बजट 2018: चाहे भी तो पूरी नहीं कर सकती मोदी सरकार आपकी उम्मीदें...
बजट से आपने बहुत सारी उम्मीदें लगा रखी होंगी। लेकिन ,आपकी उम्मीदें सरकार के लिए बड़ी चुनौती हैं और अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत में उन्हें पूरा करने की क्षमता उसके पास नहीं है।
मोदी सरकार के पास यह आखिरी मौका है कि वह युवाओं, किसानों, उद्योगों और आम लोगों को राहत दे सके। इस साल चूंकि 8 राज्यों में चुनाव होने हैं, और अगले साल लोकसभा चुनाव, ऐसे में जितनी उम्मीदें आपको इस बजट से हैं, उससे ज्यादा चिंताएं मोदी सरकार को हैं। दरअसल आपकी उम्मीदें मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती हैं और अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत में इन उम्मीदों को पूरी करने की क्षमता सरकार में नजर नहीं आती है।
सबसे पहले बात करते हैं किसानों की। इस वक्त कृषि क्षेत्र बहुत की खराब दौर से दोचार है और किसानों की हालत खस्ता है। किसानों को न तो उनकी फसलों की सही कीमत मिल पा रही है और न ही उनके लिए ऐसे साधन सरकार मुहैया करा रही है कि उनकी जिंदगी बेहतर हो सके। इन तकलीफों के चलते किसानों की आत्महत्या की घटनाएं लगातार सामने आती रहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी माना है कि किसानों की स्थिति खराब है। पीएम के इस बयान के बाद किसानों को उम्मीद है कि इस बार के बजट में सरकार किसानों को राहत देने के लिए किसी बड़े कदम का ऐलान कर सकती है। यह कदम खेती की लागत को कम करने या किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए किसी बड़ी योजना के रूप में सामने आ सकता है।
लेकिन क्या सरकार ऐसा कुछ करेगी? इस साल का बजट चुनावी बजट है, इसलिए सरकार हो सकता है कि कुछ लोकप्रिय और लोकलुभावन योजनाएं लाए। मोटे तौर पर सरकार के सामने दो विकल्प हैं। या तो सरकार किसानों को सीधे पैसा दे या फिर कर्ज माफी की ऐलान करे। इन दोनों ही कदमों से सरकार पर ‘पापुलिज्म’ का आरोप लगेगा। हालांकि किसानों को खाद पर पहले ही सब्सिडी मिलती रही है, लेकिन उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की जा सकती है। इसके अलावा कृषि उत्पादन मंडी समितियों को आधुनिकीकृत कर बिचौलियों से किसानों को मुक्ति दिलाने के लिए कुछ करना होगा। लेकिन यह वह कदम हैं, जो कम समय में नहीं हो सकते, इसके लिए लंबा समय चाहिए, जो सरकार के पास नहीं है।
अब बात करते हैं युवाओं की। 2014 में जब मोदी ने सत्ता संभाली थी तो उनकी कामयाबी के पीछे देश के युवाओं समर्थन था और उन्हें अच्छे दिनों की उम्मीद थी। सरकार के चार साल के बाद भी युवाओं को आज भी अच्छे दिनों का इंतजार है। अच्छे दिन तो दूर, उनके लिए तो बुरे दिन शुरु हो गए।
इस समय देश की 65 फीसदी आबादी की उम्र 35 साल से कम है। विशेषज्ञ मानते हैं कि युवाओं को उनकी योग्यता के हिसाब से नौकरियां नहीं मिल रहीं हैं। इसके अलावा अगर कोई अपना कारोबार शुरू करना चाहता है तो उसे बैंकों से आसानी से कर्ज भी नहीं मिल पाता है। इस सबके चलते युवाओं में मोदी सरकार और उसकी नीतियों को लेकर नाराजगी लगातार बढ़ रही है, जो धीरे-धीरे गुस्से में बदल रही है।
श्रम ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में 60 फीसदी तक नई नौकरियां कम हुईं हैं। वह बात अलग है कि सरकार खुद ही इन आंकड़ों पर सवाल उठा चुकी है। लेकिन यह बात तो तय है कि मौजूदा सरकार देश के युवाओं को उतनी नौकरियां दे पा रहा है, जितनी नौकरियों की जरूरत है।
तो क्या इस बजट में मोदी सरकार कुछ ऐसा बड़ा ऐलान कर सकती है, जिससे ज्यादा से ज्यादा युवाओं को नौकरियां मिलें? या फिर उनके लिए अपना कारोबार शुरू करने के लिए आसानी से कर्ज देने वाली कोई योजना सामने आएगी?
अगर सरकार को युवाओं के लिए नौकरियां पैदा करनी हैं और उनके लिए रोजगार के मौके पैदा करने हैं तो उसे आधारभूत ढांचे यानी इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाना होगा। इसके अलावा ऐस कदम उठाने होंगे जिससे निर्माण क्षेत्र में तेजी आए, सड़कें और हाईवे बनें। इससे लोगों को नौकरियां मिलेंगी। लेकिन बैंकों को पुनर्पूंजीकरण और जीएसटी और नोटबंदी से पैदा धीमी रफ्तार के कारण सरकार राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से बाहर निकल चुकी है, ऐसे में उसके पास नए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट लाने के लिए पूंजी का संकट होगा। अगर कर्ज लेकर सरकार ऐसे प्रोजेक्ट शुरु करती है, तो बैलेंसशीट गड़बड़ाएगी। यूं भी कंपनियों को टैक्स में छूट देने से तो नौकरियां पैदा होती नहीं हैं। सरकार के पास मौजूदा समय में इतने संसाधन भी नहीं है कि वह नौकरियां पैदा करने के लिए कंपनियों को टैक्स छूट दे।
अब बात करते हैं उन करदाताओं की जो ईमानदारी से अपना आयकर जमा करते हैं। स्थिति यह है कि देश की सवा सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी में से महज 5 या सवा पांच करोड़ लोग ही आयकर रिटर्न भरते हैं। इनमें भी आयकर देने वाले लोगों की संख्या इससे भी कम है। ईमानदारी से टैक्स देने वाले 5 से 10 लाख रुपए तक की सालाना इनकम वाले लोगों को उम्मीद है कि सरकार उनको टैक्स के मोर्चे पर थोड़ी राहत देगी।
तो क्या मोदी सरकार टैक्स से छूट की मौजूदा सीमा को सालाना 2.5 लाख रुपए से बढ़ा कर 3 लाख रुपए कर सकती है? या सरकार टैक्स के मौजूदा नियमों में ऐसे बदलाव करके इनकम टैक्स का बोझ कम कर सकती है?
नोटबंदी के बाद देश में आयकर से होने वाला राजस्व बढ़ा है क्योंकि ज्यादा लोग टैक्स के दायरे में आए हैं। तो क्या इससे मोदी सरकार के लिए लोगों को इनकम टैक्स के मोर्चे पर राहत देने की गुजाइश बढ़ जाती है?
राजस्व के मोर्चे पर बहुत की तंग हाथ होने के कारण सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकती, जिससे टैक्स बेस कम हो, यानी टैक्स देने वाले लोगों की संख्या में कमी आए। वैसे भी उसे जीएसटी से होने वाले राजस्व को राज्यों के सात बांटना पड़ रहा है, तो इनकम टैक्स के मोर्चे पर मोदी सरकार चाहकर भी कोई राहत नहीं दे सकती। हां, हो सकता है कि कुछ नए इंस्ट्रमेंट यानी निवेश के तरीकों में पैसा लगाकर थोड़ा बहुत आयकर बचाने की कोई योजना सरकार सामने ला सकती है।
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