‘गेम ओवर’ तापसी पन्नू के आत्मविश्वास और जीत की कहानी को और आगे बढ़ाती है

‘गेम ओवर’ के पहले तापसी की ‘बदला’ भी पारंपरिक हिंदी फिल्म नहीं थी। हिंदी फिल्मों में कम अभिनेत्रियां ‘आउट ऑफ बॉक्स’ फिल्में करती हैं। तापसी की फिल्मों पर नजर डालें तो उनमें विषय और विधा की विविधता दिखती है। उनके निभाए किरदार साहसी और जुझारू होते हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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अजय ब्रह्मात्मज

तापसी पन्नू की फिल्म ‘गेम ओवर’ एक साथ तमिल, तेलुगू और हिंदी में आई है। मूल रूप से तमिल में बनी यह फिल्म हिंदी में डब होकर रिलीज हुई है। हिंदी में इसे चर्चित निर्माता-निर्देशक अनुराग कश्यप ने प्रस्तुत किया है। हिंदी की पारंपरिक फिल्मों से अलग इस फिल्म में गिनती के चार-पांच पात्र हैं। फिल्म एक कमरे में ही रहती है। मुख्य रूप से दो किरदारों की गतिविधियों और संवादों में फिल्म रोमांचक कहानी रचती है।

फिल्म में तापसी पन्नू लीड भूमिका में हैं। फिल्म की नायिका काफी समय तक व्हील चेयर से बंधी रहती है और उसके दोनों पांव में प्लास्टर लगा है। वह डरी, सहमी, आशंकित और साहसी लड़की है। एक हादसे से गुजर चुकी स्वप्ना अगले आसन्न हादसे के मुकाबले के लिए खुद को तैयार करती है। ‘फाइट लाइक ए गर्ल’ का संदेश देती यह फिल्म वर्तमान दौर में लड़कियों के आत्मविश्वास और जीत की कहानी है।

‘गेम ओवर’ दर्शकों से ज्यादा समीक्षकों के बीच पसंद की गई है। दरअसल, हिंदी दर्शकों को ऐसी फिल्में देखने की आदत नहीं है। हिंदी में रहस्य और रोमांच का भी एक फार्मूला बन चुका है। पहले रामसे और बाद में विक्रम भट्ट ने उसे विस्तार तो दिया, लेकिन वे इस विषय और विधा को घिसी-पिटी गलियों में ले गए। अश्विन सर्वनन की ‘गेम ओवर’ रोमांच की मिश्रित विधा का नया प्रस्थान है। तापसी पन्नू ने अपनी अदाकारी से इसे संपन्न किया है।

‘गेम ओवर’ के पहले आई तापसी पन्नू की ‘बदला’ भी पारंपरिक हिंदी फिल्म नहीं थी। हिंदी फिल्मों में कम अभिनेत्रियां ‘आउट ऑफ बॉक्स’ फिल्में स्वीकार करती हैं और ऐसी फिल्मों की चुनौतियों पर खरी उतरती हैं। तापसी पन्नू की फिल्मों पर सरसरी नजर डालें तो उनमें विषय और विधा की विविधता दिखाई देती है। वह किसी एक इमेज में नहीं बंधी हैं। तापसी पन्नू के निभाए किरदार साहसी और जुझारू होते हैं। वह अपने सामान्य चेहरे के साथ इन किरदारों में विश्वसनीय लगती हैं।


किरदारों में विश्वसनीयता आती है, तो कलाकार में दर्शकों का भरोसा बढ़ता है। तापसी पन्नू ने यह भरोसा धीरे-धीरे हासिल किया है। लोकप्रियता के लिहाज से तापसी पन्नू के करियर में ‘पिंक’ निर्णायक मोड़ है। इस फिल्म के किरदार के लिए आवश्यक दृढ़ता तापसी पन्नू में दिखी थी। मीनल अरोड़ा अटल विश्वास के साथ ताकतवर दरिंदों से जूझती है। अपना पक्ष रखते हुए वह जाहिर करती है कि इक्कीसवीं सदी की आजाद तबीयत लड़की के लिए स्वेच्छा खास मायने रखती है और ‘नो मिंस नो’ होता है।

भारतीय समाज में आजाद स्वभाव की लड़कियों को बदचलन और कथित रूप से ‘राजी’ मान लिया जाता है। वास्तव में पुरुष प्रधान समाज का पाखंड लड़कियों के स्वतंत्र विचरण को सहज रूप में नहीं ले पाता। सामाजिक नैतिकता और आदर्श की आड़ में लड़कियों की आजादी पर अंकुश लगाने की कोशिशें जारी रहती हैं। ‘पिंक’ की लड़कियों के जरिए सुजीत सरकार ने लड़कियों के बदलते एटीट्यूड को दिखाने की सुंदर और सार्थक कोशिश की थी। यही वजह है कि फिल्म दर्शकों के बीच पसंद की गई और तापसी पन्नू को लोकप्रिय स्वीकृति मिली।

दिल्ली के मध्यवर्गीय पंजाबी परिवार में पली-बढ़ी तापसी पन्नू स्कूल के दिनों से ही डिबेटऔर परफॉर्मेंस में अव्वल रहीं। साल 2008 में वह चैनल वी के ‘गेट गॉर्जियस’ शो के लिए चुनी गईं। यहीं से सॉफ्टवेयर इंजीनियर तापसी पन्नू के जीवन की दिशा बदली। मॉडलिंग और एक्टिंग की राह दिखी, तो तापसी पन्नू ने उन्हें आजमाया और सफल रहीं। फिर ऐसा दौर आया है कि वह तेलुगू के प्रसिद्ध निर्देशक के. राघवेंद्र राव की फिल्म के लिए चुन ली गईं। अगले तीन सालों में उन्होंने तेलुगू, तमिल और एक मलयालम फिल्म को मिलाकर लगभग 10 फिल्मों में काम किया।

फिर 2013 में डेविड धवन की फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ के साथ तापसी पन्नू हिंदी फिल्मों में आईं। अपनी बातचीत में वह स्पष्ट करती रही हैं कि उन्होंने नॉर्थ की दूसरी अभिनेत्रियों की तरह हिंदी फिल्मों में आने के लिए दक्षिण भारतीय भाषाओं को प्लेटफार्म की तरह इस्तेमाल नहीं किया। दक्षिण की फिल्में करते समय हिंदी फिल्मों की कोई प्लानिंग भी नहीं थी, लेकिन हिंदी फिल्म करने के बाद तापसी पन्नू को एक्टिंग की बारीकियों में भाषा की भूमिका समझ में आई और अभिनय का आनंद मिला।


एक बातचीत में तापसी पन्नू ने दक्षिण भारतीय भाषा और हिंदी की फिल्मों में अभिनय के अनुभव के फर्क के बारे में बताते हुए कहा था कि तमिल और तेलुगू की जानकारी नहीं होने की वजह से और शुरू में उन भाषाओं के संवादों के शब्द बगैर मानी समझे दोहरा देती थीं। हिंदी में ‘चश्मेबद्दूर’ करते समय अभ्यास की भाषा हिंदी मिली, तो उन्होंने महसूस किया कि संवाद अदायगी के साथ अदाकारी में भी फर्क आ गया है। यह फर्क इसलिए आया कि संवादों में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ मालूम थे। उन्हें बोलते समय लहजे और ठहराव पर ध्यान देने से एक्सप्रेशन में अंतर आया।

हिंदी का अभ्यास और ज्ञान तापसी पन्नू को समकालीन अभिनेत्रियों में बढ़त देता है। वह इसका भरपूर फायदा उठा रही हैं। उनकी हिंदी फिल्मों के किरदारों के परिवेश और पृष्ठभूमि पर गौर करें, तो उनमें अधिकांश पंजाबी किरदार हैं। इन किरदारों को निभाते समय वह स्वाभाविक रूप से पंजाबी कुड़ियों का अंदाज लेकर आती हैं। कुछ फिल्मों में तो वह ठेठ सरदार परिवार की लड़की हैं। बग्गा, अरोड़ा, मल्होत्रा, हरप्रीत और सेठी आदि नाम-उपनाम के किरदार सबूत हैं।

तापसी ने ‘चश्मेबद्दूर’ और ‘जुड़वां 2’ जैसी कमर्शियल फिल्में की हैं, लेकिन वह ऐसी फिल्मों के इंतजार में बैठी नहीं रहीं। उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि वह हिंदी फिल्मों की हीरोइन होने के लिए जरूरी ग्लैमर और ‘दीवा’ लुक नहीं रखतीं, लेकिन उनमें यह आत्मविश्वास है कि उन्हें अगर रोजमर्रा जिंदगी के परिचित किरदारों में चुना जाए तो वहआसान तरीके से प्रभावशाली लग सकती हैं। और उन्होंने यही किया।

उन्होंने बंधी- बंधाई लकीर से बाहर की फिल्मों के लिए हां कहना शुरू किया। उन्होंने भूमिका की लंबाई पर नहीं, गहराई पर ध्यान दिया। उन्होंने परवाह नहीं की कि वह अकेली महत्वपूर्ण किरदार नहीं हैं। ‘बेबी’ और ‘पिंक’ योग्य उदाहरण हैं। ‘बेबी’ में उनकी मौजूदगी इतनी जबरदस्त थी कि निर्देशक नीरज पांडेय ने ‘नाम शबाना’ नाम की पूर्वकथा लिखी और शिवम नायर को निर्देशन की जिम्मेदारी दी। तापसी पन्नू ने उसे अपनी अदा से महत्वपूर्ण बना दिया।

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ‘आउटसाइडर’ होने की अलग तकलीफें हैं। अगर आप अभिनेत्री हैं, तो तकलीफों के आयाम बढ़ जाते हैं। तापसी पन्नू को अपने नौ सालों के करियर में अनेक बार तिरस्कार और अपमान झेलने पड़े हैं। छोटी सी बात पर बड़ी फिल्मों से बाहर निकलना पड़ा है। इन तिरस्कारों पर बिसूरने के बजाय तापसी ने अपने काम काअलग सुर साधा। वह नए प्रकार की फिल्मों के साथ चलीं। उन्होंने खास पहचान कायम की।


याद करें तो ‘मनमर्जियां’ की रूमी हिंदी फिल्मों का रूटीन किरदार नहीं थी। अनुराग कश्यप ने उसे अलहदा रंग और ढंग दिया था। मजेदार तथ्य यह है कि इस भूमिका में वह दर्शकों को पसंद आईं। तापसी पन्नू और अनुराग कश्यप की जोड़ी कुछ नया कर रही है। ‘मनमर्जियां’, ‘गेमओवर’, ‘सांड की आंख’ और आगामी सुपर नेचुरल फिल्म गवाह हैं। अनुराग कश्यप वास्तव में तापसी पन्नू की अदाकारी को विस्तार दे रहे हैं। इन प्रयोगों से तापसी पन्नू के व्यक्तित्व और अभिनय में चमकदार निखार आया है।

आज तापसी पन्नू अलग किस्म से कामयाब हैं। वह स्वतंत्र, साहसी और अपारंपरिक अभिनेत्री के तौर पर उभर रही हैं। जल्दी ही उनकी ‘सांड की आंख’, ‘तड़का’ और ‘मिशन मंगल’ जैसी फिल्में आएंगी। अच्छी बात है कि हिंदी फिल्मों में आगे बढ़ने के बावजूद उन्होंने दक्षिण भारतीय फिल्मों को पीछे नहीं छोड़ा है। हां, हिंदी फिल्मों में सक्रियता और सफलता उन्हें नई ऊंचाइयों पर ले जा रही है। वह ‘इनसाइडर’ अभिनेत्रियों के समकक्ष जगह बना रही हैं।

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