राष्ट्रवाद के 'चिराग' से फिर निकला 'हिंदुत्व' का 'जिन'! पहली तस्वीर में हो हल्ला, दूसरी पर सन्नाटा क्यों?
आमिर खान इस समय हिंदुत्ववादी संगठनों और हिंदुत्व की विचारधारा के ध्वजवाहकों के निशाने पर हैं। जो लोग आमिर की आलोचना कर रहे हैं, शायद उन्हें वह तस्वीर याद करने की जरूरत है जब नरेंद्र मोदी तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन से पूरी गर्मजोशी के साथ हाथ मिला रहे थे और उस दौरान उनकी मुस्कराहट देखने लायक थी।
बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता आमिर खान को अपनी तुर्की यात्रा और वहां की फर्स्ट लेडी (प्रथम महिला) एमीन एर्दोगन से मुलाकात के बाद से ही आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन की पत्नी के साथ उनकी यह भेंट भारत के स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त के दिन हुई थी। आमिर खान अपनी निर्माणाधीन फिल्म‘लाल सिंह चड्ढा’ की शूटिंग के मद्देजनर अलग-अलग लोकेशन को अंतिम रूप देने के लिए तुर्की गए थे। आमिर की यह फिल्म टॉम हैंक्स की क्लासिक फिल्म‘फॉरेस्टगम्प’ पर आधारित है। इस फिल्म की 40 फीसदी शूटिंग पंजाब में पूरी हो चुकी है। पूरे देश में जिस तरह से कोरोना महामारी लगातार बढ़ रही है और पंजाब भी इससे अछूता नहीं है तो ऐसे में फिल्म के क्रू ने फैसला किया कि फिल्म के बाकी हिस्से की शूटिंग तुर्की में की जाए।
भारत के तुर्की के साथ संबंध बहुत सहज नहीं हैं। फर्स्ट लेडी एमीन एर्दोगन के हाल के ट्वीट ने संबंधों की असहजता को बढ़ाया है। उन्होंने ट्वीट के जरिये कश्मीर को लेकर भारत सरकार की नीतियों पर टिप्पणी की थी। आमिर की तुर्की की यात्रा के दो दिन बाद उग्र हिंदू संगठन विश्व हिंदू परिषद ने आमिर की तुर्की डिप्लोमेसी की आलोचना करते हुए कहा, “कुछ ताकतों जिनमें कलाकार भी शामिल हैं, का भारत-विरोधी तत्वों के प्रतिप्रेम बढ़ रहा है।” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदी में निकलने वाले मुखपत्र‘पांचजन्य’ ने आमिर के खिलाफ एक सख्त लेख लिखा और उनकी खुलेआम भर्त्सना की। इस लेख में उन्हें एक दुश्मन देश की कठपुतली तक कहा गया और साथ ही यह भी सवाल किया गया कि वह तुर्की में शूटिंग क्यों कर रहे हैं जबकि इस्तांबुल जम्मू-कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान का समर्थन करता है।
भारतीय सिनेमा के सबसे बेहतरीन और पारंगत कलाकारों में से एक आमिर पर कुछ वर्ष पहले भी कथित राष्ट्रवाद विरोध के नाम पर तीखे हमले हुए थे। उत्कृष्ट अभिनेता आमिर खान को 1988 में प्रेम कहानी पर आधारित फिल्म‘कयामत से कयामत तक’ से प्रसिद्धि मिली थी। ‘सरफरोश’, ‘जो जीता वही सिकंदर’, ‘रंगीला’, ‘अकेले हम अकेले तुम’, ‘राजा हिंदुस्तानी’, ‘लगान’, ‘दिल चाहता है’, ‘अर्थ’ और ‘दंगल’ जैसी फिल्मों में उनके बेहतरीन अभिनय को बहुत सराहा गया है। आमिर भारत के उन कलाकारों में हैं जिन्हें लोग बहुत पसंद करते हैं। इससे पहले भी, नवंबर, 2015 में उन्हें राष्ट्रविरोधी होने के आरोपों से दो-चार होना पड़ा था। उस समय उन्होंने एक साक्षात्कर में स्वीकार किया था कि उनकी पत्नी किरण राव अपने बेटे की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं क्योंकि देश में असहिष्णुता का माहौल लगातार बढ़ रहा है। अब उनकी तुर्की की यात्रा को लेकर कट्टरपंथी तत्व एक बार फिर से उनकी निष्ठाओं पर सवाल उठा रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी की सरकार की नीतियों का खुलेआम समर्थन करने वाले फिल्म निर्माता-निर्देशक विवेक अग्निहोत्री कहते हैं कि आमिर को अपनी कल्चरल डिप्लोमेसी के लिए माफी मांगनी चाहिए। उनका कहना है, “राष्ट्रपति एर्दोगन ने भिन्न मत रखने वाले हजारों लोगों की गिरफ्तारी और उन पर मुकदमा चलाने के आदेश दिए हैं... तुर्की में 40 फीसदी गैर मुस्लिम हर रोज इस्लामोफोबिक हमलों का सामना कर रहे हैं... यही तुर्की का सच है और आमिर इसी राष्ट्रपति एर्दोगन की पत्नी के साथ चाय पीने गए! तुर्की भारत में इस्लामिक आतंकवाद को प्रायोजित करता है। तुर्की भारत के लिए शत्रुदेश है। एक आम आदमी भी इस बात को जानता है। आखिर आमिर खान जैसा एक प्रबुद्ध कलाकार जो कि बहुत सारे सामाजिक-राजनीतिक मुद्दोंपर बोलता है, वह इस बात से कैसे अनजान रह सकता है?” विवेक अग्निहोत्री आगे कहते हैं, “तुर्की दुनिया में सबसे ज्यादा असहिष्णु देश है। असहिष्णुता के खिलाफ दृढ़ता से बोलने वाले आमिर खान आखिर इस असहिष्णु राष्ट्र के राष्ट्रपति के घर कैसे जा सकते हैं और कैसे उनकी पत्नी के साथ चाय पी सकते हैं? भारत की नाराजगी का यही कारण है।” लेकिन कलाकार-राजनीतिक शत्रुघ्न सिन्हा विवेक अग्निहोत्री की बातों से इत्तफाक नहीं रखते हैं।
आमिर खान की बहुत ज्यादा प्रशंसा करते हुए वह कहते हैं, “आमिर भारत के बुद्धिमान कलाकारों में से एक हैं। देश के एक प्रमुख सांस्कृतिक राजदूत के नाते अपनी छवि को खराब करने का उन्होंने कोई काम नहीं किया। तुर्की की फर्स्ट लेडी के साथ कॉफी पीने में आखिर गलत क्या है? आमिर तुर्की में एक अराजनीतिक प्रतिनिधि के बतौर गए थे। वह फिल्म की शूट के सिलसिले में वहां थे। उस देश के राष्ट्रपति की पत्नी से शिष्टाचार मुलाकात करने में आखिर गलत क्या है?” भारत- पाकिस्तान की दुश्मनी के चरम समय में भी पाकिस्तान के साथ निजी और सांस्कृतिक रिश्तों को बनाए रखने वाले शत्रुघ्न सिन्हा मानते हैं कि निजी और राजनीति- दोनों मसलों को हमेशा ही अलग रखा जाना चाहिए। वह कहते हैं, “राजनीति को सिनेमा में मत लाओ। अगर आमिर ने एक निजी सामाजिक यात्रा की तो उसे राजनीतिक मुद्दा मत बनाओ। हां, जब बीते वर्षों में दो देशों (भारत-पाक) के बीच रिश्ते इतनी शत्रुता से भरे हुए नहीं थे तो मैं पाकिस्तान की यात्रा करने से नहीं कतराता था।
पूर्व राष्ट्रपति जिया-उल-हक की बेटी मेरी मुंह बोली बहन है। दोनों देशों के बीच संबंध खराब होने के कारण मैं कुछ वर्षों से उससे नहीं मिल पा रहा हूं।” गायक, कलाकार और राजनीतिक बाबुल सुप्रियो जो केंद्र की भाजपा सरकार में मंत्री हैं, कहते हैं कि भारत सरकार ने आमिर की तुर्की यात्रा पर कोई टिप्पणी नहीं की है। वह कहते हैं, “मैं इसके सही या गलत पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं। लेकिन मैं महसूस करता हूं कि आमिर खान ने, भारत के छद्म-बुद्धिजीवी अपने निहित स्वार्थों के साथ जो दर्शाने का प्रयास करते हैं, उसके विपरीत कम-से- कम एक चीज तो साबित की है कि भारत एक असहिष्णु राष्ट्र नहीं है। यह कहने के बाद मैं भारतीय सेलेब्रिटियों को एहतियात जरूर बताना चाहूंगा। सोशल मीडिया की आज की दुनिया में किसी भी क्षेत्र की कोई भी हस्ती जो कुछ करती है, वह बहुत ज्यादा तहकीकात (स्क्रूटनी) के दायरे में आ जाता है। किसी को भी अपने सार्वजनिक व्यवहार में बहुत ही सतर्क रहने की जरूरत है।”
फिल्म निर्माता-निर्देशक अनंत महादेवन मानते हैं कि यह ऐसा समय है जब सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों के इरादों को पढ़ना बहुत ही मुश्किल है। वह कहते हैं, “सच कहूं तो भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की चाल-ढाल इतनी संदेहास्पद और कमजोर है कि एक निष्पक्ष विश्लेषण निरर्थक लगता है। बिना आग के धुआं नहीं निकलता है।” महादेवन मानते हैं कि शक्तिशाली स्थानों पर बैठे व्यक्तियों को अपने सार्वजनिक आचरण में अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।जाने-माने फिल्म समीक्षक राजा सेन और करण अंशुमन मानते हैं कि तुर्की यात्रा को लेकर जो हो-हल्ला मचा है, वह आमिर खान की प्रतिष्ठा और लोकप्रियता को प्रभावित नहीं करेगा। सेन कहते हैं, “यह आमिर के करियर को प्रभावित नहीं करेगा।
यह उसी तरह है जैसे भाई-भतीजावाद का विवाद सलमान खान के करियर को प्रभावित नहीं करेगा। हमारे दर्शक समय-समय पर अनेक कारणों को महत्व अवश्य देते हैं लेकिन अपने पसंदीदा सितारों के साथ उनका जुड़ाव हमेशा बना रहता है।” अंशुमन कहते हैं, “मैंने तो अंतिम बार यही सुना था कि भारत अभी भी एक स्वतंत्र देश है, तथा लोगों को अपनी राजनीति और आस्था को दूसरों के अंदर नहीं ठूंसना चाहिए। आमिर खान जो चाहे वह कर सकते हैं, बशर्ते वह लोगों के बीच जाते समय मास्क पहने हुए हों।
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