कोरोना के खौफ से फिल्म की रंगीन दुनिया भी हुई बेरंग, बड़े नाम वाले तो मस्त हैं, लेकिन कई कामगार बुरे हाल में
निर्माता-निर्देशक, डिस्ट्रीब्यूटर, कलाकार, हॉल मालिकों को तो नुकसान हो ही रहा है, मगर बॉलीवुड के जो गैर साधन संपन्न लोग हैं, उनकी हालत अधिक खराब है। इनमें सिर्फ कामगार ही नहीं, बल्कि क्रिएटिव साइड से जुड़े लोग भी हैं, जिनकी आर्थिक हालत बहुत ठीक नहीं होती।
कोरोना वायरस के आतंक और लॉकडाउन के कारण फिल्म इंडस्ट्री भी पूरी तरह से ठप है। सिनेमा हॉल बंद हैं। जो फिल्में प्रदर्शन के लिए तैयार थीं, वो अटक गई हैं। सभी लोग अपने घरों में बंद हैं। फिल्मों के अलावा कुछ बड़े वेब सीरीज की शूटिंग भी रुक गई है। सारे बड़े-छोटे फिल्म स्टार बिना किसी काम के अपने-अपने घरों में दुबके हुए हैं।
हालात कब सामान्य होंगे, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। निर्माता-निर्देशकों, डिस्ट्रीब्यूटरों, कलाकारों, सिनेमा हॉल के मालिकों को तो नुकसान हो ही रहा है, लेकिन बॉलीवुड के जो गैर साधन संपन्न लोग हैं, उनकी हालत ज्यादा खराब है। गैर साधन संपन्न लोगों में सिर्फ कामगार ही नहीं हैं, बल्कि सिनेमा की क्रिएटिव साइड से जुड़े कई ऐसे लोग भी हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति वैसे ही बहुत अच्छी नहीं होती।
इनमें केवल असिस्टेंट डायरेक्टर, राइटर जैसे लोग ही नहीं हैं बल्कि ऐसे हजारों लोग भी हैं जो मुंबई में किसी-न-किसी फील्ड में संघर्ष कर रहे हैं। इनकी हालत दिहाड़ी मजदूर- जैसी होती है। बल्कि इनमें से ज्यादातर की हालत उनसे भी ज्यादा खराब होती है। बिना काम के या बिना पैसे के ये लोग ज्यादा से ज्यादा महीना भर खींच सकते हैं, उससे आगे नहीं।
हमारे एक जानने वाले हैं। उत्तर प्रदेश के बलिया साइड के हैं। मुंबई में सेट डिजाइनर हैं। अच्छा खासा नाम है। ढेर सारी बड़ी फिल्मों के लिए सेट डिजाइन का काम कर चुके हैं। तो, उनके साथ बहुत सारे बढ़ई, पेंटर और लेबर काम करते हैं। जहां किसी भी फिल्म की शूटिंग होती है, वहां उनके साथ उनका यह कुनबा भी ट्रक भर सामान के साथ चलता है।
उनसे बात हो रही थी। पूछने पर बताया कि उनके साथ काम करने वाले ज्यादातर कारीगर और श्रमिक बिहार और उत्तर प्रदेश के हैं। जब तक काम होता है, उन्हें पैसे मिलते हैं। जब काम नहीं होता, उन्हें पैसे नहीं मिलते। चूंकि इन सेट डिजाइनर के पास काम की कमी नहीं है इसलिए उनके साथ काम कर रहे लोगों के लिए भी काम की कमी नहीं होती। कोरोना वायरस ने अभी तक के चले आ रहे सिस्टम को तोड़ डाला है। डिजाइनर महोदय खुद घर बैठे हैं। उनके साथ काम कर रहे कारीगर और श्रमिक बेरोजगार हैं। डिजाइनर महोदय ने इन्हें महीने भर का खर्चा तो अपनी जेब से देने का वादा किया है लेकिन उसके बाद क्या होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं।
बाकी दुनिया की तरह, कोरोना ने फिल्म इंडस्ट्री को भी पूरी तरह से हिला दिया है। कटरीना कैफ खुद खाना बना रही हैं, यह तो सबको टीवी पर दिख रहा है लेकिन बॉलीवुड में कारपेंटरी का काम कर रहे उस्मान भाई के यहां चूल्हा जल रहा है या नहीं, यह जानने की फुर्सत किसी को नहीं है। खैर, यह तो दुनिया का दस्तूर है। हम सब जानते हैं, बाकी समाज की तरह बॉलीवुड में भी दो समाज हैं। साधन संपन्न और गैर साधन संपन्न!
पहले साधन संपन्न की बात करें। इसमें बड़े-छोटे अभिनेता, बड़े-छोटे डायरेक्टर-प्रोड्यूसर और तकनीशियन आते हैं। इन्हें जो नुकसान हुआ है, वह दो-तीन तरह से हुआ है। जैसे, कुछ बड़ी फिल्में जो रिलीज होने को तैयार थीं, वो अटक गई हैं। अक्षय कुमार, अजय देवगन और रणबीर कपूर की फिल्म ‘सूर्यवंशी’ जो रिलीज होने वाली थी और जिसके प्रमोशन का काम भी शुरू हो गया था, रुक गई है।
आमतौर पर आजकल ऐसी बड़ी फिल्मों के प्रमोशन पर बीस करोड़ रुपये तक का खर्च होता है। बाजार से पैसे उठाए गए होते हैं। डिस्ट्रिब्यूटर एडवांस पैसे दे चुके होते हैं। इन सब का सूद जोड़ने लगें तो घाटा बड़ा दिखेगा। किसी भी फिल्म के अटकने से सबसे बड़ा नुकसान इन फिल्मों के प्रोड्यूसरों और डिस्ट्रिब्यूटरों को होता है। सिनेमा हॉल बंद हैं। उनके बंद होने से सिनेमा हॉल मालिकों को दो लाख से दस लाख रुपये प्रति दिन का नुकसान तय है। कोरोना के कारण बंद होने के ठीक पहले ‘बागी-3’ या ‘अंग्रेजी मीडियम’ जैसी फिल्में जो सिनेमा हॉल में लगी हुई थीं, उन्हें भारी नुकसान हुआ है।
कुछ बड़ी वेब सीरीज जिनकी शूटिंग शुरू होनी थी, उनकी शूटिंग रुक गई है। पहली बार, सारे बड़े-छोटे फिल्म स्टार बिना किसी काम के अपने-अपने घरों में दुबके हुए हैं। जो बंगले में रहते हैं, वे तो सेवकों से सेवाएं ले पा रहे हैं. लेकिन जो फ्लैट में सीमित जगह में रहते हैं, उन्होंने अपनी कामवालियों, ड्राइवर और अन्य सेवकों को छुट्टी दे दी है। सलमान पेन्टिंग कर रहे हैं। कटरीना खाना बना रही हैं। शाहरुख खान गिटार बजा रहे हैं। और करें भी तो क्या?
यह तो हुई साधन संपन्नों की बात। अब जो गैर साधन संपन्न हैं, उनकी हालत खराब हो गई है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, गैर साधन संपन्न लोगों में सिर्फ कामगार ही नहीं हैं बल्कि सिनेमा की क्रिएटिव साइड से जुड़े कई ऐसे लोग हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति वैसे ही बहुत अच्छी नहीं होती। इस लॉकडाउन की वजह से उनकी हालत जल्दी ही खराब हो जाएगी। इनमें केवल असिस्टेंट डायरेक्टर, राइटर जैसे लोग ही नहीं हैं बल्कि ऐसे हजारों लोग भी हैं जो मुंबई में किसी-न-किसी फील्ड में संघर्ष कर रहे हैं।
इनकी हालत दिहाड़ी मजदूरों जैसी होती है। बल्कि इनमें से ज्यादातर की हालत उनसे भी खराब होती है। बिना काम के या बिना पैसे के ये लोग ज्यादा से ज्यादा महीना भर खींच सकते हैं। उससे आगे नहीं। असल में, दूसरे संपन्न देशों के विपरीत, हमारे यहां ऐसे लोगों की आर्थिक मदद के लिए कोई ढंग की व्यवस्था नहीं है। कहने के लिए तो फिल्म और टीवी कामगारों की मदद के लिए कई संस्थाएं हैं, लेकिन उनकी मदद आमतौर पर कागजी होती है।
पिछले हफ्ते, हमारी जानने वाली एक महिला पत्रकार का फोन मुंबई से आया। वह एक वृद्ध हो चुके पुराने फिल्म पत्रकार की आर्थिक दशा के बारे में बता रही थीं कि उनके पास दवा खरीदने तक के पैसे नहीं हैं। कुछ समय पहले, एक पुराने अभिनेता सड़क पर गिरे पड़े पाए गए, जिनके इलाज का खर्च शाहरुख खान ने उठाया। अगर कोई ऐसी प्रभावी संस्था होती तो इस तरह के लोगों की थोड़ी बहुत मदद तो करती।
लेकिन नहीं, ज्यादातर संस्थाएं नेतागिरी और खुद के फायदे के लिए चंद चालू किस्म के लोगों द्वारा बनाए और उन पर जबरन सालों से काबिज लोगों के कब्जे में हैं। यह स्थिति कब सुधरेगी, अभी तो किसी को नहीं पता। इसलिए उम्मीद की कोई किरण फिलहाल नहीं दिख रही।
मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में गैर साधन संपन्न लोग निराश हैं। लेकिन इनमें भी कुछ अलग किस्म के लोग होते हैं...उनमें से कुछ से बात हुई। वे अब भी योजनाएं बना रहे हैं। कल्पनाएं कर रहे हैं और खुश हैं। एक किसी बड़े विचारक ने कहा है, जो खुश हैं, उन्हें अभी तक बुरी खबर नहीं सुनाई गई है। वह, ऐसे ही कुछ लोगों पर सटीक बैठती है।
वैसे, हर बुरी खबर का एक अच्छा पक्ष होता है। फिल्मों के नुकसान का फायदा वेब सीरीज और टीवी इंडस्ट्री को मिल गया है। लोग खूब वेब सीरीज देख रहे हैं। टीवी पर खूब फिल्में देख रहे हैं। यूट्यूब की व्यूअरशिप बढ़ गई है। लोगबाग तो यह भी कहने वाले हैं कि अगर बुरे दिन लंबे खींच गए तो वेब सीरिज और टीवी, नेटफ्लिक्स, अमेजॉन, यूट्यूब वगैरह के और अच्छे दिन आ जाएंगे।
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