हमें उन लोगों को गहराई से सुनना चाहिए जो हमारे जैसे नहीं हैं: अरुण मायरा

नस्लवादी और दूसरे देशों से आए लोगों को विरोध करने वाली दक्षिणपंथी ताकतों के उभार ने दुनिया में लोकतंत्र के संकट को गहरा कर दिया है।

अरुण माइरा/ फोटो: Twitter
अरुण माइरा/ फोटो: Twitter
user

आईएएनएस

योजना आयोग के पूर्व सदस्य अरुण माइरा का कहना है कि हम जिन लोगों को पसंद नहीं करते हैं, उनके खिलाफ वास्तविक दुनिया में 'शारीरिक हिंसा' और सोशल मीडिया पर 'शाब्दिक हिंसा' आज बढ़ रही है। इस चलन के बढ़ने के कारण लोकतंत्र की मूल भावना ही संकट में पड़ गई है।

इस समस्या के समाधान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "हमें ऐसे लोगों की बातें और गहराई से सुननी चाहिए जो हमारे जैसे नहीं हैं।"

अपनी नई किताब 'लिसनिंग फॉर वेल-बीइंग' के बारे में बात करते हुए उन्होंने देश से जुड़े कई मुद्दों पर अपने विचार साझा किए।

माइरा ने कहा, "लोग उनके खिलाफ हिंसा की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, जिन्हें वे नापसंद करते हैं। सोशल मीडिया पर किसी मुद्दे पर व्यक्तिगत विचार पोस्ट करना खतरनाक हो चुका है। जवाब में गाली मिलती है। दूसरे की मर्यादा का सम्मान नहीं किया जाता। लोगों को शारीरिक हिंसा की बार-बार धमकी दी जाती है।"

उन्होंने कहा, “ट्रोल करने वाले क्रूरतापूर्वक अपने शिकार के पीछे पड़ जाते हैं। सोशल मीडिया एक बेहद हिंसक स्थान बन चुका है। यह किसी बदनाम शहर की रात की तरह हो चुका है जहां घूमना सुरक्षित नहीं है।"

अपनी किताब के विमोचन के मौके पर अरुण माइरा/ फोटो: Twitter
अपनी किताब के विमोचन के मौके पर अरुण माइरा/ फोटो: Twitter

माइरा ने जोड़ा, “वास्तविक दुनिया में भी सड़कें बेहद असुरक्षित हो चुकी हैं। लंदन, बर्लिन या बार्सिलोना- अचानक ही सड़क पर कोई कार या ट्रक भारी विध्वंस का हथियार बन सकता है।"

उन्होंने कहा कि नस्लवादी और दूसरे देशों से आए लोगों को विरोध करने वाली दक्षिणपंथी ताकतों के उभार ने पश्चिमी दुनिया में लोकतंत्र के संकट को गहरा कर दिया है।

उन्होंने कहा, “अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक केवल ट्रंप की बात पर ही भरोसा करते हैं और केवल उनकी विचारधारा वाले समाचार चैनल ही देखते हैं। दूसरी ओर बड़ी संख्या में अमेरिकी नागरिक हैं जो ट्रंप की विचारधारा से सहमत नहीं हैं, लेकिन उनके भी अपने पसंदीदा समाचार स्रोत हैं। उन्हें एक-दूसरे की बात सुननी चाहिए और एक-दूसरे की चिंताएं समझनी चाहिए। केवल इसी तरह देश समावेशी और हकीकत में लोकतांत्रिक हो सकता है।"

नागरिकों के लिए एक दूसरे की बात सुनने की जरूरत किसी भी अन्य देश से ज्यादा भारत में है क्योंकि भारत सबसे अधिक विविधताओं वाला देश है। इसलिए हमें अपने देश में ऐसे लोगों की बात और ज्यादा गहराई से सुनने की कोशिश करनी चाहिए जो अपने इतिहास, अपनी संस्कृति, अपने धर्म या अपनी नस्ल के लिहाज से हमारे जैसे नहीं हैं।

'लिसनिंग ऑफ वेल-बीइंग' में माइरा ने लोगों को सुनने की ताकत का इस्तेमाल करने के तरीके बताए हैं। उनका कहना है कि हम तभी एक समावेशी, न्यायपूर्ण, दोस्ताना और सहज दुनिया बना सकते हैं जब हम उन लोगों को खासतौर पर गहराई से सुनें जो हमारे जैसे नहीं हैं।

माइरा ने आगे कहा, "भारत में भी यही मुद्दे हैं। हमारे देश में अलग-अलग तरह के लोग रहते हैं। हमें अपनी विविधता पर गर्व है। लेकिन सही मायने में एक लोकतांत्रिक देश होने के लिए सभी लोगों को यह महसूस करना चाहिए कि वे समान हैं। नागरिकों के लिए एक दूसरे की बात सुनने की जरूरत किसी भी अन्य देश से ज्यादा भारत में है क्योंकि भारत सबसे अधिक विविधताओं वाला देश है। इसलिए हमें अपने देश में ऐसे लोगों की बात और ज्यादा गहराई से सुनने की कोशिश करनी चाहिए जो अपने इतिहास, अपनी संस्कृति, अपने धर्म या अपनी नस्ल के लिहाज से हमारे जैसे नहीं हैं।"

लाहौर में जन्मे और दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़ाई कर चुके माइरा ने 'लिसनिंग फॉर वेल-बीइंग' से पहले भी दो प्रसिद्ध किताबों 'ऐरोप्लेन व्हाइल फ्लाइंग: रिफॉर्मिग इंस्टीट्यूशन्स' और 'अपस्टार्ट इन गवर्नमेंट: जरनीज आफ चेंज एंड लर्निग' की रचना कर चुके हैं।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


Published: 05 Sep 2017, 5:32 PM