बॉलीवुड में कास्टिंग डायरेक्टर का जलवा, खोज-परख कर फिल्मी दुनिया को देते हैं स्टार
हॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर स्टीवन स्पील्बर्ग ने सालों पहले कास्टिंग डायरेक्टर के बारे में कहा था, “वे ऐसे सपने बुनते हैं जिनके बारे में हम सपने में भी नहीं सोच सकते!” कुछ साल पहले तक इनके बारे में बहुत कम लोग जानते थे। लेकिन अब कई लोग इन्हें जानने लगे हैं।
ऐसा क्यों होता है कि किसी-किसी फिल्म में कोई खास किरदार अपनी छोटी सी भूमिका में ही असर छोड़ जाता है? इसका सीधा जवाब यह हो सकता है कि भई, अभिनेता दमदार था। लेकिन क्या यह सिर्फ उस अभिनेता या अभिनेत्री की अभिनय क्षमता का कमाल है? शायद नहीं। अगर यही सच होता, तो फिर वही अभिनेता दूसरी फिल्मों की दूसरी भूमिकाओं में अपना लोहा क्यों नहीं मनवा पाता!
सच यह है कि रोल चाहे छोटा हो या बड़ा, महत्वपूर्ण बात यह होती है कि उस रोल के लिए किसका चुनाव किया गया है। इसे इस तरह समझें। कुछ समय पहले बॉक्स ऑफिस पर सफल और आलोचकों से प्रशंसा बटोर चुकी फिल्म ‘बधाई हो’ में आयुष्मान खुराना के पिता की भूमिका जिस गजराज राव ने की, वह सालों से मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष कर रहे हैं। दर्जनों फिल्मों, सीरियलों में छोटे-छोटे रोल में दिख चुके हैं। विज्ञापन फिल्मों में भी दिख चुके हैं, लेकिन इस फिल्म से पहले किसी ने उन्हें नोटिस नहीं किया। इस फिल्म के बाद आलम यह है कि उनके पास फिल्मों की लाइन लग गई है।
तो ऐसा इसलिए संभव हो पाया कि अधेड़ उम्र में बाप बनने की जो दुविधा, संकोच और जिम्मेदारी गजराज राव ने पर्दे पर पूरी शिद्दत से निभाई है, वह सभी को पसंद आई। अभिनय की तारीफ हुई। कई लोगों को लगा जैसे अगर यह भूमिका, इस आदमी ने न की होती तो शायद मजा नहीं आता। ऐसे अनगिनत उदाहरण मिलेंगे जहां एक भूमिका से किसी अभिनेता की किस्मत बन गई, लेकिन उस भूमिका के लिए किसे चुना जाए और जिसे चुना जाए वह बिलकुल उपयुक्त हो, उसी रोल के लिए बना हो, यह कौन तय करेगा।
यहां दो लोगों की सबसे बड़ी भूमिका होती है। सबसे पहले उस लेखक की जिसने उस किरदार की कल्पना की, उसे लिखा, कागज पर गढ़ा। दूसरी भूमिका होती है, उस आदमी की जिसने उक्त किरदार के लिए अभिनेता या अभिनेत्री का चुनाव किया। यानी कास्टिंग डायरेक्टर की। आज के फिल्मी परिदृश्य में कास्टिंग डायरेक्टर बड़ा ही महत्वपूर्ण आदमी है। उसके बिना किसी का काम नहीं चलता। चाहे वो आमिर खान हों या शाहरुख खान। लेकिन फिल्में देखने वालों के लिए वह एक अनजान सा, पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाला व्यक्ति है। उसे कम लोग जानते हैं। वैसे अब तस्वीर बदल रही है। हॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर स्टीवन स्पील्बर्ग ने सालों पहले कास्टिंग डायरेक्टर के बारे में कहा था कि “वे ऐसे सपने बुनते हैं जिनके बारे में हम सपने में भी नहीं सोच सकते!”
कुछ साल पहले इन कास्टिंग डायरेक्टर के बारे में बहुत कम लोग जानते थे। लेकिन अब कई लोग इन्हें जानने लगे हैं। खासकर तब से जब इन लोगों ने आज के कई लोकप्रिय बड़े स्टार को खोज कर उन्हें पहला मौका दिलवाया। सीधे कहें तो इनकी वजह से ही ऐसे लोग स्टार बन पाए। शानू शर्मा नाम की कास्टिंग डायरेक्टर रणवीर सिंह, परिणति चोपड़ा, अर्जुन कपूर, स्वरा भास्कर, भूमि पेडणेकर जैसों को लेकर आईं, तो मुकेश छाबड़ा ने राजकुमार राव, सुशांत सिंह राजपूत, अमित साध जैसों को पहली फिल्म दिलवाई। अब तो मुकेश छाबड़ा खुद अपनी फिल्म से फिल्म निर्देशन में कदम रख रहे हैं। इसमें लीड रोल सुशांत सिंह राजपूत कर रहे हैं।
इनके अलावा, आज बॉलीवुड में श्रुति महाजन, अतुल मोंगिया, नंदिनी, जोगी मलंग, हनी त्रेहन, परिणति जैसे कई कास्टिंग डायरेक्टर सक्रिय हैं। जब से बॉलीवुड में कास्टिंग काउच, मी टू जैसे शोर ने जोड़ पकड़ा, तब से इन कास्टिंग डायरेक्टर का काम और बढ़ा है। कोई भी बड़ा प्रोड्यूसर-डायरेक्टर किसी भी नए, स्ट्रगलर एक्टर से सीधे नहीं मिलना चाहता। वह चाहता है कि उसका पसंदीदा कास्टिंग डायरेक्टर अगर किसी की सिफारिश कर रहा है तभी उससे मिलना चाहिए। वजह मोटे तौर पर यह होती है कि इस तरह से वह किसी ऐसे-वैसे आरोपों से खुद को बचा के चलना चाहता है। बहरहाल, कास्टिंग डायरेक्टर का काम-धंधा कैसे चलता है, अब इसे थोड़ा समझ लें।
एक बड़ी फिल्म ‘दंगल’ का उदाहरण लेते हैं। आमिर खान की इस फिल्म में खुद आमिर खान एक प्रोड्यूसर भी थे। उन्होंने मुकेश छाबड़ा को कास्टिंग डायरेक्टर के तौर पर चुना। अब मुकेश की जिम्मेदारी थी कि वह फिल्म की स्क्रिप्ट को पढ़कर और समझकर उन अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों का चुनाव करें जिनकी फिल्म में छोटी, बड़ी, महत्वपूर्ण, गैर महत्वपूर्ण भूमिकाएं होनी हैं। इस कोशिश में, छाबड़ा और उनकी टीम शहर-शहर भटकी, दर्जनों ऑडिशन लिए, कई लोगों को चुना, फिर उनमें से कुछ चुने और उन कुछ को आमिर खान और फिल्म के डायरेक्टर नितेश तिवारी के सामने पेश किया।
अब कई बार ऐसा भी हुआ कि इतनी मेहनत, मशक्कत के बाद जिन्हें चुना गया, वे प्रोड्यूसर, डायरेक्टर को पसंद ही ना आएं। खैर, लंबे खोज अभियान के बाद जायरा वसीम, फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा का चुनाव हुआ। ऐसे ही दर्जनों अन्य कलाकार चुने गए। ‘दंगल’ और आमिर खान प्रोडक्शन से मुकेश छाबड़ा के क्या आर्थिक अनुबंध थे, कहा नहीं जा सकता। लेकिन आमतौर पर कस्टिंग डायरेक्टर, बड़ी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी से अपनी सेवा के बदले पैसे नहीं मांगा करते। या कहें, उन्हें पैसे मिला भी नहीं करते, जरूरी खर्चों की बात अलग है। तो फिर ऐसा क्यों है, जबकि उन्होंने प्रोडक्शन के लिए कई नए कलाकारों का चुनाव किया होता है।
फिल्म इंडस्ट्री में चल रहे रिवाज के मुताबिक, कास्टिंग डायरेक्टर की कमाई उन अभिनेता या अभिनेत्रियों से होती है, जिन्हें उनके कहने पर फिल्म में काम मिल रहा होता है। न केवल, कास्टिंग डायरेक्टर, इन नए अभिनेताओं को मिल रही कीमत में एक तय प्रतिशत का हकदार होता है बल्कि उक्त फिल्म के बाद की कुछ फिल्मों से भी मिलने वाले पैसे में कास्टिंग डायरेक्टर का एक कमीशन होता है।
अपने एक जानने वाले कई फिल्मों के एडिटर रह चुके हैं। अब वह अपनी एक फिल्म से बतौर डायरेक्टर आ रहे हैं। उन्होंने एक बड़े कास्टिंग डायरेक्टर से बात की जो उनके लिए फिल्म की कास्टिंग करने के लिए तैयार हो गए। पूछने पर बताते हैं कि पहले यह होता था कि आमतौर पर आप लीड एक्टर तयकर लेते थे और फिर दूसरे रोल के लिए कास्टिंग डायरेक्टर के पास जाते थे। अब तो ये कास्टिंग डायरेक्टर आप को लीड एक्टर तक तय करने में भी मदद करते हैं। और अगर कास्टिंग डायरेक्टर में समझ है तो वह आपको आपकी स्क्रिप्ट और आपकी जरूरत के हिसाब से बिलकुल सटीक लोग लाकर आपके सामने खड़े कर देगा। तभी तो, कई कास्टिंग डायरेक्टर अब डायरेक्शन की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। यह देखना मनोरंजक होगा कि वे उधर भी अपना झंडा गाड़ पाते हैं या नहीं!
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