपने पांव पूरी दुनिया में इस कदर पसार लिए हैं कि यह लगभग हर मुल्क की अच्छी कहानियों को अपने प्लेटफॉर्म पर चाहता है- चाहे वे टीवी पर पहले ही चल चुकी हों। इसने स्पेन के टीवी पर चल चुके एक सीरियल का न केवल अधिग्रहण किया बल्कि उसके अगले हिस्से को भी बनवाया जो‘मनी हायस्ट’ नाम से दुनिया भर में रिलीज हुआ और इसके सबसे ज्यादा देखे जाने वाले सीरीज में शामिल हुआ। हाल में इसने दस उन अपनी फिल्मों की सूची जारी की है जो नेटफ्लिक्स पर सबसे ज्यादा देखी गई। उनमें ‘एक्सट्रेक्शन’, ‘बर्डबॉक्स’ जैसी फिल्में हैं जिन्हें दस करोड़ के आस पास लोगों ने देखा। अंदाजा लगाइए कि कितने लोग इन्हें देखते हैं और इनकी पहुंच कितनी ज्यादा है। इनकी वेब सीरीज़ की व्यूअरशिप तो और ज्यादा है।
इन्हीं सब वजहों से कुछ लोग भारत में सिनेमाघरों की मृत्यु की घोषणा भी करने लगे हैं। लेकिन निश्चित तौर पर ऐसा करना या ऐसा कहना न केवल गलत है बल्कि बहुत जल्दबाजी भी है। जरा कोरोना काल निकल जाए। स्थितियां नॉर्मल हो जाएं। और तब भी सिनेमाघरों जाने से लोग-बाग परहेज करें तो निश्चित तौर पर वह एक चिंताजनक स्थिति होगी। लेकिन भविष्य किसने देखा है। आगे क्या होगा, किसे खबर है?
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